नाकाम साबित हुआ हाथ-हथौड़ा को साथ लाने का प्रयोग
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने फिर से जीत दर्ज कर कांग्रेस और वाममोर्चा को उनकी जमीनी हकीकत बता दी है। वाममोर्चा की अब तक की यह सबसे बड़ी हार है।
कोलकाता (जागरण संवाददाता)। सभी आलोचनाओं को अनदेखा कर गठित हुआ वाममोर्चा व कांग्रेस गठबंधन विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद मुंह के बल गिर पड़ा है। यह वाममोर्चा की अब तक की सबसे बड़ी हार मानी जा रही है। जबकि कांग्रेस के लिए राष्ट्रीय स्तर पर यह एक बड़ा झटका है। रुझान के अनुसार वाम-कांग्रेस गठबंधन को मात्र 71 सीटें मिलती नजर आ रही है। इसमें कांग्रेस को 40 जबकि 31 सीट वाममोर्चा के खाते में है।
2011 में वाममोर्चा को 42 सीटें मिली थी, तब इसे वाम मोर्चा की सबसे बदतर स्थिति मानी गयी थी। 2016 में इनका खाता 31 पर बंद होता दिख रहा है। रुझान में अब तक कांग्रेस के खाते में 44 व वामो को 25 सीटें मिलती दिख रही है। हाथ-हथौड़ा को साथ लाने का यह प्रयोग पूरी तरह से असफल हो गया है। उत्तर बंगाल व मुर्शिदाबाद जिसे कांग्रेस का गढ़ माना जाता है, जहां से गठबंधन ने 76 में से 67 सीट पाने का दावा किया था। वहां गठबंधन को मात्र 44 सीटें मिलती दिख रही है। इधर, वामो के शीर्ष नेता अभी से हार पर मंथन करने में लग गये हैं।
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जमीनी स्तर पर गठबंधन के लिए अनुकूल परिस्थितियां होने के बावजूद हार क्यों हई? कई कामरेड वामो के शीर्ष नेताओं पर बिना असल स्थिति को जाने गठबंधन की ओर बढऩे का आरोप लगा रहे हैं। आशंका जताई जा रही है कि कई जगहों पर वामो व कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने एक दूसरे के लिए वोट नहीं किया, जो हार का बड़ा कारण बना है। ग्रामीण इलाकों में तृणमूल की पैठ, कन्याश्री, खाद्यसाथी जैसे परियोजनाएं ममता की जीत का बड़ा कारण माना जा रहा है। दक्षिण बंगाल व बाकुंड़ा, पुरुलिया, बीरभूम में तृणमूल का विकास कार्ड चला है। बांकुड़ा, बीरभूम, पश्चिम मेदिनीपुर, पुरुलिया से तृणमूल को 48 में से 43 सीटें मिली हैं।