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पंडित जवाहरलाल नेहरू की गलतियों की सजा दशकों से भुगत रहा है जम्‍मू कश्‍मीर!

जम्‍मू कश्‍मीर पर जो गलती पंडित नेहरू ने की थी उसकी सजा दशकों से भारत भुगत रहा है। उनके अलावा कांग्रेस की दूसरी सरकारों ने भी लगातार उसी तरह की गलतियां दोहराईं।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Fri, 27 Sep 2019 08:40 AM (IST)
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पंडित जवाहरलाल नेहरू की गलतियों की सजा दशकों से भुगत रहा है जम्‍मू कश्‍मीर!
नई दिल्ली [जागरण स्‍पेशल]। संयुक्‍त राष्‍ट्र और यहां पर कश्‍मीर का मुद्दा कोई नया नहीं है। इसकी शुरुआत से ही यह मुद्दा इस मंच पर उठता रहा है। इसकी वजह के पीछे भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू रहे हैं। दरअसल जब आजादी के बाद से ही पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर पर हमला करने की फिराक में था। पाकिस्तानी हमले की रूपरेखा से जुड़ा एक पत्र संयोगवश मेजर ओएस कल्लत के हाथ लग गया। उस समय वह पाकिस्तानी इलाके बन्नू में थे। उन्होंने तुरंत भारत आकर आगाह किया। यह जानकर पटेल और तत्कालीन रक्षा मंत्री बलदेव सिंह घुसपैठियों से निपटने के लिए पाक से लगी जम्मू-कश्मीर सीमा पर सेना भेजना चाहते थे, लेकिन नेहरू इसके लिए राजी नहीं हुए। यह इतनी बड़ी गलती थी जिसकी मिसाल देना मुश्किल है। वहां जनमत संग्रह और इस मसले को यूएनओ ले जाना नेहरू की और भी बड़ी गलतियां थीं। इसके पहले नेहरू ने ऐसी ही एक गलती तब की थी जब उन्होंने शेख अब्दुल्ला को जेल से रिहा कराने के लिए कश्मीर जाने का फैसला किया और वहां महाराजा से भिड़ गए।

ये है जानकारों की राय

जानकार मानते हैं कि यदि इंदिरा गांधी पूर्वी पाकिस्‍तान में बांग्‍लादेश की आजादी को लेकर चल रही लड़ाई को कुछ ज्‍यादा दिन खींच लेती तो गिलगित-बाल्टिस्तान समेत पूरे गुलाम कश्‍मीर को भी आजादी मिल गई होती। इतना ही नहीं, जानकार ये भी मानते हैं कि शिमला समझौते पर हस्ताक्षर के दौरान भारत को पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो पर जो दबाव बनाना चाहिए था, वो नहीं बनाया गया। 1971 की लड़ाई के बाद भारत बेहद मजबूत स्थिति में था, वहां पर पाकिस्‍तान के कब्‍जे वाले कश्‍मीर को आजाद कर अपने में मिलाने का सुनहरा अवसर था, लेकिन इस तरफ ध्‍यान ही नहीं दिया गया। 

पाकिस्‍तान की जुबान

1931 में जम्मू कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस (एमएनसी) की स्थापना हुई। बाद में मुस्लिम शब्द हटाकर नेशनल कांफ्रेंस बन गई। मुस्लिम नेतृत्व के एक बड़े वर्ग ने कश्मीर में अलगाववादी मुहिम चलाई। जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री बनने के कुछ महीनों बाद ही शेख अब्दुल्ला ने पाकिस्तान की जुबान बोलनी शुरू कर दी। फिर 1953 में उन्हें जेल में डाल दिया गया। पूर्व की कांग्रेस सरकारों ने कश्‍मीर को लेकर एक के बाद एक बड़ी गलतियां की। वर्ष 1975 में इंदिरा गांधी-शेख अब्दुल्ला समझौता इन्‍हीं में से एक था।

बुलंद हुई अलगाववादियों की आवाजें

आपको बता दें कि शेख अब्‍दुल्‍ला ने मुख्यमंत्री रहते हुए राज्‍य में जनमत संग्रह की आग भड़काने में अहम भूमिका निभाई। यही वजह थी कि पाकिस्‍तान के समर्थन करने वाले अलगाववादियों की आवाजें लगातार बुलंद होती चली गईं। सरकार इन पर भी लगाम लगाने में नाकाम रही। जम्‍मू कश्‍मीर धीरे-धीरे अब्‍दुल्‍ला परिवार के हाथों में आता गया। शेख अब्‍दुल्‍ला के निधन के बाद उनके बेटे फारूक अब्दुल्ला को सत्ता मिल गई। जुलाई 1984 में इंदिरा गांधी ने उनकी सरकार को बर्खास्‍त कर जीएम शाह को मुख्यमंत्री बना दिया। इस सरकार को 1986 में राजीव गांधी ने बर्खास्त कर दिया था।

गलतियों की सजा भुगत रहा है कश्‍मीर

पंडित नेहरू ने जो गलती की उसकी सजा जम्‍मू-कश्‍मीर दशकों से भुगत रहा है। पाकिस्‍तान भी लगातार नेहरू के उसी बात को हर मंच पर उठाता है, जिसके तहत उन्‍होंने यूएन का दरवाजा खटखटाया था। 1987 के बाद राज्‍य में आतंकवाद की शुरुआत हुई और 90 के दशक में यह अपने चरम पर था। 1987 के चुनाव में सैयद अली शाह गिलानी और मुहम्मद यूसुफ शाह जैसे लोगों ने चुनाव लड़ा। इसी दौरान हिज्बुल मुजाहिदीन अस्तित्‍व में आया। 2008 में हालात काफी गंभीर हो गए। उमर के दो साल से भी कम समय के शासन में जम्मू-कश्मीर फिर से बुरी तरह अस्थिरता की चपेट में आ गया था। जब उन्हें लगा कि हालात काबू से बाहर हो रहे हैं तो उन्हें सेना का सहारा लेना पड़ा।

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