नई दिल्ली, विवेक तिवारी । जलवायु परिवर्तन के चलते पूरी दुनिया में तापमान बढ़ा है। लेकिन हाल ही में हुए एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि ग्लोबल वार्मिंग के बीच दिन और रात के तापमान में अंतर भी तेजी से बढ़ा है। 1961 से 2020 के बीच दिन में गर्मी बढ़ी है, वहीं रात के तापमान में बहुत अधिक बदलाव नहीं आया। वैज्ञानिकों का मानना है कि दिन और रात के तापमान में इस असंतुलन का असर धरती पर मौजूद सभी जीवों और पेड़ पौधों पर पड़ सकता है। इस असंतुलन से इंसानों में बीमारियां बढ़ने का भी खतरा है।

स्वीडन में चाल्मर्स यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि 1990 के दशक के बाद से दिन के समय गर्मी तेजी से बढ़ी है। इस बदलाव का मतलब है कि दिन और रात के बीच तापमान का अंतर बढ़ रहा है, जो संभावित रूप से पृथ्वी पर सभी तरह के जीवन को प्रभावित कर रहा है। नेचर जर्नल में छपे इस शोध में बताया गया है कि मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन के कारण धरती का तापमान बढ़ रहा है। बीसवीं सदी में रात के तापमान में दिन के तापमान की तुलना में तेज़ गति से वृद्धि हुई है। वैश्विक स्तर पर दिन और रात के बीच बढ़ते तापमान के अंतर को "असममित वार्मिंग" कहा जा रहा है। चाल्मर्स यूनिवर्सिटी में पोस्ट-डॉक्टरल शोधकर्ता ज़िकियान झोंग कहते हैं कि हमने अध्ययन की शुरुआत में ये जानने का प्रयास किया कि दिन की तुलना में रात में तापमान कितना बढ़ा है। लेकिन डेटा का अध्ययन करने पर पता चला कि पिछले तीन दशक में स्थितियां बेहद बदल गई हैं। 1980 के दशक में सामने आए "ग्लोबल ब्राइटनिंग" फिनॉमिना सामने आया। यह सिकुड़ते बादलों का परिणाम है, इससे अधिक सूर्य की रोशनी पृथ्वी की सतह तक पहुंचती है, जिससे दिन का तापमान बढ़ जाता है और इसके परिणामस्वरूप, हाल के दशकों में दिन और रात के तापमान के बीच अंतर बढ़ा है।

ज़िकियान झोंग के मुताबिक दिन और रात के बीच बढ़े हुए तापमान के अंतर के चलते पर्यावरण में तनाव बढ़ा है। इससे हमारे दिल की गति और ब्लड प्रेशर पर असर पड़ सकता है। इससे दिल के साथ ही सांस की बीमारियां बढ़ने का खतरा है। जिसके परिणामस्वरूप हृदय संबंधी कार्यभार बढ़ सकता है और हृदय और श्वसन रोगों की मृत्यु दर और रुग्णता बढ़ सकती है। वहीं दिन और रात के बीच बढ़ते तापमान के अंतर के कारण आर्द्र क्षेत्रों में कुछ पेड़ों की प्रजातियां अपनी कार्बन अवशोषण क्षमता को बढ़ा सकती हैं। वहीं तापमान में ये अंतर शुष्क क्षेत्रों में पेड़ों के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है, क्योंकि दिन के ज्यादा तापमान से वाष्पीकरण बढ़ सकता है, जिससे मिट्टी में पानी की कमी हो सकती है और पेड़ों के विकास में मुश्किल होगी।

ग्लोबल वार्मिंग के चलते पूरी दुनिया में कई तरह के संकट उत्पन्न हुए हैं। मौसम वैज्ञानिक समरजीत चौधरी कहते हैं कि निश्चित तौर पर ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते दिन और रात के तापमान में अंतर बढ़ा है। दरअसल पूरी दुनिया में हो रहे प्रदूषण के चलते वायुमंडल में कार्बन की मात्रा बढ़ रही है। हवा में मौजूद ये कार्बन सूरज की गर्मी को सोख लेता है और लम्बे समय तक वायुमंडल में ये गर्मी बनी रहती है। जिससे दिन का तापमान रातों की तुलना में बढ़ रहा है। पूरी दुनिया में गर्मी को घटाने के लिए कुछ प्रयास हो भी रहे हैं लेकिन युद्ध जैसी स्थितियों और जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से ये प्रयास नाकाम साबित हो रहे हैं। एक अध्ययन के मुताबिक पूरी दुनिया में प्रयास किए जाएं तो भी ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचाने की गैसों और वायुमंडल को गर्म कर रही कार्बन की मात्रा को नियंत्रित करने में 20 साल से ज्यादा का समय लगेगा। ग्लोबल वार्मिंग के चलते सोलर रेडिएशन बढ़ रहा है। सर्दियों के दिन कम हो रहे हैं। ऐसी जगहें जहां सर्दियों में तापमान बेहद कम हो जाता था वहीं तापमान बढ़ा है। इससे आने वाले दिनों में मुश्किलें बढ़ेंगी।

वैज्ञानिकों के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग के चलते आने वाले दिनों में एक्सट्रीम इवेंट्स की घटनाएं बढ़ेंगी। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के जलवायु परिवर्तन मामलों के एक्सपर्ट अक्षत कहते हैं कि हवा में मौजूद प्रदूषक तत्व सूरज की गर्मी को सोख लेते हैं जिससे तापमान बढ़ रहा है। पिछले एक दशक में हवा में प्रदूषक कणों की मात्रा बढ़ना ग्लोबल वार्मिंग का एक बड़ा कारण है। दिन के समय सोलर रेडिएशन का प्रभाव अधिक रहता है। ऐसे में रात की तुलना में दिन में गर्मी बढ़ी है। इसी के असर के चलते पूरी दुनिया में गर्मियों के मौसम में हीट वेव कंडीशन के मामले भी बढ़ते देखे जा रहे हैं। दुनिया भर में चक्रवात बढ़ने के पीछे भी ये ही कारण है। अगर समय रहते प्रदूषण पर लगाम लगाने के साथ ही ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम करने के लिए तेजी से कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले समय में बाढ़, सूखा, हीट वेव जैसे एक्सट्रीम इवेंट बढ़ेंगे।

तापमान में बदलाव का असर दिल सहित पूरे शरीर पर पड़ता है। एम्स कॉर्डियोलॉजी के पूर्व निदेशक संदीप मिश्रा कहते हैं कि हार्ट रेट वेरिबिएलिटी अचानक से होने वाली मौतों का एक बड़ा कारण बन कर सामने आया है। हार्ट रेट वेरिबिएलिटी कम होने से अचानक दिल का दौरा पड़ने से मौत का खतरा बढ़ जाता है। वहीं हार्ट रेट वेरिबिएलिटी बढ़ जाने से हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाता है। ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव या अधिक गर्मी बढ़ने से हार्ट रेट वेरिबिएलिटी घट जाती है। वेरिबिएलिटी कम होने से हार्ट अटक का खतरा बढ़ जाता है। योग और अन्य तरह के व्यायाम करके हार्ट रेट वेरिबिएलिटी को बढ़ाया जा सकता है। तापमान में अंतर आने या गर्मी बढ़ने से दिल तक जाने वाली धमनियों पर भी असर पड़ता है। गर्मियों में धमनियां खुल जाती हैं वहीं सर्दियों में सिकुड़ जाती हैं । तापमान में ज्यादा बदलाव होने पर इस पर भी असर होता है।

क्या है ग्लोबल ब्राइटनिंग

ग्लोबल ब्राइटनिंग या वैश्विक चमक, ग्लोबल वार्मिंग से जुड़ी एक घटना है। ग्लोबल वार्मिंग, पृथ्वी के वायुमंडल में गर्मी को रोकने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में बढ़ोतरी के कारण होती है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण, वायुमंडल का तापमान बढ़ जाता है। ग्लोबल डिमिंग और ग्लोबल वार्मिंग, पर्यावरण के लिए खतरनाक हैं। ग्लोबल वार्मिंग, पृथ्वी के वायुमंडल को गर्म करती है, जबकि ग्लोबल डिमिंग, पृथ्वी में प्रवेश करने वाले सौर विकिरण की मात्रा को कम करती है।

पिछले 70 सालों में भारत में भी बढ़ी गर्मी

आईआईटी भुवनेश्वर, फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में पाया कि भारत में पिछले 70 सालों में गर्मी तेजी से बढ़ी है। अध्ययन में देश भर के 395 मौसम स्टेशनों से 1951 से 2013 की अवधि के बीच के अलग अलग डेटासेट का आकलन किया गया। अध्ययन में गर्मी, मानसून और सर्दियों की अवधि के लिए अधिकतम, न्यूनतम और दैनिक औसत तापमान डेटा का विश्लेषण किया गया। अध्ययन में पाया गया कि उत्तर-पश्चिमी भारत में 1970 के दशक की शुरुआत में गर्मी में तेजी से बढ़ोतरी देखी गई। वहीं 2000 और 2010 के दशक में इसमें तेजी आई है। 2010 के दशक में अप्रैल और मई के लिए दैनिक अधिकतम तापमान का दशकीय औसत भारत के बड़े हिस्से में 40 से 42 डिग्री है। 1950 के दशक में, इतने उच्च तापमान वाला क्षेत्र सीमित था और दक्षिण-मध्य भारत में केवल एक छोटा सा स्थान था जो 41 डिग्री तक पहुंचता था। 40 डिग्री से अधिक तापमान वाले क्षेत्र का विस्तार 1970 और 1980 के दशक में शुरू हुआ, जबकि दक्षिण-मध्य भारत में 41 डिग्री से अधिक तापमान वाले क्षेत्र का विस्तार हुआ है। 1990 के दशक में तापमान में थोड़ी कमी के बाद, 2000 और 2010 के दशक में 40 डिग्री से अधिक तापमान वाले क्षेत्र में नाटकीय रूप से विस्तार हुआ है। अध्ययन में पाया गया कि 2010 के दशक में दक्षिण-मध्य भारत में 42 डिग्री से अधिक तापमान वाला क्षेत्र सामने आया है।