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मुजफ्फरनगर दंगे पर सख्त हुआ सुप्रीम कोर्ट

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। मुजफ्फरनगर दंगों पर सख्ती दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट जांच के साथ राहत व पुनर्वास कार्यो की आखिर तक निगरानी के लिए तैयार हो गया है। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित मामला भी अपने यहां स्थानांतरित कर लिया है। अब तक एक-

By Edited By: Updated: Fri, 20 Sep 2013 08:07 AM (IST)
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जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। मुजफ्फरनगर दंगों पर सख्ती दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट जांच के साथ राहत व पुनर्वास कार्यो की आखिर तक निगरानी के लिए तैयार हो गया है। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित मामला भी अपने यहां स्थानांतरित कर लिया है। अब तक एक-दूसरे पर तोहमत लगा रही केंद्र और उप्र सरकार ने कोर्ट में सुर में सुर मिला लिया है। केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को हर तरह की मदद देने की प्रतिबद्धता जताते हुए साफ कर दिया है कि कानून व्यवस्था राज्य का मसला है। वह उसमें दखल नहीं देगी। वहीं राज्य सरकार ने मामले के राजनीतिकरण के प्रयासों का विरोध करते हुए कहा कि वह पीड़ितों को राहत और मदद देने में केंद्र सरकार के साथ मिलकर काम कर रही है।

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मुख्य न्यायाधीश पी. सतशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि एक ही मामले में दो जगह सुनवाई की आवश्यकता नहीं है। साथ ही कहा कि हम पूरे मामले की निगरानी करेंगे। फिलहाल हम कोई अंतिम फैसला नहीं सुना रहे। कोर्ट ने ये आदेश मुजफ्फरनगर निवासियों व सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए। गुरुवार को याचिकाकर्ताओं के वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने केंद्र और राज्य के हलफनामे का हवाला देते हुए कहा कि दंगा पीड़ितों को दी जा रही मदद अपर्याप्त है। कोर्ट ने राहत शिविर लगाने और पीड़ितों के पुनर्वास का आदेश दिया था। लेकिन पीड़ित खुले मैदान में टेंट में रह रहे हैं। केंद्र सरकार भी जमीनी तौर पर कुछ नहीं कर रही सिर्फ पत्र लिखकर उपलब्ध केंद्रीय योजनाओं का ब्योरा दे रही है। वह एक दूरी बनाए हुए है। इस पर पीठ ने कहा कि ब्योरा देखकर नहीं लगता कि सरकार ने कुछ नहीं किया। केंद्र की ओर से पेश अटार्नी जनरल ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि कानून-व्यवस्था राज्य का मसला है इसलिए केंद्र उसमें दखल नहीं दे रहा। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता संविधान के अनुच्छेद 258ए, 355, 356 का हवाला देकर केंद्र से दखल देने की मांग कर रहे हैं। क्या ये मसला ऐसा है कि केंद्र सरकार इन प्रावधानों के तहत दखल दे।

प्रदेश सरकार ने पीड़ितों को दी जा रही मदद का विस्तृत ब्योरा देते हुए कहा कि इसे अपर्याप्त नहीं कहा जा सकता। राज्य केंद्र के साथ मिलकर काम कर रहा है। मामले को राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए। हमारे देश में दंगे होते हैं जो दुर्भाग्यपूर्ण है। गुजरात इसका एक उदाहरण है। ताजा स्थिति पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि अब तक हिंसा में 50 लोग मारे गए हैं। जबकि 27 गंभीर और 46 को हल्की चोटें आई हैं। करीब 42000 लोग मुजफ्फरनगर और शामली से विस्थापित हो चुके हैं। इस पर कोर्ट ने चिंता भी जताई। कोर्ट ने सरकार को 26 सितंबर तक स्थिति रिपोर्ट पेश करने का आदेश देते हुए सुनवाई टाल दी। सुनवाई के दौरान एक टीवी चैनल के स्टिंग का भी मुद्दा उठा। लेकिन कोर्ट ने आदेश देने से बचते हुए पहले अर्जी दाखिल करने को कहा। याचिकाकर्ता वकील एमएल शर्मा ने सिर्फ एक वर्ग विशेष को मदद देने का आरोप लगाया।

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