शहीद कैप्टन हरभजन को अब नहीं मिलती छुंट्टी
सेना में बीते 45 साल से एक ही मोर्चे पर तैनात हरभजन सिंह अब जवान से कैप्टन बन गए हैं। चीन सीमा पर नाथुला दर्रे पर जान गंवाने वाले इस सिख फौजी को आस्थाओं ने न केवल जिंदा रखा है, बल्कि बाबा हरभजन बना दिया है। लेकिन, आस्थाएं कहीं अंधविश्वास न बन जाएं इसके लिए संयम की कुछ सीमाएं तय करते हुए सेना मुख्यालय ने बीते कुछ समय से उनकी सालाना छुंट्टी खत्म कर दी है।
By Edited By: Updated: Fri, 12 Apr 2013 11:53 AM (IST)
नई दिल्ली [प्रणय उपाध्याय]। सेना में बीते 45 साल से एक ही मोर्चे पर तैनात हरभजन सिंह अब जवान से कैप्टन बन गए हैं। चीन सीमा पर नाथुला दर्रे पर जान गंवाने वाले इस सिख फौजी को आस्थाओं ने न केवल जिंदा रखा है, बल्कि बाबा हरभजन बना दिया है। लेकिन, आस्थाएं कहीं अंधविश्वास न बन जाएं इसके लिए संयम की कुछ सीमाएं तय करते हुए सेना मुख्यालय ने बीते कुछ समय से उनकी सालाना छुंट्टी खत्म कर दी है।
तस्वीरों में देखें: फौजी बाबा का बंकरसेना मुख्यालय के अधिकारी बाबा हरभजन सिंह को लेकर जुड़ी फौजियों और नागरिकों की आस्था पर कोई सवाल नहीं करते। लेकिन, यह भी कहते हैं कि सेना आस्था का तो सम्मान करती है, मगर अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं दे सकती। सेना मुख्यालय के अफसरों के मुताबिक बाबा हरभजन के प्रति लोगों की बढ़ती आस्था ने फौजी प्रबंधन के लिए कई समस्याएं भी खड़ी करना शुरू कर दी थीं। लिहाजा यह निर्णय लिया गया कि आस्थाओं में जीवित इस फौजी को अब हर साल सिक्किम से कपूरथला सालाना छुंट्टी पर भेजने की परंपरा पर विराम लगाया जाए। लिहाजा इसे बीते चार सालों से बंद कर दिया गया है। बाबा हरभजन को हर साल 14 सितंबर को छुंट्टी पर घर भेजने के लिए फौज को तीन बर्थ एसी फर्स्ट क्लास में बुक करानी पड़ती थीं। दो जवानों की देखरेख में सभी जरूरी सामान से भरा उनका बक्सा ट्रेन से उनके घर भेजा जाता था। स्थानीय आस्थाओं के कारण नाथुला से इस सामान की विदाई और वापसी धार्मिक यात्रा की तरह होने लगी थी। बढ़ती आस्था के कारण नाथुला स्थित बाबा हरभजन के मंदिर पर चप्पलों का लगातार बढ़ता चढ़ावा सेना के लिए प्रबंधन की मुश्किलें खड़ी कर रहा है। इस मंदिर में सात दिनों तक पानी रखने पर उसमें चिकित्सकीय गुण पैदा होने की मान्यता के कारण पानी की बोतलों का भी अंबार लग रहा है।
एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक बाबा हरभजन के मंदिर में लोगों की उमड़ती भीड़ के कारण अब भंडारे और प्रसाद वितरण जैसी परंपराएं भी बन गई हैं। लिहाजा इसके विस्तार को सीमित करने की जरूरत महसूस होने लगी है। एक सिख फौजी के इस मंदिर में धन के चढ़ावे का प्रबंधन भी सेना के लिए परेशानी का सबब है जिसे सरकारी मद में दिखाना चुनौती है। फौजी आस्था, बाबा हरभजन :
पंजाब के कूका में जन्मे हरभजन सिंह की भर्ती 1966 में सेना की पंजाब रेजीमेंट में हुई थी। 1968 में सिक्किम के नाथुला दर्रे के पास घोड़ों को ले जाते वक्त नदी में गिरने से उनकी मौत हो गई थी। उसके बाद कई फौजियों ने दावा किया कि उन्हें हरभजन ने चीनी घुसपैठ के बारे में अहम सैन्य सूचनाएं दीं। पंजाब रेजीमेंट के इस फौजी की अशरीर मौजूदगी की आस्था के कारण 1987 में वहां एक स्मृति स्थल बनाया गया जो अब बाबा हरभजन मंदिर बन गया है। हरभजन को समय-समय पर प्रमोशन भी मिलते रहे हैं। ओपी बाबा : दुनिया के सबसे ऊंचे सैन्य मोर्चे सियाचिन पर सिपाही ओम प्रकाश का स्मृति स्थल अब ओपी बाबा का मंदिर बन गया है जहां तैनाती से पहले सभी फौजी सिर झुकाते हैं। जसवंत गढ़ स्मृति : तवांग में चीन के साथ 1962 युद्ध के दौरान रायफलमैन जसवंत सिंह की शहादत के प्रति जवानों का सम्मान अब जसवंतगढ़ मेमोरियल बन गया है। सीमा पर तैनाती से पहले फौजी वहां शीश नवाते हैं।
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