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जानिए, क्‍यों निचली अदालतों में जजों के 5 हजार पद हैं खाली

अधीनस्थ न्यायपालिका में जजों के कुल स्वीकृत पदों की संख्या 2010 के अंत में 16,949 थी। दिसंबर, 2016 में यह संख्या बढ़कर 22,288 हो गई।

By Tilak RajEdited By: Updated: Tue, 05 Dec 2017 08:45 AM (IST)
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जानिए, क्‍यों निचली अदालतों में जजों के 5 हजार पद हैं खाली

नई दिल्ली, एजेंसी। देशभर की निचली अदालतों में जजों के करीब 5,000 से पद खाली हैं। इसका मुख्य कारण योग्य अभ्यर्थियों की कमी और पिछली भर्तियों की प्रक्रिया पूरी न हो पाना है। विधि मंत्रालय के एक दस्तावेज में यह बात कही गई है। इसे कानून मंत्रालय से जुड़ी संसदीय सलाहकार समिति के सदस्यों को भेजा गया है।

दस्तावेज कहता है कि निचली अदालतों को भारतीय न्याय व्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। अधीनस्थ न्यायपालिका में जजों के कुल स्वीकृत पदों की संख्या 2010 के अंत में 16,949 थी। दिसंबर, 2016 में यह संख्या बढ़कर 22,288 हो गई। पिछले साल 30 जून तक देशभर में निचली अदालतों में 4,937 जजों के पद खाली थे। दस्तावेज के अनुसार, 'उच्च न्यायालयों के रिक्त पदों को भरने में देरी के कुछ कारण हैं। इनमें योग्य अभ्यर्थियों को ढूंढने में असमर्थता, पिछली भर्तियों को चुनौती देने वाले मामलों का अदालतों में लंबित होना तथा हाई कोर्टों और राज्य लोक सेवा आयोगों के बीच समन्वय में कठिनाइयां शामिल हैं।'

इसके साथ ही दस्तावेज कहता है कि देशभर में जिला और अधीनस्थ अदालतों के लिए सिर्फ 17,576 कोर्ट रूम/कोर्ट हाल तथा मात्र 14,363 आवासीय इकाइयां उपलब्ध हैं। देशभर में अधीनस्थ अदालतों में न्यायिक अधिकारियों/जजों की स्वीकृत संख्या 22,288 है। यानी यदि जजों के पद रिक्त न भी होते तो भी वे कहां बैठकर मुकदमों की सुनवाई करते यह भी बड़ी समस्या होती।

ऐसे में कोर्ट रूमों/कोर्ट हालों तथा न्यायिक अधिकारियों/जजों के स्वीकृत पदों की संख्या बराबर करने पर ध्यान है। ऐसा होने से देश में न्यायपालिका के कामकाज और प्रदर्शन में सुधार करने में मदद मिलेगी। गत 16 नवंबर को, सरकार ने निचली अदालतों के बुनियादी ढांचे का विकास करने के लिए खुद के द्वारा प्रायोजित योजना को जारी रखने का फैसला किया। यह योजना अधीनस्थ अदालतों के न्यायिक अधिकारियों के लिए 3,000 कोर्ट रूम और 1,800 आवासीय इकाइयों का निर्माण पूरा होने में मदद मिलेगी।

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