जब मैं प्रताड़ित थी तो चुप थे भारत के तमाम लेखक: तसलीमा
पुरस्कार वापस कर रहे लेखकों को कोई सलाह देने से इंकार करते हुए जानी-मानी लेखिका तसलीमा नसरीन ने अपने मामले में उनके रवैये पर अपनी पीड़ा बयान की है। उन्होंने कहा कि भारत के अधिकांश बुद्धिजीवियों ने तब कुछ नहीं कहा था जब वह मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर थीं।
By Test3 Test3Edited By: Updated: Sat, 17 Oct 2015 09:17 PM (IST)
नई दिल्ली। पुरस्कार वापस कर रहे लेखकों को कोई सलाह देने से इंकार करते हुए जानी-मानी लेखिका तसलीमा नसरीन ने अपने मामले में उनके रवैये पर अपनी पीड़ा बयान की है। उन्होंने कहा कि भारत के अधिकांश बुद्धिजीवियों ने तब कुछ नहीं कहा था जब वह मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर थीं। हालांकि जब वे हमले का शिकार हुए तब मैंने उनका साथ दिया था, क्योंकि मैं ढोंग नहीं करती।
ये भी पढ़े: ट्विटर पर शादी के प्रस्ताव से भड़की तसलीमा अपने बेबाक लेखन और टिप्पणियों के लिए चर्चित तसलीमा के अनुसार कुछ भारतीय लेखकों ने उनकी पुस्तक पर पाबंदी लगाने और उन्हें पश्चिम बंगाल से बाहर किए जाने का भी समर्थन किया था। तसलीमा ने कहा कि तमाम भारतीय लेखक तब भी चुप रहे जब उनके खिलाफ फतवे जारी हुए, उन्हें दिल्ली में नजरबंदी की हालत में रहना पड़ा और उनकी किताब पर आधारित एक टीवी धारावाहिक का प्रसारण रोक दिया गया। उन्होंने ज्यादातर भारतीय लेखकों को दोहरे मानदंड वाला करार दिया। बांग्लादेश से निर्वासित लेखिका के मुताबिक भारत में ज्यादातर सेक्युलर लोग मुस्लिम समर्थक और हिंदू विरोधी हैं। वे हिंदू कट्टरपंथियों के कामों का तो विरोध करते हैं,लेकिन मुस्लिम कट्टरपंथियों का बचाव करते हैं।ये भी पढ़े: मुझे कोलकाता आने से रोक रही हैं ममता-तसलीमा
तसलीमा ने दादरी की खौफनाक घटना पर कहा कि उन्हें लगता है कि भारतीय समाज में असहिष्णुता बढ़ रही है। सघन सुरक्षा में रहने को विवश तसलीमा ने उन खबरों पर कोई सीधी प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की जिनमें कहा गया था कि पश्चिम बंगाल के 70 से ज्यादा लेखकों ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को पत्र लिखकर बोलने की आजादी की हिफाजत के लिए दखल देने की मांग की है, लेकिन उन्होंने उन ट्वीट को अवश्य आगे बढ़ाया जिनमें यह सवाल उठाया गया था कि क्या लेखकों की यह टोली तसलीमा की सुध लेगी? तसलीमा के मुताबिक अगर शिवसेना की बेजा हरकतों से नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता कम होती है तो यह दुखद होगा। उन्होंने भारतीय लेखकों को कोई सलाह देने से इंकार करते हुए कहा कि अगर वे पुरस्कार वापस करना चाहते हैं तो उन्हें ऐसा करना चाहिए और इसमें कुछ गलत नहीं।