पेट्रोल-डीजल कार मालिक हो जाएं सावधान! ढूंढ़ते रह जाएंगे पंप
ऐसा हम आपको इसलिए कह रहे हैं क्योंकि आनेवाले समय में सड़कों पर अधिकतर गाड़ियां आपको इलैक्ट्रिक से चलती हुई मिलेंगी।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। अगर आपके पास पेट्रोल या डीजल से चलनेवाली कारें हैं तो यह ख़बर आपके लिए है क्योंकि हो सकता है कि आनेवाले दिनों में आपको पेट्रोल पंप ना मिले या फिर आपकी गाड़ी में किसी तरह की खराबी आने पर उसे ठीक करने वाला कोई मैकेनिक ही आपको ना मिले। ऐसा हम आपको इसलिए कह रहे हैं क्योंकि आनेवाले समय में सड़कों पर अधिकतर गाड़ियां आपको इलैक्ट्रिक से चलती हुई मिलेंगी। ऐसे में पेट्रोल-डीजल से चलनेवाली गाड़ियां आपके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं।
इस समय कई तरह की चर्चाएं जोर शोर से हो रही है कि क्या आनेवाले समय में पूरी दुनिया की सड़कों से पेट्रोल और डीजल पर चलनेवाली गाड़ियां पूरी तरह से खत्म हो जाएंगी। हालांकि, कुछ कंपनियों का यह दावा है कि पेट्रोल और डीजल पर चलनेवाली गाड़ियों का वज़ूद कभी खत्म नहीं होगा। लेकिन, कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर रहा है कि जब इलैक्ट्रिक से चलनेवाली कारें सड़कों पर उतरेगी तो वह ट्रांसपोर्ट व्यावसाय की पूरी तस्वीर को बदल कर रख देगी।
एक अध्ययन के बाद स्टैंडफोर्ड के अर्थशास्त्री टोनी सेबा का मानना है कि तेल का वैश्विक कारोबार साल 2030 तक आते-आते ख़त्म हो जाएगा। हाल में जारी एक अध्ययन रिपोर्ट में टोनी ने परिवहन में क्रांतिकारी बदलाव का जिक्र करते हुए कहा कि जल्द से जल्द यह पूरी तरीके से इलैक्ट्रिक हो जाएगा।
स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी की स्टडी में दावास्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी की तरफ से प्रकाशित स्टडी के मुताबिक जीवाश्म ईंधन से चलने वाली कारें अगले आठ सालों के अंदर पूरी तरह से ख़त्म हो जाएंगी और उसके बाद जो लोग कारें खरीदना चाहेंगे उनके पास इलैक्ट्रिक गाड़ियां खरीदने के अलावा दूसरा और कोई विकल्प नहीं होगा जो एक समान तकनीक पर ही चलेंगी।
टोनी का मानना है कि ऐसा इसलिए होगा क्योंकि इलैक्ट्रिक गाड़ियां जिनमें कार, बस और ट्रक शामिल हैं उनकी परिवहन लागत काफी कम आएगी। जिसकी वजह से पूरी पेट्रोलियम इंडस्ट्री बंदी की कगार पर आ जाएगी।
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इलैक्ट्रिक कारें ही है देश का भविष्य
‘री-थिंकिंग ट्रांसपोर्टेशन 2020-30’ शीर्षक के साथ जारी स्टडी में इस बात को विस्तार से बताया गया है कि किस तरह से लोग इलैक्ट्रिक कारों की तरफ स्वीच करेंगे क्योंकि उन्हें मौजूदा पेट्रोल और डीजल से चलने वाली कारों के मुकाबले मैंटिनेंस में इलैक्ट्रिक कारें करीब दस गुणा ज्यादा सस्ती पड़ेगी।
इलैक्ट्रिक कारों की लाइफ कई गुणा ज्यादा
स्टडी रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि इलैक्ट्रिक कारों की लाइफ 1 मिलियन (16,09,344 किलोमीटर) माइल्स है जबकि उसकी तुलना में पेट्रोल और डीजल से चलनेवाली कारों की लाइफ सिर्फ 2 लाख माइल्स (3,21,000 किलोमीटर के करीब) ही है।
टोनी ने आगे बताया कि अगले एक दशक से भी कम समय में लोगों के लिए पेट्रोल पंप, मैकेनिक और यहां तक कि उन गाड़ियों के मैकेनिक्स को ढूंढ़ना मुश्किल हो जाएगा। अंत में टोना ने कहा कि आज जो पेट्रोल-डीजल गाड़ियों के डीलर्स हैं वह साल 2024 तक मार्केट में शायद ही दिखें। टोनी ने कहा कि उस वक्त काफी तादाद में ऐसे लोग होंगे जो पेट्रोल-डीजल की गाड़ियां को लेकर अपने आपको फंसे हुए महसूस करेंगे।
मौजूदा इलैक्ट्रिक गाड़ियों में कई खामियां
ट्रांसपोर्ट बाज़ार के जानकार टूटू धवन का मानना है कि दुनियाभर में एक ट्रांजिशनल फेज आएगा और करीब 98 फीसदी गाड़ियां पूरी तरह से इलैक्ट्रिक पर चलेंगी। उनका मानना है कि अभी भी कई इलैक्ट्रिक गाड़ियां बनकर आ रही हैं लेकिन वो कारगर नहीं है, जिसकी वजह है चार्जिंग के बाद ज्यादा लंबा ना चल पाना। धवन का कहना है कि जो मॉर्डन इलैक्ट्रिकल गाड़ियां आएंगी वह एक बार चार्ज होने के बाद करीब तीन सौ किलोमीटर तक चल सकती है।
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इलैक्ट्रिक गाड़ियां सफल होने के कई कारण
टूटू धवन का कहना है कि इलैक्ट्रिक गाड़ियां जहां पेट्रोल और डीजल इंजन की गाड़ियों के मुकाबले काफी सस्ती होंगी क्योंकि उसमें इलैक्ट्रिक के मुकाबले पार्ट्स काफी कम लगे होंगे तो वहीं दूसरी तरफ उसकी मैंटिनेंस लागत भी काफी कम होगी। यही वजह है कि लोग इसे ज्यादा से ज्यादा तरजीह देंगे और उसे पसंद करेंगे।
ट्रांजिशनल फेज ट्रंसपोर्ट इंडस्ट्री के लिए चुनौतीपूर्ण
जिस वक्त लोग पेट्रोल और डीजल गाड़ियों को छोड़कर इलैक्ट्रिक कारों की ओर रूख करेंगे वह फेज बेहद चुनौतीपूर्ण हो सकता है। हालांकि, टूटू धवन का कहना है कि जिस तरह इस वक्त गाड़ियां की रिसाइक्लिंग की जाती है उसी तरफ बड़े पैमाने पर गाड़ियों की रिसाइक्लिंग होगी।
जाहिर है, अगर ऐसा होता है और इलैक्ट्रिक गाड़ियां पूरी तरह से पेट्रोल और डीजल से चलनेवाली गाड़ियां की जगह ले लेती है तो उसके बाद दुनियाभर में पेट्रोल और डीजल की उपयोगिता सिर्फ नाममात्र की ही रह जाएगी। इससे जहां एक तरफ वायु प्रदूषण को रोकने में मदद मिलेगी तो वहीं दूसरी तरफ लागत के हिसाब से भी यह लोगों के लिए काफी फायदेमंद साबित होगा।
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