रिश्तों पर टिकी मिशन मोदी की डोर
मिशन मोदी की कामयाबी के लिए बेताब भाजपा को यदि दिल्ली दरबार सजाने का ख्वाब पूरा करना है तो उसे नब्बे के दशक में मतदाताओं से प्रगाढ़ हुए रिश्तों की कहानी फिर दोहरानी होगी। यह वह दौर था जब सूबे की कई सीटों पर उसका परचम लगातार लहराता रहा था। इनमें कई सीटें ऐसी थीं जहां पिछड़ी जातियों का बाहुल्य थ
[राजीव दीक्षित], लखनऊ । मिशन मोदी की कामयाबी के लिए बेताब भाजपा को यदि दिल्ली दरबार सजाने का ख्वाब पूरा करना है तो उसे नब्बे के दशक में मतदाताओं से प्रगाढ़ हुए रिश्तों की कहानी फिर दोहरानी होगी। यह वह दौर था जब सूबे की कई सीटों पर उसका परचम लगातार लहराता रहा था। इनमें कई सीटें ऐसी थीं जहां पिछड़ी जातियों का बाहुल्य था तो कुछ सुरक्षित सीटें भी थीं। इसी दशक में राम मंदिर आंदोलन से ऊर्जा पाकर 1991 के लोकसभा चुनाव में 51 सीटें हासिल करने वाली भाजपा ने 1998 में 57 सीटें बटोरकर चुनावी सफलता का चरमोत्कर्ष हासिल किया था।
सूबे के कई क्षेत्र भाजपा के गौरवशाली अतीत के गवाह रहे हैं। यह रिश्ता पार्टी में पिछड़ों और दलितों का नेतृत्व उभारने की बदौलत बना था। यह नेतृत्व कमजोर हुआ तो पार्टी भी कमजोर हुई। सांप्रदायिक दंगे की तपिश झेल चुके मुजफ्फरनगर की सीट ही लें। यहां 1991 से 1998 तक भाजपा अपने विरोधियों को पटकनी देने में कामयाब रही लेकिन इसके बाद यह सीट उसके हाथ से फिसल गई। अलीगढ़ सीट पर भाजपा का डंका 1991 से 1999 तक लगातार चार चुनावों में बजा, लेकिन पिछले चुनाव में यहां पार्टी चौथे नंबर पर रही। कल्याण सिंह की दोबारा वापसी के बाद देखना यह होगा कि उनके गृह जिले में पार्टी क्या अपना पुराना गढ़ फतह कर पाती है? हाथरस (सुरक्षित) सीट पर भी भाजपा ने 1991 से 1998 तक लगातार तीन बार अपना कब्जा बनाये रखा। अब यह सीट सामान्य हो गई है। नब्बे के दशक के तीन शुरुआती चुनावों में पार्टी ने बुलंदशहर और मथुरा सीटों पर भी ऐसी ही धाक जमाई थी। बुलंदशहर सीट पर 1991 से 1998 तक छत्रपाल सिंह विजयी रहे। मथुरा में 1991 में साक्षी महाराज ने भाजपा का झंडा गाड़ा तो अगले तीन चुनावों में यह कौशल तेजवीर सिंह ने दिखलाया। शाक्य और लोधी बहुल एटा सीट पर भी भाजपा को उसी उम्दा प्रदर्शन की दरकार होगी जब उसके प्रत्याशी महादीपक सिंह शाक्य ने 1989 से 1998 तक लगातर चार बार जीत का स्वाद चखा।