खुद को एकलव्य का वंशज बताते हैं पंडो आदिवासी, बिना अंगूठे लगाते हैं तीर से सटीक निशाना
मरवाही के घने जंगलों में रहने वाले पंडो आदिवासी के लोग बिना अंगूठे के इस्तेमाल के तीन से सटीक निशाना लगा लेते हैं। ये खुद को एललव्य के वंशज बताते हैं।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Mon, 14 Oct 2019 12:27 AM (IST)
बिलासपुर [राधाकिशन शर्मा]। छत्तीसगढ़ में स्थित मरवाही के घने जंगल वर्तमान के एकलव्य को अपने यहां बसाए हुए हैं। सुनने में भले ही ये अटपटा लगे लेकिन ये सच है। यहां के घने जंगलों और पहाड़ों के पंडो आदिवासी झोपड़ी बनाकर रहते हैं। इनके कंधों पर लटके तीर-कमान इनकी पहचान बन चुके हैं। लेकिन, इनकी पहचान इससे भी कहीं हटकर है। आपको हैरत होगी कि ये बिना अंगूठे के इतना सटीक निशाना लगाते हैं जिसकी कल्पना करना भी कठिन लगता है। ये खुद को को एकल्वय का वंशज बताते हैं।
गुरु द्रोण की गुरु दक्षिणा एकलव्य ने गुरु द्रोण की मिट्टी की प्रतीमा बनाकर अपनी धनुर विद्या की शुरुआत की थी। उसकी इसी लगन और त्याग की बदौलत गुरु द्रोण खुदको उससे प्रभावित होने से नहीं रोक पाए थे। लेकिन जब एकलव्य और गुरु द्रोण का आमना-सामना हुआ तो गुरु दक्षिणा के तौर पर द्रोण ने एकलव्य का अंगूठा ही मांग लिया था। एकलव्य ने भी गुरु द्रोण को गुरु दक्षिणा के रूप में अपना अंगूठा भेंट करने में जरा भी देर नहीं लगाई थी। आज के ये एकलव्य भी उसी गुरु दक्षिणा के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए तीर चलाते समय कभी भी अंगूठे का इस्तेमाल नहीं करते हैं
मरवाही के घने जंगल हैं बसेरा बिलासपुर जिले में स्थित मरवाही ब्लॉक के जंगलों में पंडो आदिवासियों के अलावा बैगा आदिवासी भी रहते हैं। पंडो आदवासी विशेष पिछड़ी जनजाति में शामिल हैं। यहां के हालात बेहद तंगहाल और मुश्किलों भरे भले ही हो लेकिन इसके बाद भी ये आदिवासी यहां पर मस्तमौला होकर जिंदगी का पूरा आनंद उठाते हैं। अपने पूर्वजों को अपना आदर्श मानते हुए इनकी तरफ से उनके सम्मान में कभी कोई कमी नहीं आती है।
चकाचौंध से हैं दूर यह शहरों की चकाचौंध से कोसो दूर रहते हैं। पढ़ाई-लिखाई से दूर ये आदिवासी अपनी परंपरा का निर्वाहन करने में लगे हैं। इसे इन लोगों की साधना और अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान ही कहा जाएगा कि आज ये बिना अंगूठे के इस्तेमाल के सटीक निशाना साधने में माहिर हैं। इनका कहना है कि जब इनके पूर्वज ये कर सकते थे तो फिर वो ऐसा क्यों नहीं कर सकते।
एकलव्य की प्रतीमा बना सीखते हुए धनुर विद्या जिस एकलव्य ने गुरु द्रोण की प्रतीमा बनाकर धनुर विद्या सीखी थी वहीं अब उसके वंशज एकलव्य की प्रतीमा बनाकर इस विद्या को साधने में लगे हैं। धनुर विद्या सिखाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि कोई भी तीर चलाते समय अंगूठे का इस्तेमाल न करे। पंडो जनजाति के प्रमुख मंगल सिंह के मुताबिक ऐसा कर वह अपने पूर्वजों को सम्मान देते हैं। आपको बता दें पंडो आदिवासी भीड़भाड़ और शोर-शराबा पसंद नहीं करते हैं। वह सरकारी योजनाओं से भी कटे हुए हैं। इतना ही नहीं उन्हें आधार कार्ड के बारे में भी कोई जानकारी नहीं हैं, जिसका इस्तेमाल कई जगह पर किया जाता है।
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