भारतीय मंगलयान दुनियाभर में सबसे सस्ता
भारत का मंगल ग्रह तक पहुंचने का सपना हकीकत में बदल गया है। भारत ने बुधवार को एक नया इतिहास रचते हुए अपने पहले प्रयास में ही मंगल ग्रह की कक्षा में अपना पहला मंगलयान स्थापित कर दिया है। भारत इस कदम के साथ ही मंगल ग्रह पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने वाला विश्व का चौथा देश बन गया है। यह उपग्रह, जिसका आकार लगभग एक नैनो कार ि
By Edited By: Updated: Wed, 24 Sep 2014 01:31 PM (IST)
नई दिल्ली। भारत का मंगल ग्रह तक पहुंचने का सपना हकीकत में बदल गया है। भारत ने बुधवार को एक नया इतिहास रचते हुए अपने पहले प्रयास में ही मंगल ग्रह की कक्षा में अपना पहला मंगलयान स्थापित कर दिया है। भारत इस कदम के साथ ही मंगल ग्रह पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने वाला विश्व का चौथा देश बन गया है।
यह उपग्रह, जिसका आकार लगभग एक नैनो कार जितना है, तथा संपूर्ण मार्स ऑरबिटर मिशन की लागत कुल 450 करोड़ रुपये या छह करोड़ 70 लाख अमेरिकी डॉलर रही है, जो एक रिकॉर्ड है। यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइज़ेशन या इसरो) ने 15 महीने के रिकॉर्ड समय में तैयार किया, और यह 300 दिन में 67 करोड़ किलोमीटर की यात्रा कर अपनी मंजि़ल मंगल ग्रह तक पहुंचा। यह निश्चित रूप से दुनियाभर में अब तक हुए किसी भी अंतर-ग्रही मिशन से कहीं सस्ता है। आंध्र प्रदेश में समुद्रतट पर स्थापित और भारत के रॉकेट पोर्ट कहे जाने वाले श्रीहरिकोटा में इसी वर्ष जून के अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी टिप्पणी की थी, हॉलीवुड की साइंस फिक्शन फिल्म 'ग्रेविटी' का बजट हमारे मंगल अभियान से ज्यादा है.. यह बहुत बड़ी उपलब्धि है.. उल्लेखनीय है कि इसी सप्ताह सोमवार को ही मंगल तक पहुंचे अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के नए मार्स मिशन 'मेवन' की लागत लगभग 10 गुना रही है। अपने मिशन की कम लागत पर टिप्पणी करते हुए इसरो के अध्यक्ष के, राधाकृष्णन ने कहा है कि यह सस्ता मिशन रहा है, लेकिन हमने कोई समझौता नहीं किया है, हमने इसे दो साल में पूरा किया है, और ग्राउंड टेस्टिंग से हमें काफी मदद मिली।
मंगल ग्रह की सतह पर पहले से मौजूद सबसे ज्यादा चर्चित अमेरिकी रोवर यान 'क्यूरियॉसिटी' की लागत दो अरब अमेरिकी डॉलर से भी ज्यादा रही थी, जबकि भारत की तकनीकी क्षमताओं तथा सस्ती कीमतों ने मंगलयान की लागत कम रखने में काफी मदद की। भारतीय मंगलयान दुनिया का सबसे सस्ता अंतर-ग्रही मिशन है, और इसकी औसत लागत प्रति भारतीय चार रुपये से भी कम रही है, यानि सिर्फ 450 करोड़ रुपये, सो, अब भारत नया उदाहरण पेश करते हुए तेज, सस्ते और सफल अंतर-ग्रही मिशनों की नींव डाल रहा है।