..और मुखर हो उठा मौन
गंभीर मुद्रा..मानो अब कोई द्वंद्व नहीं..सामने शांत मां गंगा..और एकटक उसको निहारते भावी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। ठसाठस भीड़ में उनकी एक झलक पाने की कसमसाहट। उसे नियंत्रित करने की सुरक्षा बलों की जद्दोजहद। लेकिन इन सबसे निर्लिप्त वह शांत जैसे मानो मां गंगा से मूक संवाद कर रहे हों। मां गंगा से मुखातिब मोदी के
By Edited By: Updated: Sun, 18 May 2014 03:31 AM (IST)
आलोक मिश्र, वाराणसी। गंभीर मुद्रा..मानो अब कोई द्वंद्व नहीं..सामने शांत मां गंगा..और एकटक उसको निहारते भावी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। ठसाठस भीड़ में उनकी एक झलक पाने की कसमसाहट। उसे नियंत्रित करने की सुरक्षा बलों की जद्दोजहद। लेकिन इन सबसे निर्लिप्त वह शांत जैसे मानो मां गंगा से मूक संवाद कर रहे हों। मां गंगा से मुखातिब मोदी के भावों से लग रहा था कि काशी से उनका रिश्ता शब्दों की व्याख्या से कहीं बढ़कर है।
दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती के दौरान मोदी के अगल-बगल बैठे थे राजनाथ सिंह व अमित शाह। अमित शाह लोगों से बातचीत करते रहे लेकिन मोदी भजन में मगन..अंगुलियों को आपस में बजाते..कभी आंखें बंद करते तो कभी खोल कर मगन मुद्रा में गर्दन हिलाते। शायद वह काशी के इस पावन तट पर अपनी एक शाम बिताना चाह रहे थे-उसमें रम जाना चाहते थे। देश ने जिस तरह उन्हें सिर पर बिठाया..जिस तरह की उनसे अपेक्षा है..जिस तरह के चुनौती पूर्ण दिन उनके सामने आने वाले हैं.उनसे जूझने से पहले वह यह शाम अपनी बनाना चाहते थे। शनिवार को वो सारे कोलाहल से दूर अपनी संसदीय सीट वाराणसी आए। सुरक्षा एसपीजी के हाथों में थी। बंद बुलेट प्रूफ गाड़ी में शीशे से बाहर खड़ी भीड़ को निहारते..आंखों से आभार प्रकट करते..उनका काफिला बढ़ता गया। अपने सांसद को प्रधानमंत्री पद पर आसीन देख काशी वासी भी इतने से निहाल..आखिर हो भी क्यों ना। जिसको चुना वो प्रधानमंत्री बन गया। आरती के बाद उनके बोल फूटे। वो कोई भाषण नहीं, संवाद था। जिसमें न आज मां-बेटा थे, न बाप-बेटा.सिर्फ और सिर्फ अपने मतदाताओं के प्रति कृतज्ञता थी मौन पर मुहर लगाने की। काशी को गांधी से जोड़ यहां की गलियों की गंदगी दूर करने की चाह थी। इसे आध्यात्मिक राजधानी बनाने की कसक थी। संवाद इतना सार्थक कि लोग हंस रहे थे..तालियां बजा रहे थे। कहीं कोई राजनीति नहीं..कहीं कोई आश्वासन नहीं। सिर्फ और सिर्फ संवाद जो पहले मूक था अब बोल बन कर फूटा। उससे पहले बाबा विश्वनाथ के दरबार में भी श्रद्धा ने अपना रूप दिखाया। आस्था से अतिरेक भाव लिए मोदी ने वहां पूरे विधि-विधान से पूजा की।
23 दिन में तीन बार काशी आगमन। हर बार उनका बदला स्वरूप। पहली बार 24 अप्रैल को नामांकन करने आए तो काशी पलक पांवड़े बिछा कर उनके साथ चल दी। वे केवल मां गंगा का नाम लेकर रह गये। दूसरी बार आठ मई को सभा करने आना था। प्रशासन ने अड़ंगा लगाया तो बंद गाड़ी में आए और गंगा को नमन करके चले गए। शायद उन्होंने उसी समय संकल्प ले लिया था कि मां अब आऊंगा तो देश जीत कर..और शनिवार को जब गंगा तीरे पहुंचे तो पूरा देश जीत कर। आज जो शब्द निकले तो काशी निहाल हो गई। तस्वीरें: वाराणसी में मोदी की गंगा आरती