Startup स्पार्क एस्ट्रोनॉमी को लेकर चर्चा में अखबार बांटने वाले का बेटा, सुनीता विलियम्स भी हैं 'फैन'
अखबार बांटने वाले के 19 वर्षीय बेटे की फैन आज सुनीता विलियम्स भी है। इसकी वजह है उसके द्वारा शुरू किया गया स्टार्टअप जो अंतरिक्ष में दिलचस्पी रखने वालों के लिए खास है।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Tue, 07 Jan 2020 11:34 AM (IST)
जौनपुर। उत्तर प्रदेश के जमालपुर गांव से दिल्ली आकर कुसुमपुर पहाड़ी की झुग्गी बस्ती में गुजारा करते हुए बीरबल मिश्रा ने सुबह अखबार बांटने का काम किया तो दिन में सब्जी बेचने का और रात में चौकीदारी की। जुनून बस एक था कि बेटे को पढ़ाना है। आज उनका 19 वर्षीय बेटा आर्यन दिल्ली में अपने सफलतम स्टार्टअप- स्पार्क एस्ट्रोनॉमी को लेकर चर्चा में है। गरीबी के अंधेरे से लड़कर चांद-तारों की चमक तक का उसका यह सफर प्रेरणा से भरा है। उसके कद्रदानों की लिस्ट में आज स्पेस जगत के बड़े- बड़े नाम शामिल हैं। अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स भी इनमें से एक हैं। बेहद प्रतिकूल आर्थिक परिस्थितियों से जूझकर सफलता के आयाम गढ़ रहे इस प्रतिभाशाली युवक ने असल मायने में गरीबी उन्मूलन का मार्ग प्रशस्त किया है। उसने उम्मीदें जगा दी हैं कि कुछ कर दिखाने की लगन हो तो गरीबी आड़े नहीं आने पाएगी और अंतत: वह मिट जाएगी...।
आर्यन ने तलाशा था नया एस्ट्रॉइड 2018 में अपने स्टार्टअप की नींव रखने से चार साल पहले ही आर्यन ने एक नया क्षुद्र ग्रह (एस्ट्रॉइड) ढूंढ निकालकर दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा था। देश-दुनिया से मिले प्रोत्साहन के बाद आर्यन ने यह स्टार्टअप शुरू किया। दिल्ली सहित महानगरों के कुछ बड़े स्कूल अब उसके क्लाइंट हैं, जिन्होंने उसकी स्पार्क एस्ट्रोनॉमी लैब और सिलेबस को अंगीकार किया है।
पिता बांटते थे अखबार अपने और अपने पिता के संघर्ष के बारे में आर्यन बताते हैं कि पिता ने उन्हें पढ़ाने-लिखाने के लिए घोर संघर्ष किया। सुबह अखबार बांटते तो दिन में कुछ अन्य श्रम करते, रात को सिक्योरिटी गार्ड का काम भी करते। पिता की मेहनत को साकार करने के दृढ़ संकल्प ने प्रेरणा का काम किया...। दिल्ली के वसंत विहार स्थित चिन्मय विद्यालय से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद अब आर्यन अशोका विवि से फिजिक्स में स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं। साथ ही स्टार्टअप भी चला रहे हैं।
आंखों में सितारों सी चमकआंखों में सितारों सी चमक सजाए यह होनहार कहता है, तारों की चमकीली दुनिया से लगाव बचपन में तब पैदा हुआ, जब छुट्टियों में दादी के घर जाता और रात में आंगन में चारपाई पर लेटकर घंटों तक तारों को निहारता रहता। धीरे-धीरे यह शौक जुनून में तब्दील हो गया। ...और जब थोड़ा बड़ा हुआ तो टेलिस्कोप के बारे में जाना-समझा। इसे खरीदने की बहुत इच्छा होती, लेकिन पिता जी से कह नहीं सकता था कि वे 5000 रुपये दे दें। लिहाजा, पिता जी द्वारा हर माह खर्चे के लिए भेजे जाने वाले चंद पैसों में से ही कटौती कर बचत की। अंतत: टेलिस्कोप खरीद लिया। इसी टेलिस्कोप से क्षुद्र ग्रह खोज निकाला...।
एएसआई की प्रतियोिगिता में बने अव्वल मंगल और बृहस्पति के बीच मौजूद इस क्षुद्र ग्रह को खोजने पर 14 साल के आर्यन ने एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित प्रतियोगिता (2014) में पहला स्थान हासिल किया था। कहते हैं- मेरे लिए वह दिन बेहद खास था, जब अखबार बांटने वाले के बेटे की तस्वीर पहले पन्ने पर छपी...। आर्यन ने इसे अपने सपने के सफर की शुरुआत भर माना और स्कूल पूरा करने के बाद स्टार्टअप शुरू कर दिया। कहते हैं, मैं स्कूली बच्चों को अंतरिक्ष विज्ञान में पारंगत बनाने का लक्ष्य लेकर चल रहा हूं। जब मैं महज टेलिस्कोप लेकर क्षुद्र ग्रह खोज सकता हूं, तो अन्य बच्चे भी इस क्षेत्र में बड़ा योगदान दे सकते हैं।
लैब की कमी समस्या यह है कि देश के अधिकांश स्कूलों में इस विषय को समझा सकने वाली लैब नहीं हैं। अब मेरी इस बात को स्कूल प्रबंधन समझ रहे हैं और आगे आ रहे हैं। आर्यन का स्टार्टअप इन स्कूलों को तीन लाख रुपये की सालाना फीस पर लैब और अन्य संसाधन मुहैया कराता है। इधर, स्कूल प्रबंधन इसके लिए प्रति छात्र औसत 60 रुपये प्रतिवर्ष भी एकत्र करता है तो भरपाई हो जाती है।