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नमो पर नरम पड़े जोशी और सुषमा

वाराणसी के भंवर में घिरी भाजपा की नाव किनारे आने लगी है। वर्तमान सांसद डॉ मुरली मनोहर जोशी वाराणसी सीट प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के लिए छोड़कर दूसरी सुरक्षित सीट कानपुर से लड़ने पर राजी हो सकते हैं। खुद संघ ने आशा जताई है कि वाराणसी का विवाद खत्म हो जाएगा। माना जा रहा है कि 13 मार्च की चुनाव समिति की बैठक में वाराणसी, लखनऊ और कानपुर जैसी सीटों के लिए भी उम्मीदवार तय हो जाएंगे।

By Edited By: Updated: Mon, 10 Mar 2014 08:23 AM (IST)

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। वाराणसी के भंवर में घिरी भाजपा की नाव किनारे आने लगी है। वर्तमान सांसद डॉ मुरली मनोहर जोशी वाराणसी सीट प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के लिए छोड़कर दूसरी सुरक्षित सीट कानपुर से लड़ने पर राजी हो सकते हैं। खुद संघ ने आशा जताई है कि वाराणसी का विवाद खत्म हो जाएगा। माना जा रहा है कि 13 मार्च की चुनाव समिति की बैठक में वाराणसी, लखनऊ और कानपुर जैसी सीटों के लिए भी उम्मीदवार तय हो जाएंगे।

ऐन वक्त पर पार्टी के अंदर मची कलह पर काबू पाने की कोशिशें तेज हो गई है। बताते हैं कि अलग-अलग वरिष्ठ नेताओं के बीच बातचीत हुई। शनिवार को अपनी नाराजगी जताने वाले जोशी भी रविवार को थोड़ा बदले हुए थे। बैठक में परोक्ष रूप से उनका समर्थन करने वाली सुषमा स्वराज ने भी मीडिया में आई खबरों को तोड़-मरोड़कर पेश गई बातें बताया है।

एक सवाल के जवाब में जोशी ने कहा, 'संसदीय बोर्ड की बैठक में फैसला होता है..मुझे लगता है कि ऐसा कोई फैसला नहीं होगा जिससे हमारे प्रधानमंत्री उम्मीदवार या पार्टी की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचे या चुनावी नतीजे पर असर पड़े।' ध्यान रहे कि मोदी के वाराणसी से चुनाव लड़ने की पूरी संभावना है। जोशी ने इस बात को भी खारिज किया कि वाराणसी में मोदी और उनके समर्थकों के बीच पोस्टर वार छिड़ा हुआ है। उन्होंने कहा, हर अनुशासित सदस्य की जिम्मेदारी होती है कि वह पार्टी की बात माने।

संकेत साफ है कि वह खुद अब विवाद को बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं। लिहाजा 13 मार्च को वाराणसी के प्रत्याशी का एलान हो जाएगा। संभावना है कि उस बैठक में मोदी ने वाराणसी में अपनी रुचि जताई तो जोशी नहीं अड़ेंगे। बेंगलूर में संघ नेता भैयाजी जोशी ने भी कहा कि वाराणसी को लेकर उठे विवाद ने उन्हें चिंतित तो कर दिया है लेकिन भरोसा है कि भाजपा उसे सुलझा लेगी।

कानपुर संसदीय क्षेत्र की विधानसभाओं में भाजपा की अच्छी पकड़ रही है। संसदीय सीट पर भले ही कांग्रेस जीतती रही हो, लेकिन नमो लहर के बाद भाजपा के लिए वह सीट मजबूत हो गई है। अगर जोशी कानपुर से उतरे तो कलराज मिश्र को कोई और सीट देखनी होगी, क्योंकि पहले उनके कानपुर से लड़ने की अटकलें थीं।

बयानबाज नेताओं पर लगेगी लगाम

वाराणसी को लेकर उठे विवाद की आग में ही सार्वजनिक बयान देकर लखनऊ पर अपना दावा पक्का करने में जुटे सांसद लालजी टंडन और अन्य बयानबाज नेताओं को नसीहत दी जा सकती है। पार्टी नहीं चाहती कि इसे आधार बनाते हुए अन्य जगहों पर संभावित प्रत्याशियों के बीच होड़ मचे। खुद संघ भी चाहता है कि सख्त संदेश दिया जाए।

लखनऊ से इस बार पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के चुनाव लड़ने की संभावना है। ऐसे में टंडन ने अपना दावा ठोक खुद के लिए सीट सुरक्षित करने की कोशिश की है। यह और बात है कि पिछले लोकसभा चुनाव में राजनाथ ने ही उन्हें टिकट दिया था। दरअसल चुनाव समिति में इस पर मतभेद था कि अटल बिहारी वाजपेयी की सीट का उत्तराधिकारी उन्हें बनाया जाए। कई कद्दावर नेता उस सीट से उतरना चाहते थे। लेकिन, बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ ने टंडन को उम्मीदवार बनाया। यही नहीं, उनके पुत्र को भी विधानसभा उम्मीदवार बनाया गया था।

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टंडन ने सार्वजनिक बयान दिया है कि वह नरेंद्र मोदी को छोड़कर किसी के लिए सीट खाली नहीं करेंगे। ऐसे में पार्टी नेतृत्व में यह आशंका है कि समय रहते सख्त संदेश नहीं दिया गया तो महत्वाकांक्षा पाल रहे नेताओं की बयानबाजी और तेज होगी।