CAA: लोगों को नागरिकता देने के लिए है न कि किसी की नागरिकता छीनने के लिए
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देश के कई लोग असमंजस की स्थिति में हैं। लेकिन हकीकत ये है कि ये कानून दूसरों को नागरिकता देने के लिए है न कि नागरिकता छीनने के लिए।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Fri, 20 Dec 2019 10:54 AM (IST)
रिजवान अंसारी। यह पहला मौका है जब भारत के एक राज्य असम में नागरिकों की पहचान को लेकर एनआरसी की कवायद की गई। यह भी पहला मौका है जब भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश की सरकार नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत धार्मिक आधार पर लोगों को नागरिकता देने के लिए खुलकर सामने आई है। और इसलिए, यह भी पहला ही मौका है कि भारत सरकार पर नागरिकता संबंधी संवैधानिक मामलों पर सांप्रदायिकता की परत चढ़ाने का आरोप लग रहा है। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 को समाज के कई तबकों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। पूवरेत्तर राज्यों में विरोध प्रदर्शन, कई विश्वविद्यालयों में छात्र आंदोलन व तमाम अन्य जगहों पर हो रहे विरोध प्रदर्शन इसके उदाहरण हैं।
दो धड़े में बंटा देश इस कानून के आने के बाद पूरा देश दो धड़े में बंटता हुआ दिख रहा है जो ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ के विपरीत है। भारत की गंगा-जमुनी तहजीब की साझी विरासत गौरव करने लायक है। लेकिन किसी कानून से सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचना भी उचित नहीं है। एक बात स्पष्ट है कि भारतीय मुसलमानों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसे नागरिकता दी जा रही है और किसे नहीं। इस संशोधित कानून में भी ऐसा कुछ नहीं है जिससे भारतीय मुसलमानों को डरने की जरूरत है। सरकार एनआरसी और नागरिकता संशोधन अधिनियम को अलग-अलग बता रही है। सरकार का दावा है कि यह अधिनियम लोगों को नागरिकता देने के लिए है न कि किसी की नागरिकता छीनने के लिए।
अलग हैं दोनों ही चीजें पहली नजर में ये दोनों ही चीजें अलग दिखती भी हैं। लेकिन तकनीकी तौर पर एनआरसी और नागरिकता कानून में गहरा संबंध है, और इस पूरे विरोध की वजह यही है। सरकार एनआरसी को पूरे देश में लागू करने की बात कह रही है। ऐसे में नागरिकता कानून लागू हो जाने के बाद यह समझा जा रहा है कि एनआरसी से भारतीय मुस्लिमों को नुकसान हो सकता है। यानी जब तक सरकार एनआरसी लागू नहीं करती है तब तक चिंता की कोई बात नहीं है। लेकिन एनआरसी लागू होने पर भविष्य की आशंकाएं बढ़ जाती हैं।
मुश्किल हैं चीजें सवाल यह भी हो सकता है कि यह कैसे संभव है कि आपकी कई पीढ़ियों के भारत में जिंदगी गुजारने के बावजूद आप जरूरी दस्तावेज न दे पाएं। जवाब यह है कि असम में ऐसे उदाहरण देखने को मिले हैं जिनमें लोगों ने सरकारी सेवाओं तक में काम किया है, पर उनका नाम सूची में नहीं है। यह सब इसलिए भी मुमकिन है, क्योंकि भारत एक ऐसा देश है जहां कई राज्य हर साल बाढ़ की चपेट में आते हैं और लाखों घर पानी में बह जाते हैं। ऐसे घरों में किसी कागजात की बात तो दूर, राजमर्रा की चीजें भी नहीं बच पातीं। देश में करोड़ों लोग ऐसे होंगे जो जरूरी दस्तावेज मुहैया नहीं करा सकेंगे। राष्ट्रीय स्तर पर एनआरसी लागू होने के बाद नागरिकता को लेकर समस्या केवल मुस्लिमों के सामने खड़ी होंगी। और यही कारण है कि मुस्लिम समाज डरा हुआ है।
दूर करनी होगी असुरक्षा की भावना यह सच है कि नागरिकता कानून भारतीय मुस्लिमों से भेदभाव करने की बात नहीं करता है। लेकिन अगर एनआरसी पूरे देश में लागू की जाती है तो भेदभाव का आधार स्वत: तैयार हो जाएगा। ऐसे में केंद्र सरकार को एनआरसी के इरादे पर पुनर्विचार की जरूरत है। कोशिश यह होनी चाहिए कि सभी धर्मो की तरह मुस्लिमों को भी समान कानूनी संरक्षण मिले। सरकार हर हाल में यह सुनिश्चित करे कि अल्पसंख्यक समुदाय में किसी भी तरह की असुरक्षा की भावना पैदा न हो। अगर सरकार संविधान की मूल भावना के अनुरूप काम करती है तो यही उसकी सबसे बड़ी सफलता होगी। बहरहाल सरकार को ऐसी ठोस कवायद करने की जरूरत है जिससे वह देश के अल्पसंख्यकों को भरोसा दिला सके कि एनआरसी और नागरिकता कानून से उनकी नागरिकता को कोई आंच नहीं आएगी।
(लेखक व स्तंभकार)यह भी पढ़ें:- पेड़ों पर विज्ञापन, बैनर या लाइट लगाई तो होगी जेल, देना होगा 5 हजार रुपये जुर्माना!
Citizenship Amendment Act पर जानें क्या कहती हैं बांग्लादेश की लेखिका तसलीमा नसरीनCPI-M के प्रकाश करात ही नहीं मनमोहन सिंह ने भी मांगी थी बांग्लादेशी गैर मुस्लिमों के लिए नागरिकता
जामिया से पहले भी देशभर में कई बार छात्रों ने किया है विभिन्न मुद्दों पर धरना प्रदर्शन