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पीएम ने इस गांव को लिया था गोद, जानें क्‍या हो गए यहां के हालात

अपने विस क्षेत्र वाराणसी के 100 फीसद हिंदुुओं वाले गांव जयापुर को पीएम ने गोद लिया था। यहां संसाधनों की ढेर लगा दी थी पर गांव का दुर्भाग्‍य, विकास होने के बजाए यहां हालत दयनीय हो गयी है।

By Monika minalEdited By: Updated: Mon, 23 May 2016 04:13 PM (IST)
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वाराणसी। वर्ष 2014 में उत्तर प्रदेश के गांव जयापुर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोद लिया था। प्रधानमंत्री ने केवल नाम के लिए इस गांव को गोद नहीं लिया था बल्कि अनेकों सुविधाएं भी दी ताकि यह आदर्श ग्राम बन सके। पर प्रधानमंत्री को इस काम के लिए जिस समर्थन की अाावश्यकता थी वही नहीं मिल पाया। ग्रामीणों की उदासीनता और बेफिक्री ने मुहैया कराए गए संसाधनों के अच्छे उपयोग की जगह सभी सुविधाओं को तहस-नहस कर डाला और अब इस गांव के हालात हृदय विदारक है।

ग्रामीणों ने पार की हद

हाल में ही उद्धाटन किए गए नये बस स्टैंड में चमचमाती लोहे की कुर्सियां लगायी गयी थीं जो अब टूट चुकी हैं। इस बस स्टैंड की स्थापना का मकसद तो पूरा होने से रहा, अब यहां जुए और ताश खेलनेवालों का जमघट लगा रहता है। स्वच्छ भारत अभियान के तहत स्थापित किए गए टॉयलेट को स्टोरेज के तौर पर उपयोग किया जाता है और इसमें गाय के सूखे गोबड़ और आग जलाने के लिए लकड़ियों को जमा किया जाता है। यहां तक कि इसके दरवाजे भी टूट गए हैं।

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यहां के चोरों के भी मजे के दिन शुरू हो गए। उन्होंने गांव को रोशनी मुहैया कराने वाले सोलर लैंप की बैटरियां और 65 परिवारों को पानी देने वाले मोटर को उड़ा लिया। जयापुर गांव के ग्रामीणों ने बस स्टैंड को आरामगाह बना लिया। साथ ही यह जुआरियों का अड्डा बन गया है।

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प्रधानमंत्री ने अपने वाराणसी विधानसभा क्षेत्र से 30 किमी दूर स्थित 3,025 निवासियों वाले इस गांव को आदर्श ग्राम बनाने के लिए गोद लिया था। अब करीब दो वर्ष बीत जाने के बाद यह गांव जनता की उदासीनता और प्रशासनिक उपेक्षा के कारण और बदतर हो गया है।

ग्रामीणों व गांव के मुखिया नारायण पटेल ने भी मेल टूडे को बताया कि गांव वालों की मानसिकता बदलने में वे असफल हो गए और प्रधानमंत्री द्वारा दी गयी सुविधाओं का उचित उपभोग नहीं सके। पटेल ने कहा, ‘ये चीजें हर जगह होती है। मैं इन्हें कहता रहता हूं कि ऐसे काम न करें। वे सुनते नहीं। चोरी और तोड़-फोड़ वाले काम मेरे सामने नहीं होते। मुश्किल इनकी मानसिकता में है।‘

टॉयलेट होते हुए भी खुले में शौच

शौचालय का उपयोग क्यों नही किया जाता पूछने पर एक ग्रामीण ने कहा, ‘खुले में शौच के लिए जाना अच्छा है और इसके लिए पानी की भी कम जरूरत पड़ती है।‘ पक्का शौचालय का उपयोग यहां के ग्रामीण स्टोरेज स्पेस के तौर पर करते हैं जहां वे गाय के गोबड़ जमा करते हैं।

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सरदार पटेल महाविद्यालय के बीए सेकेंड इयर के छात्र सत्येंद्र कुमार के अनुसार स्वच्छ भारत अभियान के तहत यहां 400 शौचालय बनाए गए हैं जिसमें बायो-टॉयलेट भी हैं। लेकिन इसमें से केवल 20 फीसद ही ग्रामीणों द्वारा उपयोग किए जाते हैं। अधिकांश शौचालयों से फिटिंग्स और नलों को चुरा लिया गया है।

कौन मानता है अपनी गलती

बस स्टैंड पर टूटी कुर्सियों पर बैठ जुआ खेल रहे गांव के युवाओं ने अपनी ओर से होने वाले किसी तरह की गलती से इंकार करते हुए प्रशासन पर ही दोष मढ़ दिया और कहा कि यहां स्टैंड में अच्छी कुर्सियां नहीं लगायी गयी थी। जबकि कुमार का कहना है कि ऐसा नहीं है गांव के मुखिया ने कुर्सियों के टूट जाने पर बनवाना इसलिए छोड़ दिया क्योंकि जितनी बार भी इन कुर्सियों की मरम्मत की गयी ये दोबारा से तोड़ दी जाती हैं। ऐसे ही लोगों के डर से यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के लोकल ब्रांच को अपना डिजिटल नॉलेज सेंटर जो कि लाइब्रेरी व कंप्यूटर सेंटर है बंद रखना पड़ता है। गांव में बैंक व सेंटर दोनों ही मोदी द्वारा गोद लिए जाने के बाद वर्ष 2014 में खोले गए।

बैंक के ब्रांच हेड प्रसनजीत शील ने कहा, ‘शुरुआत में हम सेंटर को खुला रखते थे। इसके बाद यहां से पुस्तक व पत्रिकाएं गायब होने लगी।‘ लाइब्रेरी में कृषि संबंधित पत्रिकाओं के अलावा हिंदी अखबार व समाचार पत्रिका होते थे। शील ने कहा,’ अब हम इसे आवश्यकतानुसार दो से तीन घंटों के लिए ही खोलते हैं और वहां किसी को मॉनिटरिंग के लिए जरूर रखते हैं। यदि आप लाइब्रेरी को दो दिन के लिए बिना किसी कंट्रोलर के छोड़ दें, यहां मौजूद हर एक चीज लोग उठाकर ले जाएंगे।‘ बैंक ने भी 35 सोलर लैंप दिए थे जिसमें से 8 बैटरियों की चोरी हो गयी।

प्रधानमंत्री ने दी थी अनेकों सुख-सुविधाएं

उन्होंने आगे बताया कि गोद लिए जाने के बाद मोदी ने गांव व यहां के लोगों के लिए ढेर सारी सुविधाएं उपलब्ध करायी। जिसमें अच्छी सड़कों, वॉटर पंप, बीएसएनएल टावर, वाटर टैंक और एटीएम जैसी सुविधाएं शामिल थीं। शील ने आगे बताया कि इन ग्रामीणों के लिए ‘मैं’ का महत्व है न कि ‘हम’ का। उन्हेांने बताया,’जब बैंक का उद्घाटन हुआ था, उस वक्त अकाउंट खोले जाने वालों की भीड़ थी। ग्रामीणों का मानना था कि चूंकि मोदी ने गांव को गोद लिया है तो प्रत्येक के अकाउंट में वे पैसे भी डालेंगे।‘