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एनजीटी प्रदूषणकारी औद्योगिक इकाइयों के खिलाफ रहा सख्‍त

गंगा में फैल रहे प्रदुषण और धड़ल्ले से हो रहे अवैध खनन को राेकने को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल [एनजीटी] का तेवर इस साल सख्‍त रहा। 2014 में एनजीटी ने प्रदूषणकारी औद्योगिक इकाइयों के खिलाफ सख्‍ती से निपटते के लिए 'प्रदूषणकर्ता भुगतान करता है' के सिद्धांत को भी लागू किया।

By Abhishake PandeyEdited By: Updated: Fri, 26 Dec 2014 12:47 PM (IST)

नई दिल्ली। गंगा में फैल रहे प्रदुषण और धड़ल्ले से हो रहे अवैध खनन को राेकने को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल [एनजीटी] का तेवर इस साल सख्त रहा। 2014 में एनजीटी ने प्रदूषणकारी औद्योगिक इकाइयों के खिलाफ सख्ती से निपटते के लिए 'प्रदूषणकर्ता भुगतान करता है' के सिद्धांत को भी लागू किया।

स्वच्छ गंगा अभियान का मुद्दा एनजीटी के पास तब आया जब सुप्रीम कोर्ट ने इस पर नराजगी जताई थी। कोर्ट ने एनजीटी को प्रदूषित इकाइयों के खिलाफ बिजली आदि काटने और बंदी जैसी सख्त कार्रवाई करने का भी अधिकार दिया था। ज्ञात हो कि देश में 2500 किलोमीटर लंबी गंगा नदी 29 बड़े शहरों, 23 छोटे शहरों और 48 कस्बों से गुजरती है।

क्या है स्वच्छ गंगा परियोजना?


स्वच्छ गंगा परियोजना का आधिकारिक नाम एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन परियोजना या ‘नमामि गंगे’ है। यह मूल रुप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम मिशन है। प्रधानमंत्री बनने से पहले ही मोदी ने गंगा की सफाई को बहुत समर्थन दिया था। उन्होंने वादा किया था कि वह यदि सत्ता में आए तो वो जल्द से जल्द यह परियोजना शुरु करेंगें। अपने वादे के अनुसार उन्होंने प्रधानमंत्री बनते ही कुछ महीनों में यह परियोजना शुरु कर दी। इस परियोजना ने उन्हें लाभ भी देना शुरु कर दिया। इसका सबूत उनकी अमेरिका यात्रा में देखने को मिला जहां उन्हें क्लिंटन परिवार ने यह परियोजना शुरु करने पर बधाई दी। यह परियोजना तब खबरों में आई जब आरएसएस ने इसकी निगरानी करने का निर्णय लिया और साथ ही विभिन्न कर लाभ निवेश योजनाओं की घोषणा सरकार ने की।

स्वच्छ गंगा परियोजना क्यों शुरु की गई?


जब केंद्रीय बजट 2014-15 में 2,037 करोड़ रुपयों की आरंभिक राशि के साथ नमामि गंगे नाम की एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन परियोजना शुरु की गई तब केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि अब तक इस नदी की सफाई और संरक्षण पर बहुत बड़ी राशि खर्च की गई है लेकिन गंगा नदी की हालत में कोई अंतर नहीं आया। इस परियोजना को शुरु करने का यह आधिकारिक कारण है। इसके अलावा कई सालों से अनुपचारित सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट को भारी मात्रा में नदी में छोड़े जाने के कारण नदी की खराब हालत को भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है।

यह परियोजना कब पूरी होगी?


कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार से पूछा था कि स्वच्छ गंगा परियोजना कब पूरी होगी? सुप्रीम कोर्ट को जवाब में राष्ट्रीय प्रशासन ने कहा कि इस परियोजना को पूरा होने में 18 सालों का समय लगेगा। इस परियोजना की लंबाई और चैड़ाई को देखते हुए यह कोई असामान्य लक्ष्य नहीं है। यह परियोजना लगभग पूरे देश को कवर करती है क्योंकि यह पूरे उत्तर भारत के साथ उत्तर पश्चिम उत्तराखण्ड और पूर्व में पश्चिम बंगाल तक फैली है।

परियोजना का कवर क्षेत्र


भारत के पांच राज्य उत्तराखण्ड, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार गंगा नदी के पथ में आते हैं। इसके अलावा सहायक नदियों के कारण यह हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और दिल्ली के कुछ हिस्सों को भी छूता है। इसलिए स्वच्छ गंगा परियोजना इन क्षेत्रों को भी अपने अंतर्गत लेती है। कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार से पूछा था कि स्वच्छ गंगा परियोजना कब पूरी होगी? तब कहा गया था कि उन पांच राज्य सरकारों की सहायता भी इस परियोजना को पूरी करने में जरुरी होगी। भारत सरकार ने कहा था कि लोगों में नदी की स्वच्छता को लेकर जागरुकता पैदा करना राज्य सरकारों का काम है।

परियोजना का क्रियान्वयन


नमामि गंगे परियोजना कई चरणों में पूरी होगी। इसकी सटीक जानकारी तो नहीं है पर यह समझा जा सकता है कि सहायक नदियों की सफाई भी इसकी एक प्रमुख गतिविधि होगी। अधिकारियों को उन शहरों का भी प्रबंधन करना होगा जहां से यह नदी गुजरती है और औद्योगिक इकाईयां अपना अपशिष्ट और कचरा इसमें डालती हैं। इस परियोजना का एक प्रमुख भाग पर्यटन का विकास करना है जिससे इस परियोजना हेतु धन जुटाया जा सके। अधिकारियों को इलाहाबाद से पश्चिम बंगाल के हल्दिया तक एक चैनल भी विकसित करना होगा ताकि जल पर्यटन को बढ़ावा मिले।

परियोजना से जुड़े विवाद


स्वच्छ गंगा परियोजना से कई विवाद भी जुड़े हैं, जिसमें से एक इसे चलाने के लिए गठित पैनल के सदस्यों के बीच मतभेद होना है। इस कमेटी का गठन जुलाई 2014 को विभिन्न विभागों के सचिवों के साथ किया गया था। इस परियोजना का एक प्रमुख मुद्दा इन क्षेत्रों में बढ़ती हुई आबादी से बाढ़ क्षेत्र वापस लेना है। इसके अलावा इनलैंड जलमार्ग के महत्व पर मतभेद भी एक मुद्दा है।

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