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अब दिल्ली की सरकार को लेकर गरमाएगी सियासत

लोकसभा चुनाव का घमासान अब थम चुका है। कयासों का दौर चुनाव परिणाम आने तक (16 मई) चलेगा। इस बीच सूबे की सरकार को लेकर दिल्ली की सियासत के गरमाने के आसार हैं। आगामी 17 अप्रैल को भाजपा व कांग्रेस को अदालत में इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखना है। दोनों दलों द्वारा अपनी स्थिति स्पष्ट किए जाने के बाद दिल्ली में रा

By Edited By: Updated: Mon, 14 Apr 2014 07:32 AM (IST)

[अजय पांडेय], नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव का घमासान अब थम चुका है। कयासों का दौर चुनाव परिणाम आने तक (16 मई) चलेगा। इस बीच सूबे की सरकार को लेकर दिल्ली की सियासत के गरमाने के आसार हैं। आगामी 17 अप्रैल को भाजपा व कांग्रेस को अदालत में इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखना है। दोनों दलों द्वारा अपनी स्थिति स्पष्ट किए जाने के बाद दिल्ली में राष्ट्रपति शासन जारी रखने अथवा नए सिरे से चुनाव कराने पर तस्वीर साफ हो सकती है।

अरविंद केजरीवाल की सरकार द्वारा अचानक इस्तीफा देने तथा भाजपा द्वारा जोड़-तोड़ कर सरकार बनाने की संभावनाओं से बार-बार इन्कार किए जाने के बाद ही सूबे में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया। उपराज्यपाल नजीब जंग ने केंद्र सरकार से सिफारिश की थी कि सूबे के राजनीतिक हालातों के मद्देनजर राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाए और विधानसभा को निलंबित स्थिति में रखा जाए ताकि नई सरकार के गठन की संभावनाएं बनी रहें। अब भाजपा को स्पष्ट करना है कि वह सरकार बनाएगी अथवा नहीं। दिल्ली विधानसभा के गणित को देखते हुए उसके लिए सरकार बना पाना आसान नहीं है। दूसरी ओर पार्टी ने अपने प्रदेश अध्यक्ष व मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार रहे डा. हर्षवर्धन सहित तीन विधायकों को लोकसभा का चुनाव लड़ाया है।

यदि ये तीनों प्रत्याशी विजय दर्ज करने में सफल रहते हैं तो भाजपा विधायकों की संख्या 32 से घटकर 29 रह जाएगी। इसका मतलब यह होगा कि पार्टी के लिए बहुमत का आंकड़ा (36 विधायक) पार करना और मुश्किल हो जाएगा। पार्टी के नेताओं का यह भी मानना है कि जिस प्रकार से लोकसभा के चुनाव में समूचे शहर में उनके पक्ष में समर्थन दिखा है, उसे देखते हुए उन्हें विधानसभा का चुनाव होने पर भी अच्छी सीटें मिल सकती हैं। लिहाजा, इसकी व्यापक संभावना है कि भाजपा जोड़-तोड़ कर सरकार बनाने के बदले नए सिरे से चुनाव कराने को ज्यादा अहमियत देगी।

हालांकि दिल्ली के भविष्य के तार लोकसभा चुनाव परिणामों से जुड़े हुए हैं। कांग्रेस पहले ही कह चुकी है कि वह चुनाव के लिए तैयार है। जब भी चुनाव होंगे, वह उसका सामना करेगी। यह और बात है कि भाजपा द्वारा सरकार बना लेने से कांग्रेस को भी सियासी दृष्टि से फायदा होगा। आम आदमी पार्टी (आप) से मिल रही कड़ी चुनौती को देखते हुए भाजपा की सरकार उसे आगे की राजनीति को दुरुस्त करने का पर्याप्त अवसर मुहैया करा सकती है। सियासी जानकारों की मानें तो आप हर हाल में चुनाव कराना चाहेगी। उसका वोट बैंक टूटा है।

मध्यम वर्ग उससे छिटक चुका है, निचले तबके में भी मोहभंग की स्थिति बन रही है। लिहाजा वह यह जरूर चाहेगी कि जल्दी से जल्दी चुनाव हों ताकि वह सत्ता में वापसी कर सके।