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मोदी के खिलाफ बना महागठबंधन, सपा, जदयू, राजद फिर हुए एकजुट

आपसी मतभेदों के कारण कभी खंड-खंड हुआ जनता दल परिवार एकजुट होने की राह पर है।

By Sudhir JhaEdited By: Updated: Thu, 06 Nov 2014 04:21 PM (IST)
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नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो] आपसी मतभेदों के कारण कभी खंड-खंड हुआ जनता दल परिवार एकजुट होने की राह पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा के राजनीतिक उभार की तपिश से बचने के लिए पुराना जनता परिवार एक छतरी के नीचे आने पर विवश हो गया है। पिछले लोकसभा चुनावों में परिवार तक सिमटी सपा के मुखिया के प्रयासों के तहत भाजपा खासकर पीएम मोदी के खिलाफ 'महामोर्चाÓ बनाने के लिए सपा अध्यक्ष के दिल्ली आवास पर सपा, जद यू, राजद, जनता दल एस, सजपा व इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के नेताओं ने बैठक की।


छह दलों के नेता मिले

बैठक के लिए सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के नई दिल्ली स्थित आवास पर पंह़ुचने वाले प्रमुख नेताओं में राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, जनता दल सेक्युलर नेता और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, जनता दल यू अध्यक्ष शरद यादव, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, इनेलो सांसद दुष्यंत चौटाला और सजपा के कमल मोरारका शामिल रहे। इन नेताओं की इस बैठक में फैसला किया गया कि मोदी की अगुवाई में प्रभावी हो रही भाजपा को चुनौती देने के लिए ये दल आपस में रणनीति बनाकर काम करेंगे। सूत्रों के अनुसार जनता परिवार के घटक रहे बीजू जनता दल के प्रमुख और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से भी इस बारे में संपर्क साधा गया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी को भी इस महागठबंधन में लाने की कोशिश शुरू कर दी गई है।

गैर भाजपावाद का नारा बुलंद करने की तैयारी

बैठक के बाद जद यू नेता नीतीश कुमार ने कहा कि कहा कि 'आज शुरुआत हो गई है। सब कुछ ठीक रहा तो भविष्य में यह परिवार एक हो सकता है। कभी गैर कांग्रेसवाद का नारा बुलंद कर राष्ट्रीय राजनीति पर चमका जनता दल कुनबा अब गैर भाजपावाद के नारे के साथ एक बार फिर संगठित होने के प्रयास में है। लोकसभा में हाशिए पर पहुंचे व राज्यों में भाजपा के हाथों राजनीतिक जमीन खो रहे इन दलों ने संकेत दिए हैं कि भविष्य में यह पार्टिया एक झंडे के नीचे भी आ सकती है। कई और दलों से भी संपर्क साधा जा रहा है।


दीदी ने दिए सकारात्मक संकेत

सूत्रों के मुताबिक बैठक से पहले इन नेताओं की बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी तथा ओडिशा के मुख्यमंत्री व बीजू जनता दल प्रमुख नवीन पटनायक से भी बात हुई। ममता ने गठजोड़ को लेकर सकारात्मक संकेत दिए है। जबकि उड़ीसा में नवीन पटनायक अभी इंतजार करने की रणनीति में है। संकेत मिले हैं कि मुलायम के बाम दलों के प्रति प्रेम व ममता मुलायम के संबंधों की खटास के चलते ममता भी ऐसे आयोजनों से दूरी रखने की रणनीति पर अमल करेंगी।

कांग्रेस के लिए गुंजाइश छोड़ी

राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा का विकल्प बनने का प्रयास कर रहे इन पुराने समाजवादी नेताओं ने कांगे्रस को लेकर भी समान दूरी बरतने के संकेत दिए हैं। बिहार के 'महागठबंधनÓ में 20 प्रतिशत की हिस्सेदार कांग्रेस को लेकर इन नेताओं ने यह कहकर गुंजाइश छोड़ दी है कि अगर वह साथ आती है तो कोई विरोध नही।

चुनावी चिंता की उपज है महामोर्चा

दरअसल यह महामोर्चा 2019 के आम चुनावों के मद्देनजर 'तीसरे मोर्चेÓ को जिंदा करने की कोशिश है। वहीं नीतीश कुमार व मुलायम सिंह को अपने-अपने राज्यों में हाने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर भी चिंता है। बिहार में अगले साल और उत्तर प्रदेश में 2017 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। दोनों ही राज्यों में सत्ताधारी पार्टियों के सामने भाजपा की चुनौती है। ऐसे में देश की राजनीति में भाजपा के सामने खड़े होकर यह पार्टिया भाजपा विरोधी मतों के ध्रुवीकरण के प्रयास में भी हैं।

संसद में होगी पहली परीक्षा

भाजपा विरोध में कांग्रेस को पीछे छोडऩे का हुंकार भर रहे समाजवादी नेताओं की पहली परीक्षा संसद के शीत कालीन सत्र में होगी।

तीन मुद्दों पर घेरेंगे

भाजपा को काला धन, बेरोजगारी और किसानों के मुद्दों पर घेरने की बात कह चुके इन नेताओं ने कहा है कि संसद के दोनों सदनों में एकजुट होकर सशक्त विपक्ष के रूप में अपनी बात रखेंगे। सरकार को अब तक घेरने में नाकाम रही कांग्रेस को पीछ छोड़ मुखर विपक्ष के रूप में अपनी छाप छोडऩे के लिए इन दलों के सामने संख्याबल की चुनौती है।

किसके कितने सांसद

लोकसभा में सपा के पांच, राजद के चार, जदयू के दो एवं जद-एस के दो सदस्य हैं। ऐसे में अपनी बात कहने के लिए इन दलों को कांग्रेस व अन्नाद्रमुक जैसे अपेक्षाकृत ज्यादा सदस्यों वाली पार्टियों से सहयोग लेने की जरूरत होगी। जाहिर है कि इस स्थिति में विरोध के नेतृत्व को लेकर भी बहस होनी तय है।
पहले विफल रही थी कोशिश
लोकसभा चुनाव में गैर भाजपा, गैर कांग्रेस मोर्चा बनाने की कवायद फेल होने के बाद यह बैठक बुलाई गई थी। इस बैठक में अलग-थलग पड़े वाम दलों को नहीं बुलाया गया था। नीतीश कुमार ने हालांकि उन्हें बुलाने से इन्कार नहीं किया।

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