मोदी बनाम नीतीश, क्लिक करें और पढ़ें शब्दों की जंग
भाजपा और जदयू के दिग्गज नेताओं ने बिहार की भूमि पर वाक युद्ध छेड़ा। एक के बाद एक वाक्यों के बाण चलाए जा रहे थे। भाजपा की ओर से नरेंद्र मोदी और जदयू प्रमुख नीतीश कुमार से एक-दूसरे के खिलाफ आलोचनाओं की झड़ी लगा दी। आइये हम भी देखें इन दोनों ने बिहार के इतिहास और स्थानीय लोगों पर कैसे खेली राजनीति
By Edited By: Updated: Wed, 30 Oct 2013 09:57 AM (IST)
पटना। भाजपा और जदयू के दिग्गज नेताओं ने बिहार की भूमि पर वाक युद्ध छेड़ा। एक के बाद एक वाक्यों के बाण चलाए जा रहे थे। भाजपा की ओर से नरेंद्र मोदी और जदयू प्रमुख नीतीश कुमार से एक-दूसरे के खिलाफ आलोचनाओं की झड़ी लगा दी। आइये हम भी देखें इन दोनों ने बिहार के इतिहास और स्थानीय लोगों पर कैसे खेली राजनीति।
पढ़ें: धमाकों के बाद अब जुबानी गोला बारूद का दौर नरेंद्र मोदी- बिहार का इतिहास गौरवशाली रहा है। . गुप्तकाल में चंद्रगुप्त की राजनीति से भारत का साम्राज्य निर्मित हुआ।
- ज्ञान युग का सूत्रपात करने वाले नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालय .। - बिहार में हुंकार रैली। हुंकार किसका ., हुंकार किसका? यह हुंकार करोड़ों-करोड़ गरीबों का है।
- सीता माता की धरती है यह। सीता माता का अपहरण हुआ था। वानर उन्हें खोजने निकले। उपाय नहीं सूझ रहा था। हनुमान की नजर जामवंत पर पड़ी। बोले-'पवन तनय बल पवन समाना,. का चुप साध रहा बलवाना।' - . सिकंदर भी गंगा तट (पाटलिपुत्र) पर हारा। - जो जेपी को छोड़ सकता है, वह बीजेपी को छोड़ सकता है। - लोग खुद को लोहिया का शिष्य कहते हैं। लोहिया ने गैर कांग्रेसवाद का नारा दिया था। लेकिन लोहिया के चेले ने लोहिया की पीठ में खंजर भोंक कांग्रेस की गोद में जा बैठे हैं। लोहिया-जेपी की आत्मा इन्हें कभी माफ नहीं करेगी। - एक कथा सुनोगे। (उन्होंने भोज के दो मौकों के हवाले नीतीश को हिप्पोक्रेट यानी ढोंगी करार दिया।) - बिहार के सीएम, मेरे मित्र गुजरात आए थे। एक शादी में। हम भी थे। मित्र मेहमान थे। हमने उन्हें भांति -भांति के पकवान खिलाये। अतिथि देवो भव: का भारतीय संस्कार निभाया। मगर मेरे मित्र ने तो हमें भोज का निमंत्रण देकर उसे रद्द कर दिया। - पीएम की मीटिंग थी। लंच भी था। एक टेबल पर चार-पांच सीएम बैठ कर खाते हैं। मैंने देखा मेरे मित्र (नीतीश) खाना नहीं खा रहे हैं। इधर-उधर देख रहे हैं। मैंने मित्र से कहा-कोई कैमरा वाला नहीं है, खा लो। हिप्पोक्रेसी (ढोंग) की भी हद होती है। - यदुवंश के राजा श्रीकृष्ण द्वारिका में बसे। यदुवंश के प्रति प्रेम जगना स्वाभाविक है। मैं कृष्ण भक्तों से कहना चाहता हूं चिंता नहीं करने का। मैं जिम्मा लेता हूं। - जब जंगल राज के खात्मे की बारी आई तब भाजपा के विधायक, जदयू से दोगुने थे। स्पष्ट बहुमत नहीं था। सुशील मोदी सीएम बन सकते थे। लेकिन बीजेपी के लिए दल से बड़ा देश है, इसी सिद्धांत को सामने रख पार्टी ने मेरी मित्र को सीएम बनाया। - मित्र (नीतीश) को चेलों ने कहा-कांग्रेस से जुड़ जाओ पीएम बन जाओगे। उन्होंने गठबंधन तोड़ दिया। यह विश्वासघात है। .सजा दोगे, . उखाड़ फेंक दोगे, चुन-चुन कर साफ कर दोगे? - गरीबी देश की बड़ी समस्या है। कई घरों में चूल्हा नहीं जलता। आइए! हम सब मिलकर गरीबी से लड़ें। - बिहार ने 45 हजार करोड़ का पैकेज मांगा है। दिल्ली दे या न दे। इस एतिहासिक रैली में मिले प्यार की कीमत हम सूद समेत अदा करेंगे। बस 200 दिन का सवाल है। देश के किसी राज्य में मुझे इतना प्यार नहीं मिला है। पढ़ें: नीतीश का मोदी पर हमला नीतीश कुमार- चंद्रगुप्त, गुप्त काल में भी थे लेकिन जिस चंद्रगुप्त की चर्चा की गई वे मौर्य वंश के थे। उन्हीं के पोते थे सम्राट अशोक। - तक्षशिला बिहार में नहीं है। आजकल पाकिस्तान में है। वहीं के प्रोफेसर थे चाणक्य। मैं वहां गया था। - यह हुंकार नहीं। हुंकार से अहंकार टपकता है। डिक्शनरी में हुंकार का अर्थ है-दंभ, घमंड, अहंकार के साथ ऊंचा स्वर। वे साथ में थे, उसी समय से हुंकार लगा रहे थे। - पूरा प्रसंग ही पलट दिया। जामवंत को हनुमान और हनुमान को जामवंत बना दिया। वानर का (हालांकि बाद में उसे दुरूस्त कर लिया।) - सिकंदर तो गंगा तट पर पहुंचा भी नहीं। वह तो सतलज नदी तक ही आ पाया था। - आजकल वो बेजोड़ तुकबंदी भी चला रहे हैं। 'जेपी' बनाने के लिए बीजेपी से 'बी' को हटा दिया। हमने जेपी को कब छोड़ा? बताइए कब छोड़ा? अरे, आरोप का कुछ तो स्तर होना चाहिए। - हद है। हमने लोहिया की पीठ में खंजर भोंका? लोहिया और 1977 की जनता पार्टी के बाद तो हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने कांग्रेस के खिलाफ पार्टियों को एकजुट किया। यह खुला तथ्य है। यह भी कि गठबंधन तोड़ने वाले मुडो आरोपित कर रहे हैं। - कथा झूठी है, बनावटी है। हवा बनावटी है। वहीं (गुजरात) के एक कथावाचक का हश्र तो आजकल सभी देख रहे हैं। नीतीश का इशारा आसाराम बापू की ओर था। (जदयू शिविर में जोरदार ठहाका)। - यह झूठी कथा है। मैं बिहार के चीफ जस्टिस के परिवार की शादी समारोह में गया था। उनका आयोजन था। उनका खान-पान था। मुडो किसी (नमो) ने नहीं खिलाया। वे भी मेरी तरह मेहमान बनकर आए थे। उन्होंने बाढ़ पीड़ितों के लिए पांच करोड़ रुपया दान दिया था। दान का बखान कर रहे थे। मैंने चेक लौटा दिया। गुजरात सरकार ने बिना देर किए चेक भुना लिया। - आज तक ऐसा कोई मौका आया ही नहीं। सरासर झूठ है यह। पीएम के किसी भोज में हमलोग साथ नहीं बैठे हैं। - शर्मनाक है। भगवान श्रीकृष्ण को भी जाति के दायरे में बांध दिया। इन लोगों का कोई ठीक नहीं है। कभी राम को अपना एक्टिव मेंबर बना लेते हैं, तो कभी श्रीकृष्ण को। भगवान किसी जाति विशेष के होते हैं? - गजब बात है। मैं तो इस्तीफा देने को तैयार था। कह दिया था कि राजभवन जाने में बस दो मिनट का वक्त लगेगा। तब क्या हो गया था? मुझको क्यों रोका गया था? और जब 2010 में मेरे बिना काम नहीं चलने वाला था, तो मुडो घोर विवशता में आगे कर दिया। बताइए, अवसरवादी कौन है? जब जैसा, तब तैसा ., कहीं ऐसा होता है? - यह लोकतंत्र की भाषा नहीं है। फासीवाद की भाषा है। जिन लोगों को असहमति का स्वर बर्दाश्त नहीं होता है, उनके आदर्श हिटलर होते हैं। हिटलर का मंत्री था गोएबल्स, जिसका सूत्रवाक्य ही था कि एक झूठ को सौ बार बोलने से वह सच हो जाता है। आजकल यही किया जा रहा है। - ऐसा कुछ दिख भी रहा है क्या? वहां (गुजरात) की सूरत क्या है? अरे, कुछ भी तो सही बोलिए। उन्होंने पानी पी पी कर मुडो कोसा। - वे चेहरे का पसीना बार-बार पोंछ रहे थे। उन्हें इतना पसीना क्यों आ रहा था? इतना एक्साइटमेंट क्यों था? वह प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं, उनमें तो धैर्य होना चाहिए। - यह बिहार का हक है और हम इसे सार्थक मुकाम तक पहुंचा चुके हैं। इस मोर्चे पर हम कामयाब होकर ही रहेंगे, चाहे कुछ भी क्यों न करना पड़े। मैं फिर केंद्रीय वित्त मंत्री से इसके बारे में बात करने वाला हूं। हम बहुत इंतजार नहीं कर सकते हैं।
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