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पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन पर हमेशा रही है पाक की कुदृष्टि

पठानकोट एयरबेस हमेशा ही पाकिस्‍तान की आंखों में खटतकता रहा है। 1971 के युद्ध में भी पाकिस्‍तान ने इस बेस को खत्‍म करने के लिए ताबड़तोड बम गिराए थे, बावजूद इसके इस एयरबेस को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचा था।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Sun, 03 Jan 2016 09:43 AM (IST)
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पठानकोट (श्याम लाल)। एयरफोर्स स्टेशन पठानकोट सुरक्षा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। इस एयरफोर्स स्टेशन को पाकिस्तान के प्रशिक्षित आतंकवादियों ने जहां 2016 के पहले दिन निशाना बनाया वहीं 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध के दौरान भी इसे ध्वस्त करने के लिए जी-तोड़ प्रयास किया था। वर्ष 1971 के युद्ध में 3 दिसंबर की शाम 5.40 बजे पाकिस्तान ने इस एयरपोर्ट के रन-वे पर बेतहाशा बम गिराए थे। इस युद्ध के दौरान पठानकोट सहित एयरफोर्स स्टेशन पर कुल 53 बार हमला हुआ। तीन दिसंबर को एक साथ पाकिस्तान के 6 लड़ाकू जहाजों ने एयरफोर्स स्टेशन पर बम गिराए परंतु यह गनीमत रहा कि पूरे युद्ध के दौरान इसका ज्यादा नुकसान नहीं हुआ।

दुश्मनों के लिए चिकन नेक है पठानकोट

इतिहासकार एवं पठानकोट का इतिहास नामक पुस्तक लिखने वाले बीआर कपूर ने उस क्षण को याद करते हुए बताया कि वह दिल दहलाने वाली घटना थी परंतु भारतीय सेना और वायुसेना ने तब भी परवाह नहीं की। इससे पहले 1965 में हुए भारत-पाक युद्ध के दौरान भी पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन को निशाना बनाया गया। सितंबर 6,1965 की सायं 5.35 बजे जब पाकिस्तान ने एयरफोर्स स्टेशन पर बम गिराए तो उससे एयरपोर्ट के हैंगर पर खड़े दो लड़ाकू विमानों को नुकसान हुआ। एशिया के नक्शे में पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन दुश्मन के लिए चिकन नेक कहा जाता है।

पठानकोट हमले के आतंकियों को थी सभी रास्तों की जानकारी

मिग 21 व फाइटर जेट्स हैैं यहां, पर सुरक्षा नाकाफी पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन पर एयरफोर्स के कुल 18 विंग हैं। यहां वायुसेना की सारी जरूरतों को पूरा किया जाता है। एयरफोर्स स्टेशन काफी बड़ा। इसमें जहां सैनिक क्वार्टर हैं वहीं केन्द्रीय विद्यालय भी है। एयरफोर्स स्टेशन पर मिग-21,मिग-29 के अतिरिक्त अटैक हैलीकाप्टर भी हैं। करीब दस किलोमीटर की चार दीवारी के भीतर फैले एयरफोर्स स्टेशन में जहां चारों ओर सुरक्षा की कमी हैं वहीं यह स्टेशन पाकिस्तान के एयरबेस के बेहद करीब है।

सैन्य जरूरतों के अनुसार इस तरह का एयरफोर्स स्टेशन ऐसी जगह पर होना चाहिए जो आम पब्लिक से थोड़ा दूर हो परंतु पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन चारों ओर जहां आबादी से घिरा हुआ है वहीं उसका अधिकांश हिस्सा सरकंडों व झाडिय़ों में जंगली भू-भाग का हिस्सा है। दस किलोमीटर की चारदीवारी के बीच कईं ऊचे चेक पोस्ट नहीं हैैं।

पाक हमेशा करवाता है इस इलाके की जासूसी

यह स्टेशन पाकिस्तान से जहां करीब पच्चीस किलोमीटर की दूरी पर है वहीं चीन तक भी यह स्टेशन निगरानी करने में दक्ष है। करगिल युद्ध के दौरान भी इस एयरफोर्स स्टेशन ने पाकिस्तान की कमर तोडऩे के लिए बेहतरीन भूमिका निभाई थी। यही कारण है कि यह एयरफोर्स स्टेशन दुश्मन की नजर में हमेशा किरकिरी बना हुआ है। अपने नापाक मंसूबों को सिरे चढ़ाने के लिए कभी पाकिस्तान इस स्टेशन की जासूसी करवाता है तो कभी आतंकी हमला करवा कर यह संकेत देने की कोशिश करता है कि वह भारत के चप्पे-चप्पे से वाकिफ है। पिछले साल एयरफोर्स कर्मचारी सार्जेट सुनील को जासूसी में शामिल करके उससे एयरफोर्स स्टेशन की जानकारी लेना भी इसी का हिस्सा है।

पंद्रह साल पहले एक जनवरी को ही हुआ था हमला

साल के पहले ही दिन को एयरफोर्स स्टेशन पर हमले के लिए चुन आतंकियों ने 15 साल पुराना इतिहास दोहराया है। पहली जनवरी 2001 को पठानकोट एयरपोर्ट से करीब चार किलोमीटर की दूरी पर डमटाल की फायङ्क्षरग रेंज पर विपरीत दिशा से आंतकियों ने हमला बोल कर तीन जवानों को शहीद कर दिया था। इस हमले में आतंकी डमटाल की पहाडिय़ों से आए। यह आतंकी इन पहाडिय़ों में कई दिन छिपे रहे थे। हमला करने वाले आतंकवादियों को इस हमले से पहले जंगल से लकड़ी एकत्र करने वाली महिलाओं ने देख लिया था। इसके बाद पुलिस ने पहाडिय़ों में बकायदा तौर पर सर्च अभियान चलाया परंतु वह पकड़ में नहीं आए।

नए साल की सुबह जब सेना पूरे जज्बे के साथ फायङ्क्षरग प्रैक्टिस करके इसे मना रही थी आतंकियों ने विपरीत दिशा से उन पर हमला बोल दिया। ठीक इसी प्रकार नए साल को टारगेट रख कर आतंकी इस बार सीधे पाकिस्तान से पठानकोट में घुसे। उन्होंने पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन तक पहुंचने के लिए एसपी सलविंदर सिंह की गाड़ी हाईजेक की। इस गाड़ी के जरिए वह 31 दिसंबर की रात ही एयरफोर्स स्टेशन के पास पहुंच गए। वहां यहां चौबीस घंटे से भी अधिक समय सुरक्षित रहे। इनके होने का सुरक्षा एजेंसियों को पूरा पता चल चुका था। बावजूद इसके वह हमला करने में सफल रहे।

गोलीबारी आरंभ होते ही सहम उठे लोग

पठानकोट में शनिवार को तड़के तीन बजे जैसे ही गोलियों व तेज धमाकों की आवाज सुनाई दी तो एयरफोर्स स्टेशन के आसपास रहने वाले लोगों में दहशत का माहौल कायम हो गया। एयरफोर्स स्टेशन की चार दीवारी से सटे एक घर में रहने वाले राजेश्वर सिंह चौधरी ने दैनिक जागरण को बताया कि रात तीन बजे एयरफोर्स स्टेशन में गोलियों की आवाज से पूरा क्षेत्र गूंज उठा। आसपास रहने वाले अन्य लोग भी बाहर निकल आए।

लोगों में दहशत साफ दिखाई दे रही थी। इसी बेसमेंट पर ठेकेदारी का काम करने वाले चौधरी के अनुसार जहां पर एयरबेस स्टेशन की पहली पानी की टंकी थी, वहां पर हैैंड ग्रेनेड चलने के कारण धुआं ही धुआं उठ रहा था। गोलीबारी इतनी अधिक थी कि ऐसा लग रहा था कि आतंकियों के पास भारी मात्रा में हथियार है। चौधरी ने बताया कि शुक्रवार शाम तीन बजे ही एयरफोर्स स्टेशन के अधिकारियों ने उन्हें निर्माण कार्य बंद करने के निर्देश दे दिए थे। मजदूरों को बाहर निकाल दिया गया। देर रात से ही आसमान में हैलीकाप्टर उडऩे लगे।

एयरबेस के ऊपर से बहुत नीचे रहकर हैलीकाप्टर उड़ान भर रहे थे। सुबह तीन बजे गोलियों की आवाज से पूरा क्षेत्र गूंज उठा। चौधरी ने बताया कि लगभग सात किलोमीटर क्षेत्र में फैले एयरफोर्स के बेस कैंप को दो भागो में बांटा गया है। एक भाग को डोमेस्टिक और दूसरे भाग को टेक्निकल एरिया कहते हैैं। पहला हमला आतंकियों ने पानी की टंकी के नजदीक से किया। जहां से उन्होंने ग्रेनेड भी फेंके। पानी की टंकी के साथ एयरफोर्स के लगभग 700 परिवार रहते हैैं।

एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी कर्म चंद ने बताया कि वह इस एयरफोर्स स्टेशन के साथ स्थित सत्संग भवन में रात को ड्यूटी कर रहा था। तड़के लगभग तीन बजे गोलियों की आवाज शुरू हो गई। हैलीकाप्टर से पानी की टंकी के नजदीक इतनी जोरदार ढंग से सर्च लाइट मारी जा रही थी जैसे दिन निकल आया हो। गोलीबारी के बीच हैैंड ग्रेनेड चलने से धुएं का गुब्बार उड़ रहा था। सुबह तीन बजे से लेकर आठ बजे तक निरंतर गोली चलती रही। बाद में गोलीबारी रूक-रूक कर चलने की आवाजें आती रही।

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