2018 से पहले सीवेज गिरने से नहीं रोक पाएगी 'नमामि गंगे' योजना
सरकार की महत्वाकांक्षी 'नमामि गंगे' योजना 2018 से पहले शहरी सीवेज गंगा में गिरने से नहीं रोक पाएगी। केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने जो योजना बनाई है
By Atul GuptaEdited By: Updated: Tue, 09 Feb 2016 03:44 AM (IST)
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सरकार की महत्वाकांक्षी 'नमामि गंगे' योजना 2018 से पहले शहरी सीवेज गंगा में गिरने से नहीं रोक पाएगी। केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने जो योजना बनाई है उस हिसाब से 'नमामि गंगे' के तहत पहला सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट दो साल बाद बनकर तैयार होगा। तब तक शहरी गंदे नाले गंगा में गिरते रहेंगे। इस बीच मंत्रालय ने गंगा को निर्मल दिखाने के मकसद से अलग अलग शहरों मंे नालों से ठोस कचरा इकठ्ठा करने की योजना बनाई है जिससे गंगा की धारा ऊपर से तो साफ दिखेगी लेकिन हकीकत में उसमें प्रदूषण की भरमार होगी।
केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने गंगा नदी को निर्मल बनाने की जो कार्ययोजना तैयार की है, उसी में ये चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। हालांकि यह बात अलग है कि डेढ़ साल बीतने और कई विशेषज्ञ समितियों की सिफारिशों के बाद भी अब तक मंत्रालय ने गंगा नदी के लिए न्यूनतम पारिस्थितिकीय प्रवाह तय नहीं किया है। सूत्रों के अनुसार मंत्रालय ने अभी तक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के लिए टेंडर भी जारी नहीं किए हैं। सरकार मई से जुलाई के दौरान 30 शहरों में एसटीपी के लिए टेंडर जारी करेगी। इसके बाद अक्टूबर तक 50 शहरों के लिए कंसेसनरीज (ठेका प्राप्त करने वाली कंपनी) तय करने की योजना है। बाकी शहरों के लिए टेंडर 2017 में जारी किए जाएंगे। मंत्रालय यह मानकर चल रहा है कि नमामि गंगे के तहत बनने वाले एसटीपी 2018 में जाकर चल पाएंगे। तब तक गंगा में गंदगी का प्रवाह यूं ही जारी रहेगा। सूत्रों ने कहा कि शहरी सीवेज को गंगा में गिरने से रोकने से पहले मंत्रालय ठोस कचरे को नदी में जाने से रोकने की योजना बना रहा है। इससे कम से कम ऊपर से गंगा साफ दिखेगी। इसके तहत वाराणसी सहित कई शहरों में 'ट्रासबूम' लगाए जा रहे हैं ताकि ठोस कचरे को गंगा में जाने से रोका जा सके। हालांकि इससे नदी के जल की गुणवत्ता में कोई व्यापक सुधार नहीं होगा।
इस बीच मंत्रालय की कार्ययोजना पर सिविल सोसाइटी के लोग सवाल उठा रहा हैं। गंगा महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती का कहना है कि गंगा को लेकर जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय का रवैया टालू और ढीला ढाला रहा है। डेढ़ साल बीतने के बाद भी अब तक गंगा के लिए न्यूनतम पारिस्थितिकीय प्रवाह तय नहीं हुआ है। डेढ़ साल में तीन बार सचिव और तीन बार संयुक्त सचिव बदले गए हैं। यही वजह है कि सरकार ने 30 जनवरी को आठ अलग-अलग मंत्रालय को गंगा को निर्मल बनाने का काम सौंपा है। अब गंगा के कार्य में तेजी आने की उम्मीद है।गंगा में शहरी सीवेज की समस्या
-4789 एमएलडी सीवेज उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल से गंगा में गिरता है। -1016 एमएलडी साफ करने की है क्षमता -3391 एमएलडी सीवेज साफ करने की क्षमता और चाहिए -1187 एमएलडी सीवेज साफ करने को क्षमता पर चल रहा है फिलहाल काम -2618 एमएलडी सीवेज साफ करने के लिए भी फिर भी होगी एसटीपी लगाने को जरूरत -2500 एमएलडी सीवेज साफ करने की क्षमता सरकार नमामि गंगे के तहत 118 शहरों में बनाना चाहती है। अब तक प्रगति 26 मई 2014: उमा भारती जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री बनीं 01 अगस्त 2014: पर्यावरण मंत्रालय से गंगा का काम जल संसाधन मंत्रालय को सौंपा 28 फरवरी 2015: वित्त मंत्री अरुण जेटली ने नमामि गंगे कार्यक्रम का ऐलान किया 13 मई 2015: कैबिनेट ने नमामि गंगे के लिए 20 हजार करोड़ रुपये की पंचवर्षीय योजना को मंजूरी दी 30 जनवरी 2016: गंगा को निर्मल बनाने के लिए केंद्र के आठ मंत्रालयों के बीच एमओयू पढ़ें- नमामि गंगे का पहला चरण: इन पांच शहरों से होगी शुरूआत