जानिए, जम्मू-कश्मीर में माछिल सेक्टर से क्यों हो रही है घुसपैठ
पाकिस्तान हमेशा वादे और दावे करता है कि वो आतंकवाद रोकने के लिए गंभीर है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है।
नई दिल्ली(जेएनएन) । शहीद हेमराज, शहीद मंदीप सिंह और शहीद ये कुछ नाम हैं जिनकी याद हमेशा आती रहेगी। देश की सुरक्षा के लिए इन तीनों लोगों ने अपने जान की परवाह नहीं की। जम्मू-कश्मीर में तैनाती के दौरान इन लोगों ने अपने फर्ज को अंजाम दिया। लेकिन इन शहीदों की शहादत का दूसरा पहलू ये है कि पाकिस्तान ने मानवता को तार-तार कर रख दिया। इन शहीदों की क्षत विक्षत शरीर को दिखा पाना संभव नहीं है, सिर्फ क्षत विक्षत शब्दों के जरिए पाकिस्तान की क्रुरता का अंदाजा लगाया जा सकता है। एलओसी से लगे कई इलाकों से पाकिस्तान गोलाबारी कर आतंकियों को जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ करने में मदद करता है। लेकिन माछिल सेक्टर को घुसपैठ की लिहाज से सबसे ज्यादा संवेदनशील माना जाता है। आइए जानने की कोशिश करते हैं कि कुपवाडा़ जिले के माछिल सेक्टर से सबसे ज्यादा घुसपैठ क्यों होती है।
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माछिल से आसानी से घुसपैठ
कुपवाड़ा जिले में माछिल सेक्टर एलओसी के बेहद करीब है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई करीब 1900 मीटर है। ये पूरा इलाका घने जंगलों से घिरा हुआ है, जो प्राकृतिक तौर पर आतंकियों को छिपने में मदद करता है। एलओसी से 50-80 किमी के अंदर आतंकियों के कई बंकर है। भारत में दाखिल होने के लिए यह सबसे छोटा और सुरक्षित रास्ता है।
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अलग रास्तों के जरिए घुसते हैं आतंकी
सेना के अधिकारियों का कहना है कि सितंबर में भीमबर सेक्टर में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद आतंकी अब अलग अलग रास्तों का प्रयोग कर रहे हैं, जिसमें माछिल सेक्टर का सबसे ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है। 29 अक्टूबर को सेना के गश्ती दल पर आतंकियों ने हमला किया था, जिसमें एक जवान शहीद हो गया था। अधिकारियों का कहना है कि कुपवाड़ा और लोलाब घाटी तक पहुंचने के लिए माछिल सेक्टर का उपयोग हो रहा है।
माछिल से घुसपैठ की चार कोशिशें
नेशनल काउंटर टेररिज्म अथॉरिटी के मुताबिक पिछले कुछ महीनों में माछिल सेक्टर से घुसपैठ की चार बार कोशिश की गई। जुलाई में बुरहान वानी के सफाए के बाद आतंकियों ने घुसपैठ के लिए दो नए रास्तों का इस्तेमाल करना शुरू किया। काओबाल गली, सरदारी, सोनार, केल, रात्ता पानी, शारदी, तेजियान और दुधिनियाल घाटी से आतंकी आसानी से कुपवाड़ा, बारामुला और बांदीपोरा में दाखिल हो जाते हैं। खुफिया एजेंसियों का कहना है कि इन घाटियों के जरिए आतंकी माछिल में दाखिल होने में कामयाब हो जाते हैं।
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सेना ने चलाया था अभियान
पिछले साल दिसंबर में 41 राष्ट्रीय रायफल्स के संतोष महादिक की शहादत के बाद सेना ने बड़े पैमाने पर मनिगह से लेकर माछिल तक अभियान चलाया था। लेकिन कुछ समय के बाद अभियान को रोक दिया गया।जम्मू-कश्मीर पुलिस के अधिकारियों का कहना है कि माछिल इलाके की भौगोलिक बनावट की वजह से आतंकियों पर निगहबानी मुश्किल होती है। आतंकी अब अक्सर माछिल सेक्टर के जरिए कुपवाड़ा कस्बे में दाखिल होने में कामयाब होते हैं। अगस्त में एक आतंकी हमले में बीएसएफ के तीन जवान शहीद हो गए थे। अधिकारियों का कहना है कि एलओसी की दूसरी तरफ केल में आतंकियों के लॉन्च पैड हैं। जहां से आतंकी माछिल सेक्टर के जरिए घाटी में प्रवेश करते हैं।
चर्चा में क्यों रहता है माछिल
2010 में एक मुठभेड़ में तीन ग्रामीणों के मारे जाने के बाद माछिल चर्चा में आया था। इस मुठभेड़ के खिलाफ जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग इलाकों में जबरदस्त विरोध हुए थे। कथित मुठभेड़ के खिलाफ सेना ने जांच के निर्देश दिए। जांच में ये पाया गया कि मुठभेड़ में बेगुनाह लोग मारे गए थे। इस कथित मुठभेड़ के लिए जिम्मेदार 6 लोगों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई, जिसमें एक कमांडिंग अफसर भी था।