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भाजपा-शिवसेना में दबाव की जंग और तेज, अड़चन बरकरार

महाराष्ट्र में सीटों के लिए भाजपा और शिवसेना के बीच दबाव की राजनीति और तेज हो गई है। मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने के प्रयास में दोनों दलों ने अकेले मैदान में उतरने की तैयारी पूरी कर ली है। विकल्पों पर भी विचार पूरा हो चुका है। अब भाजपा ने 2

By Edited By: Updated: Tue, 23 Sep 2014 09:56 AM (IST)
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नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। महाराष्ट्र में सीटों के लिए भाजपा और शिवसेना के बीच दबाव की राजनीति और तेज हो गई है। मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने के प्रयास में दोनों दलों ने अकेले मैदान में उतरने की तैयारी पूरी कर ली है। विकल्पों पर भी विचार पूरा हो चुका है। अब भाजपा ने 288 सीटों की विधानसभा में कम-से-कम 130 सीटों पर दावा ठोंककर गेंद शिवसेना के पाले में डाल दिया है। हालांकि हिंदुत्व के नाम पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने गठबंधन बरकरार रखने की कोशिश शुरू कर दी है।

महाराष्ट्र की उलझन मंगलवार तक खत्म हो सकती है। खासकर संघ के हस्तक्षेप के बाद यह संभावना जताई जा रही है कि 25 साल पुराना गठबंधन खींचतान के बावजूद विधानसभा चुनाव में एकजुट रह सकता है। लेकिन, यह स्पष्ट है कि इसके लिए शिवसेना को झुकना होगा। सूत्रों के अनुसार प्रदेश नेतृत्व के संकेत के बाद भाजपा ने मन बना लिया है कि वह राज्य में छोटी पार्टी बनकर नहीं रहेगी। और न ही अपनी कीमत पर किसी दूसरे दल को पनपने देगी। लिहाजा 135 सीटों की शुरुआती मांग से घटकर 130 सीटों का नया प्रस्ताव शिवसेना को भेज दिया है।

भाजपा मुख्यालय में देर शाम तक पार्टी अध्यक्ष अमित शाह अपने वरिष्ठ पदाधिकारियों से रायशुमारी करते रहे। शिवसेना की ओर से 119 से ज्यादा सीटें न देने के प्रस्ताव और सार्वजनिक बयान से खफा भाजपा नेतृत्व ने लगभग 220 सीटों पर नाम तय कर लिया है। इंतजार शिवसेना के फैसले का हो रहा है। उस स्थिति में महायुति के दूसरे छोटे दलों को 20-25 सीटें देकर भाजपा दूसरे दलों के मजबूत बागियों पर भी दांव लगाने से नहीं चूकेगी।

बताते हैं कि रविवार को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भाजपा के दो वरिष्ठ नेताओं से फोन पर बात तो की, लेकिन उस वक्त भी कोई ठोस प्रस्ताव नहीं दिया। बजाय इसके वह सार्वजनिक संकेत देते रहे कि 151 सीटों पर उम्मीदवार तय किए जा चुके हैं।

दरअसल सीटों को लेकर छिड़ी पूरी लड़ाई मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को लेकर है। इस बीच संघ नेता इंद्रेश और संभवत: शीर्ष पदाधिकारियों ने भी भाजपा और शिवसेना को संकेत दिया है कि गठबंधन बचाने की कोशिश होनी चाहिए। दोनों दलों को आपसी समन्वय बनाना चाहिए।

फिर भी अड़चन बरकरार है। शीर्ष स्तर से आपसी बातचीत की शुरुआत करने को कोई तैयार नहीं है। उद्धव अब तक बैठकों में अपने युवा पुत्र को भेजते रहे थे। जबकि सोमवार की रात महाराष्ट्र भाजपा के अध्यक्ष देवेंद्र फणनवीस ने उद्धव के घर जाकर बात की। भाजपा सूत्रों की मानी जाए तो गठबंधन तभी बरकरार रहेगा जब शिवसेना कम-से-कम 126-127 सीट भाजपा के लिए छोड़ने को तैयार हो।

शिवसेना से दूरी में फायदा देख रही है भाजपा

मुख्यत: शहरी पार्टी मानी जाने वाली भाजपा महाराष्ट्र में अलग रास्ता अपनाना चाहती है। राज्य में भाजपा 119 और शिवसेना 169 सीटों पर लड़ती रही है। मुंबई समेत राज्य के अधिकतर शहरों में शिवसेना का दावा रहा है। ऐसे में भाजपा नेताओं को लगता है कि शिवसेना से अलग होना पार्टी के हित में है। उस स्थिति में भाजपा शहरों में भी अपना उम्मीदवार उतार पाएगी, जहां शहरी मध्यम वर्ग, व्यापारी वर्ग से लेकर युवाओं तक पर फिलहाल भाजपा का जादू है। अनौपचारिक सर्वे के अनुसार उनका मानना है अकेले चुनाव लड़ने पर पार्टी को 160 सीटें तक आ सकती हैं जो बहुमत से भी ज्यादा होगी।

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