सपा सरकार की बर्खास्तगी पर अड़े मुस्लिम संगठन
मुजंफ्फरनगर व आसपास के सांप्रदायिक दंगे को जातीय संघर्ष बताकर सपा उसे भले ही हल्के में ले रही हो, लेकिन कई मुस्लिम संगठन अखिलेश सरकार की बर्खास्तगी पर अड़ गए हैं। इस मामले में अखिलेश सरकार की नाकामी मुस्लिम संगठनों को बहुत नागवार गुजरी है। उनमें गुस्सा है और अब सरकार से उनका भरोसा भी उठ गया है।
By Edited By: Updated: Thu, 12 Sep 2013 05:44 AM (IST)
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। मुजंफ्फरनगर व आसपास के सांप्रदायिक दंगे को जातीय संघर्ष बताकर सपा उसे भले ही हल्के में ले रही हो, लेकिन कई मुस्लिम संगठन अखिलेश सरकार की बर्खास्तगी पर अड़ गए हैं। इस मामले में अखिलेश सरकार की नाकामी मुस्लिम संगठनों को बहुत नागवार गुजरी है। उनमें गुस्सा है और अब सरकार से उनका भरोसा भी उठ गया है। मुस्लिम नेताओं का कहना है, 'साफ हो गया कि उत्तार प्रदेश की सपा सरकार में मुस्लिम समुदाय महफूज नहीं रह सकता'।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने बुधवार को मुजफ्फरनगर का दौरा करके सांप्रदायिक हिंसा से हुई तबाही का जायजा लिया। दिल्ली लौटने पर उन्होंने कहा, 'जो मंजर सामने आए हैं। जिस तरह सरकारी मशीनरी की चुप्पी के चलते कौम के लोगों को तबाह किया गया, उससे साफ हो गया है कि अखिलेश सरकार की हुकूमत में मुस्लिम समुदाय के जानमाल की हिफाजत नहीं हो सकती। मुजफ्फरनगर दंगे के चलते लगभग 30 हजार लोग बेघर हुए हैं। जो लोग शिविरों में हैं, वे जान गंवाने के डर से गांव लौटने को तैयार नहीं। लिहाजा, सरकार को बर्खास्त कर वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाना जरूरी हो गया है।' उन्होंने कहा कि जमीयत गुरुवार को कई दूसरी तंजीमों के साथ बैठक करेगी। जबकि जमीयत उलेमा-ए-हिंद की उत्तार प्रदेश यूनिट गुरुवार को लखनऊ में अखिलेश सरकार के खिलाफ धरना देगी। कई अन्य मुस्लिम संगठन भी प्रधानमंत्री को चिट्ठी भेजकर अखिलेश सरकार की बर्खास्तगी की मांग कर चुके हैं। जमात-ए-इस्लामी हिंद के अमीर-ए-आलम मौलाना जलालुद्दीन उमरी ने कहा, 'राज्य सरकार चाहती तो दंगा रोक सकती थी, लेकिन उसने उसे होने दिया। कीमत मुसलमानों को जान देकर चुकानी पड़ी। अखिलेश सरकार के डेढ़ साल में अब तक 70-75 दंगे हो चुके हैं। हर दंगे में नुकसान मुसलमानों का ही होता है। मुसलमानों ने सपा की सरकार बनवाने में इसलिए दिल-ओ-जान से मदद की कि वे उनकी जानमाल की हिफाजत करेंगे। वह एतबार खत्म हो गया। मुसलमानों में मायूसी है।' उन्होंने जोड़ा कि लोकसभा चुनाव आने वाला है। जो सूरतेहाल है, देखिए सपा के साथ के साथ क्या होता है? उधर, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के सदर मौलाना अरशद मदनी ने कहा, 'कौन इन्कार करेगा कि दंगे न रोक पाने में अखिलेश सरकार की गलती नहीं है। मुजफ्फरनगर में तो 1947 में भी दंगे नहीं हुए थे। वहां मुसलमानों पर अब तक खास बिरादरी का जुल्म था। अब वह धीमा पड़ गया है तो पीएसी के जवान तलाशी के बहाने मुस्लिम युवकों पर जुल्म ढा रहे हैं। उन्हें जेल भेज रहे हैं।' मौलाना ने यह भी कहा,'मुजफ्फरनगर का मसला बड़ा नहीं था। लेकिन जिला इंतजामिया ने आंखें बंद कर ली और एक सियासी पार्टी ने राजनीतिक रोटियां सेंक ली। उससे भाजपा का फायदा हुआ और मुलायम मैदान से बाहर हो गए'।
अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को न्यायिक जांच स्वीकार्य नहीं है। यह आरोपियों को बचाने का मंच है। इसलिए सीबीआइ जांच होनी चाहिए। - मौलाना अबुल कासिम नोमानी, दारुल उलूम देवबंद के वाइस चांसलर
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