राहत काम को जम्मू कश्मीर में सेना की जरूरत नहींः अलगाववादी
जम्मू कश्मीर के लोग एक बार फिर जानलेवा बाढ़ से जूझ रहे हैं। बाढ़ की वजह से उनका जीवन मुहाल हो गया है। भारतीय सेना राहत और बचाव के काम में जी जान से जुटी है। अपनी जान की परवाह किए बिना सेना पीड़ितों की मदद के लिए दिन-रात एक
नई दिल्ली। जम्मू कश्मीर के लोग एक बार फिर जानलेवा बाढ़ से जूझ रहे हैं। बाढ़ की वजह से उनका जीवन मुहाल हो गया है। भारतीय सेना राहत और बचाव के काम में जी जान से जुटी है। अपनी जान की परवाह किए बिना सेना पीड़ितों की मदद के लिए दिन-रात एक किए हुए है। लेकिन कश्मीर के लोगों का हमदर्द होने का दावा करने वाले अलगाववादी नेताओं का मानना है कि राहत व बचाव के काम के लिए सेना की कोई जरूरत नहीं है, इसके लिए हम काफी हैं।
एक हिंदी समाचार चैनल की रिपोर्ट के मुताबिक बाढ़ के दौरान राहत व बचाव के काम में सेना के योगदान के बारे में पूछे जाने पर हाल ही में जेल से रिहा हुए अलगाववादी नेता मसर्रत आलम ने कहा कि यहां सेना का कोई काम नहीं है। हम खुद इस काम के लिए काफी हैं। मसर्रत ने कहा कि पिछली बार भी जब बाढ़ आई थी सेना ने सिर्फ अपने लोगों को बचाया था। यहां के लोगों को स्थानीय लोगों और युवाओं ने बचाया। उनकी हर तरह से मदद की।
इस बारे में हुर्रियत नेता मीर वायज मौलवी फारूक ने कहा कि सेना जितना काम नहीं कर रही उससे अधिक काम करने का ढ़िंढोरा पीट रही है। उसका भी मानना है कि सेना से अधिक स्थानीय लोग पीड़ितों की मदद कर रहे हैं। एक अन्य अलगाववादी यासीन मलिक ने कहा कि इस बार तो बाढ़ है ही नहीं। उसने कहा कि यह मामूली ड्रेनेज की समस्या है। सेना का यहां कोई काम नहीं है। मलिक ने कहा कि सेना ने पिछली बार आई बाढ़ में भी सिर्फ वीआईपी इलाकों में राहत और बचाव का काम किया था।
गौरतलब है कि इनमें से अधिकांश अलगाववादी नेता इस कठिन समय में जब वहां के लोगों को इनकी जरूरत है प्रदेश से बाहर बैठकर मौज कर रहे हैं। ये लोगों को भड़का कर सिर्फ अपना उल्लू सीधा करना जानते हैं। लोग भी अब इन्हें जान गए हैं। प्रदेश में ये लोग अब हासिए पर हैं।
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