निसंतान मुस्लिम दंपती भी बच्चा गोद ले सकते हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ उनके आड़े नहीं आएगा। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चा गोद लेने के जुवेनाइल जस्टिस कानून के प्रावधानों की व्याख्या करते हुए अपने फैसले में कानूनी स्थिति साफ की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विधायिका ने सभी नागरिकों के बारे में सोचने समझने के बाद जुवेनाइ
By Edited By: Updated: Wed, 19 Feb 2014 10:38 PM (IST)
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। निसंतान मुस्लिम दंपती भी बच्चा गोद ले सकते हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ उनके आड़े नहीं आएगा। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चा गोद लेने के जुवेनाइल जस्टिस कानून के प्रावधानों की व्याख्या करते हुए अपने फैसले में कानूनी स्थिति साफ की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विधायिका ने सभी नागरिकों के बारे में सोचने समझने के बाद जुवेनाइल जस्टिस एक्ट बनाया है, उसका सम्मान किया जाना चाहिए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कानून, पर्सनल लॉ और धार्मिक विश्वास में मत भिन्नता होने के कारण गोद लेने के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करने से मना कर दिया है।
पढ़ें : राजीव के हत्यारे भी फांसी की सजा से बचे, सजा उम्रकैद में बदली मुख्य न्यायाधीश पी सतशिवम, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई व न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह की पीठ ने समाज सेविका शबनम हाशमी की याचिका का निपटारा करते हुए यह फैसला सुनाया है। याचिका में सभी धर्मो और जातियों को बच्चा गोद लेने का हक दिए जाने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 41 में सभी धर्मो और जातियों के लोगों को समान रूप से बच्चा गोद लेने का हक दिया गया है। ज्यादातर राज्यों ने अपने यहां इस कानून और सेंटर एडाप्शन रिसोर्स एजेंसी (कारा) के दिशानिर्देश को लागू कर रखा है। कोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की दलीलें खारिज करते हुए कहा कि जुवेनाइल जस्टिस कानून गोद लेने का हक देने वाला एक सकारात्मक कानून है। कानून में कोई बाध्यता नहीं है। बच्चा गोद लेने वाले माता-पिता ऐसा करने और न करने के लिए स्वतंत्र हैं। वे चाहें तो अपने पर्सनल लॉ की मान्यताओं का पालन कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा है कि कानून सिर्फ संविधान के अनुच्छेद 44 (नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता (यूनीफार्म सिविल कोड) की तरफ बढ़ाया गया एक छोटा सा कदम है। निजी विश्वास और धार्मिक मान्यताओं का अवश्य ही सम्मान किया जाना चाहिए लेकिन ये कानून के प्रावधानों पर हावी नहीं हो सकतीं।
कोर्ट ने कहा कि एक वैकल्पिक कानून (जिसे मानने की बाध्यता न हो) को पसर्नल लॉ के सिद्धांतों को व्यर्थ करने वाला नहीं कहा जा सकता। जबतक हम यूनीफार्म सिविल कोड के लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर लेते तब तक जो व्यक्ति उसे मानता है उस पर वह लागू होगा। यह याचिका वर्ष 2005 में दाखिल की गई थी। उस समय हिंदुओं के अलावा अन्य धर्मो को मानने वाले अगर बच्चा गोद लेते थे तो उन्हें माता-पिता का दर्जा नहीं मिलता था, बल्कि संरक्षक का दर्जा मिलता था। शबनम हाशमी ने याचिका दाखिल कर अन्य धर्मो के लोगों को भी गोद लिए बच्चे के माता-पिता का दर्जा दिए जाने की मांग की थी। इस याचिका के लंबित रहने के दौरान ही सरकार ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में संशोधन किया और सभी धर्मो और जातियों को समान रूप से बच्चा गोद लेने का हक दिया। लेकिन मामले में सुनवाई के दौरान ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अर्जी दाखिल कर कोर्ट से मांग की थी कि कानून के तहत बच्चा गोद देने वाली सरकारी कमेटियों को निर्देश दिया जाए कि मुस्लिम बच्चे को गोद देते समय इस्लामी कानून का ध्यान रखें। क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ गोद लिए बच्चे को जन्म दिए गए बच्चे के समान नहीं मानता।