मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भले ही अपनी पार्टी के लोगों को भरोसा दिला रहे हों कि अफसरों से उनके काम कराए जाएंगे। लेकिन हकीकत यह है कि खुद मुख्यमंत्री कार्यालय के आदेशों पर ही अमल नहीं होता। सत्ताधारी पार्टी के कुछ विधायकों के सिफारिशी पत्रों का हश्र यह बताने के लिए काफी है कि अफसरों और मुख्यमंत्री
By Edited By: Updated: Thu, 24 Oct 2013 06:16 AM (IST)
लखनऊ, [राज बहादुर सिंह]। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भले ही अपनी पार्टी के लोगों को भरोसा दिला रहे हों कि अफसरों से उनके काम कराए जाएंगे। लेकिन हकीकत यह है कि खुद मुख्यमंत्री कार्यालय के आदेशों पर ही अमल नहीं होता। सत्ताधारी पार्टी के कुछ विधायकों के सिफारिशी पत्रों का हश्र यह बताने के लिए काफी है कि अफसरों और मुख्यमंत्री के बीच सब कुछ ठीक ठाक नहीं है। इन विधायकों ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अपने यहां बेसिक शिक्षा अधिकारियों के तबादले की सिफारिश की थी। पत्रों पर मुख्यमंत्री कार्यालय ने आदेश जारी किया लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई।
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मंत्रियों को कठोर चेतावनी भोगनीपुर सीट के विधायक योगेंद्र पाल सिंह ने 18 सितंबर को मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कानपुर देहात के बेसिक शिक्षा अधिकारी को हटाने की सिफारिश की थी। पत्र में लिखा गया था कि सपा सांसद घनश्याम अनुरागी, इटावा से सपा के लोकसभा सदस्य प्रेमदास कठेरिया और सपा के जिलाध्यक्ष लाखन सिंह ने भी प्रभारी मंत्री से बीएसए की शिकायत की गई। दिलचस्प ये है कि विधायक ने अपनी चिट्ठी में याद दिलाया कि मुख्यमंत्री ने पहले भी इन्हें हटाने के निर्देश दिए थे लेकिन बीएसए का तबादला नहीं हुआ। सपा विधायक के इस पत्र पर मुख्यमंत्री के एडवाइजर आमोद कुमार ने सचिव बेसिक शिक्षा विभाग को बीएसए को हटाकर 30 सितंबर तक मुख्यमंत्री कार्यालय को अवगत कराने को कहा लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई। ठीक इसी तरह गोरखपुर की पिपराइच सीट की सपा विधायक राजमती निषाद ने मुख्यमंत्री को बताया कि बीएसए की कार्यशैली ठीक नहीं है। इस पर मुख्यमंत्री के एडवाइजर ने सचिव बेसिक शिक्षा को तबादले और तैनाती कर 10 अक्टूबर तक कृत कार्यवाही से अवगत कराने को कहा। पर नतीजा वही रहा, आदेश की अवहेलना हुई। निषाद लोकसभा चुनाव में गोरखपुर से पार्टी की उम्मीदवार हैं। उनके स्वर्गीय पति जमुना प्रसाद निषाद भी सपा के टिकट पर गोरखपुर से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं।
अवहेलना और भ्रष्टाचार बेसिक शिक्षा विभाग आदेशों की अवहेलना के मामलों से पटा पड़ा है। कई मामले ऐसे हैं जिनमें जांच में दोष सिद्ध अधिकारियों को बचाने के लिए या तो रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाला जा रहा है अथवा दोबारा जांच कराई जा रही है। शासन स्तर से कार्रवाई न किए जाने से बीएसए और समतुल्य अधिकारी अब इस कदर बेखौफ हो गए हैं कि होटलों में बैठकर रिश्वत की रकम का बंटवारा कर रहे हैं जिसकी एक झलक हाल ही में महाराजगंज में अधिकारियों की एक होटल से हुई गिरफ्तारी से मिलती है।
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