महिलाओं के प्रति बड़े नेता और मंत्री भी पूरी तरह संवेदनशील नहीं हो पाए हैं। सपा के नरेश अग्रवाल के बाद ऐसे नेताओं की कड़ी में शुक्रवार को केंद्रीय मंत्री फारूक अब्दुल्ला भी शामिल हो गए। बलात्कार और यौन शोषण जैसी घटनाओं को लेकर उठी आवाजों से राजनीतिज्ञ कितने असहज हैं, इसका अंदाजा नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूख के बयान से लगाया जा सकता है। लगभग मजाक उड़ाने वाले अंदाज में उन्होंने कहा कि उन्हें तो महिलाओं से बात करने में भी भय लगता है और लड़कियों को निजी सचिव
By Edited By: Updated: Sat, 07 Dec 2013 09:32 AM (IST)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। महिलाओं के प्रति बड़े नेता और मंत्री भी पूरी तरह संवेदनशील नहीं हो पाए हैं। सपा के नरेश अग्रवाल के बाद ऐसे नेताओं की कड़ी में शुक्रवार को केंद्रीय मंत्री फारूक अब्दुल्ला भी शामिल हो गए। बलात्कार और यौन शोषण जैसी घटनाओं को लेकर उठी आवाजों से राजनीतिज्ञ कितने असहज हैं, इसका अंदाजा नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूख के बयान से लगाया जा सकता है। लगभग मजाक उड़ाने वाले अंदाज में उन्होंने कहा कि उन्हें तो महिलाओं से बात करने में भी भय लगता है और लड़कियों को निजी सचिव बनाने पर पता नहीं कब कोई लड़की आरोप लगा दे और मैं भी जेल चला जाऊं। इस बयान पर विरोध बढ़ने पर उन्होंने माफी ही नहीं मांगी बल्कि संसद में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण की भी मांग कर दी।
फारूक की अन्य खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें गत दिसंबर में दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार के बाद जस्टिस गांगुली, तरुण तेजपाल जैसे प्रकरण ने जहां महिला सुरक्षा को लेकर बड़े सवाल उठाए हैं वहीं कई जिम्मेदार लोगों के बयानों ने भी विवाद को तूल दिया है। पत्रकारों से बातचीत में फारूक ने कहा कि जो माहौल है उसमें तो महिला सचिव रखना खतरनाक है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि वह महिलाओं पर अंगुली नहीं उठा रहे हैं लेकिन समाज में ऐसा परिवर्तन आया है कि दूसरे पक्ष(महिलाओं) की ओर से शिकायतों का दौर बढ़ा है। इससे पहले जस्टिस गांगुली के मामले में कुछ नेता षडयंत्र की आशंका जता रहे थे। फारूक के बयान पर तत्काल प्रतिक्रिया हुई। खुद उनके पुत्र और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने जहां पिता से माफी की आशा जताई वहीं कांग्रेस महासचिव अंबिका सोनी ने कहा कि फारूक जैसे शख्श से ऐसी उम्मीद नहीं थी। केंद्रीय महिला व बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ, भाजपा की स्मृति ईरानी, माकपा की वृंदा करात ने पुरुष मानसिकता पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि संविधान ने महिलाओं को बराबरी का हक दिया है लेकिन ऐसे लोगों की कमी नहीं जो सोचते हैं कि कार्यस्थल पर महिला अपने अधिकारों की बात करती है तो खतरनाक है। यह सोच खतरनाक है।
स्थिति भांपते हुए फारूक ने भी खेद जताने में देर नहीं की। उन्होंने कहा कि उनके बयान की गलत व्याख्या की जा रही है। वह चाहते हैं कि संसद में जल्द से जल्द महिलाओं के लिए 33 फीसद आरक्षण का प्रावधान किया जाना चाहिए। ---
मौजूदा माहौल में लड़कियों से बात करने में डर लगता है। हमें तो ऑफिस में अपने लिए कोई लड़की सेक्रेटरी नहीं रखनी है, पता नहीं कब कोई आरोप लगा दे और हम ही जेल न पहुंच जाएं। -फारूक अब्दुल्ला, केंद्रीय मंत्री
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