प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने पांच साल बाद अपने रुख से पलटते हुए केंद्रीय सूचना आयोग (सीआइसी) के समक्ष स्वीकार किया है कि तत्कालीन विशेष दूत वीरेंद्र दयाल ने वोल्कर कमेटी पर जो रपट सौंपी थी वह उसके पास है। पीएमओ ने यह भी कहा है कि वह उसे सार्वजनिक नहीं कर सकता। वर्ष 2004 में इस 'तेल के बदले अनाज घोटाले' ने भारत
By Edited By: Updated: Tue, 28 May 2013 08:37 AM (IST)
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने पांच साल बाद अपने रुख से पलटते हुए केंद्रीय सूचना आयोग (सीआइसी) के समक्ष स्वीकार किया है कि तत्कालीन विशेष दूत वीरेंद्र दयाल ने वोल्कर कमेटी पर जो रपट सौंपी थी वह उसके पास है। पीएमओ ने यह भी कहा है कि वह उसे सार्वजनिक नहीं कर सकता। वर्ष 2004 में इस 'तेल के बदले अनाज घोटाले' ने भारतीय राजनीति में भूचाल ला दिया था। इस प्रकरण में तत्कालीन विदेश मंत्री नटवर सिंह को मंत्रिमंडल से बाहर होना पड़ा था।
पांच साल पहले पीएमओ ने तत्कालीन मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला के समक्ष दावा किया था कि उसके पास वह रपट नहीं है। इतना ही हबीबुल्ला के फाइलें पेश करने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाले प्रवर्तन निदेशालय ने भी अपना रुख बदल लिया था। ज्ञातव्य है कि सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2010 ईडी की याचिका खारिज कर दी थी। ईडी ने हाल में एक सुनवाई में दावा किया था कि वे रपटें उसके पास नहीं हैं।
सरकार के रुख में यह बदलाव सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के तहत दायर अरुण अग्रवाल की याचिका की सुनवाई के दौरान सामने आई। अग्रवाल इस रिपोर्ट को सार्वजनिक कराना चाहते हैं। सत्यानंद मिश्र, एमएल शर्मा और अनुपमा दीक्षित की सदस्यता वाली पूर्ण पीठ ने मामला सार्वजनिक करने के खिलाफ फैसला दिया। पीठ ने कहा, 'हमारी राय है कि यह व्यावहारिक नहीं होगा कि उसकी प्रति अपीलकर्ता को मुहैया कराई जाए, क्योंकि ऐसा करने से भारत के बाहर के देशों से दोस्ताना रिश्ते पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।' संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2004 के अप्रैल में पॉल वोल्कर समिति का गठन किया था। इसका मकसद इराक में चलाए जा रहे उसके तेल के बदले अनाज कार्यक्रम में भ्रष्टाचार और जालसाजी की जांच करना था जिससे कुछ भारतीय नेता कथित रूप से लाभान्वित हुए थे। सात साल पहले आरटीआइ के तहत अग्रवाल ने प्रधानमंत्री कार्यालय से वीरेंद्र दयाल की नियुक्ति, वोल्कर रपट से जुड़े दस्तावेज और संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों के साथ बैठक के बाद के प्रयोजन से जुड़ी सारी सूचनाएं मांगी थीं।
वर्ष 2006 में पीएमओ ने आरटीआइ से छूट का हवाला देते हुए रपट सार्वजनिक करने से इन्कार कर दिया था लेकिन वर्ष 2008 में विदेश मंत्रालय, वित्त मंत्रलय और प्रधानमंत्री कार्यालय तीनों ने हबीबुल्ला से कहा कि रपट उनके पास नहीं है।
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