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अल्पसंख्यकों के दिलों तक पहुंचेगी मोदी सरकार

केंद्र में भाजपानीत नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद उसकी कोशिश अल्पसंख्यकों तक पहुंचने की है। सांप्रदायिक गैर सांप्रदायिक की लड़ाई में भाजपा से दूर रहे इस वर्ग ने चुनावों में कुछ कदम उसकी ओर बढ़ाए तो मोदी सरकार अब उनके दिलों तक पहुंचने के तमाम रास्ते खोल रही है। सरकार की इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का

By Edited By: Updated: Wed, 25 Jun 2014 10:41 PM (IST)
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नई दिल्ली। केंद्र में भाजपानीत नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद उसकी कोशिश अल्पसंख्यकों तक पहुंचने की है। सांप्रदायिक गैर सांप्रदायिक की लड़ाई में भाजपा से दूर रहे इस वर्ग ने चुनावों में कुछ कदम उसकी ओर बढ़ाए तो मोदी सरकार अब उनके दिलों तक पहुंचने के तमाम रास्ते खोल रही है। सरकार की इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को निभा रहीं केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री नजमा हेपतुल्ला से दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता सीतेश द्विवेदी ने बातचीत की। पेश है उनसे बातचीत के मुख्य अंश:-

मंत्री के रूप में आपकी प्राथमिकताएं क्या हैं?

मेरी सबसे बड़ी चुनौती है इस देश में सबको साथ लेते हुए देश को तरक्की की राह पर लाना। जब मैं सबकी बात करती हूं तो उसमें हमारे अल्पसंख्यक भी शामिल हैं। भाजपा के घोषणा पत्र में भी सबको समान अवसर देने की बात कही गई थी। उन वादों को पूरा करना मेरी प्राथमिकता है।

आपने कहा कि वादे पूरे करने हैं। कैसे पूरे होंगे, रास्ता क्या होगा?

देखिए हमें मोदीजी के रूप में एक विजनरी प्रधानमंत्री मिले हैं। वह हमेशा अपनी बात उदाहरण सामने रखकर करते हैं। जैसे गुजरात में पतंग बनाने वाले मुस्लिम भाई गरीबी में थे। पतंग को कोई अहमियत भी नहीं देता, मगर उन्होंने इस पर ध्यान दिया। इस क्षेत्र को संगठित किया। पतंग निर्माण को नया आयाम दिया। आज वही कारीगर अपनी बनाई पतंगों का निर्यात करने लगे हैं। अगर नीयत साफ हो तो नीति बनाने और उन्हें कामयाब करने में कोई रुकावट नहीं आती।

आपका रोड मैप क्या होगा?

इसके लिए हम एक समग्र नीति पर काम कर रहे हैं। इसमें हुनर और शिक्षा दोनों को जोड़ने की बात है। हमारी कोशिश है कि जो उनके बाप- दादा का हुनर है उनको न सिर्फ बचाया जाए बल्कि उसे आगे कैसे बढ़ाया जाए यह भी सुनिश्चत किया जाए। जैसे हमने गांव के मदरसों को 'साइबर मदरसा' के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया है। मदरसों को 'डिजिटलाइज' करना है। जो बच्चा महजबी तालीम हासिल कर चुका है उसे जीने के लिए कुछ करना होगा। मोदीजी लगातार जिस स्किल डेवलपमेंट की बात करते हैं वह इसमें एक पुल का काम करेगा। अगर बच्चा आगे पढ़ना चाहता हो तो उसे हिंदी, विज्ञान, गणित, इकोनॉमिक्स में, इंजीनियरिंग में, मेडिकल आदि में 'स्कॉलरशिप' देकर व कोचिंग देकर उसे आगे बढ़ने में सहायता देनी होगी।

अपनी बात को अल्पसंख्यक समाज तक कैसे पहुंचाएंगी?

हमारा फोकस सहज भाषा में आसानी से बात पहुंचाने पर है। इसका बड़ा असर पड़ता है। अब जैसे पहले नरेगा जो मनरेगा हो गई है, उसको देखिए। गांव का आदमी नरेगा को कैसे समझेगा। अगर इसे 'हमारा गांव हमारा काम' जैसा नाम दिया होता तो कितना बेहतर होता। योजनाओं के नाम नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के नाम पर हैं जबकि योजनाओं से इनका कोई रिश्ता नहीं है। हमारी कोशिश है कि लोग योजनाओं से खुद को जुड़ा महसूस करें। भाषा से लोगों के दिल तक पहुंचा जा सकता है। हम सब एक बार उन तक पहुंच पाएं तो वो सारा झूठा खौफ जाता रहेगा जो अब तक बनाया गया है।

अल्पसंख्यक आरक्षण पर आप मुखर रही हैं, महाराष्ट्र में कांग्रेस ने एक बार फिर अल्पसंख्यकों को 4.5 फीसद आरक्षण देने की बात कही है। इसे कैसे देखती हैं आप?

चार फीसद को देंगे तो 96 फीसद का क्या होगा? संविधान इसकी इजाजत नहीं देता। संविधान मोदीजी ने या आरएसएस ने नही बनाया। हम संविधान के हिसाब से चल रहे हैं। संविधान बनाने वाली कांग्रेस ही उसका अनादर कर रही है। यह खाली दिखावा हैं। ये लोग इसी तरह का लालच दिखाकर राजनीति करते हैं। अगर उनकी सरकारों ने इस दिशा में ईमानदार कोशिश की होती तो तो अल्पसंख्यक विकास की प्रक्रिया में आगे होते। आरक्षण की बात करके ये लोग अल्पसंख्यकों के दिलों में असुरक्षा की भावना भर रहे हैं। दरअसल जरूरत है बराबरी का अवसर देने की। जो कमजोर है उसे अंगुली पकड़ कर ऊपर लाया जाए। फिर कहें कि अब आप प्रतिस्पद्र्धा कीजिए। प्रतिस्पद्र्धा की भावना नहीं खत्म होनी चाहिए।

भाजपा और मोदी को लेकर मुस्लिम समाज में संदेह का जो भाव है उसे कैसे दूर करेंगी?

मुसलमान जब देख रहे हैं कि मोदी सरकार की नीयत साफ है। सरकार उनकी हमदर्द है। उनकी जिंदगी में तब्दीली लाना चाहती है। जब वे देखेंगे की सरकार उन्हें अशिक्षा और गरीबी से मुक्ति दिलाना चाहती है तो वे और करीब आएंगे। मेरी कोशिश उनको आशावादी बनाने की है। जब वे आशावादी होंगे तो उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा।

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'वोटों में भले ही मुस्लिम मोदीजी के पक्ष में 10-20 फीसदी दिखते हों, महत्वपूर्ण बात यह है कि वे भेड़िया आया, भेड़िया आएगा की बंदिश से आजाद हो गए हैं। इस बार उन्हें डराकर बाड़े में बंद करने की मुहिम नाकाम हो गई।' -नजमा हेपतुल्ला, केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री

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