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दिल्ली को आधा अधूरा राज्य बनाने वाले कानून को चुनौती

दिल्ली पर केंद्र सरकार की हुक्मरानी का मसला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। दिल्ली को आधा अधूरा राज्य बनाने वाले कानून को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई है। सवाल उठाया गया है कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेशों की सूची में भी शामिल है लेकिन उसकी एक विधानसभा भी है। सारे राज्यों में मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की नियुक्ति

By Edited By: Updated: Mon, 17 Feb 2014 11:11 PM (IST)

नई दिल्ली, [माला दीक्षित]। दिल्ली पर केंद्र सरकार की हुक्मरानी का मसला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। दिल्ली को आधा अधूरा राज्य बनाने वाले कानून को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई है। सवाल उठाया गया है कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेशों की सूची में भी शामिल है लेकिन उसकी एक विधानसभा भी है। सारे राज्यों में मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं, लेकिन दिल्ली में नियुक्तियां राष्ट्रपति करते हैं। जब दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है तो यहां राष्ट्रपति शासन लगाने का क्या मतलब है? ये सब संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। सोमवार को दाखिल हुई जनहित याचिका में दिल्ली और पांडिचेरी को आधा अधूरा राज्य बनाने वाले अनुच्छेद 239ए, 239एए और 239एबी को निरस्त करने की मांग की गई है। इतना ही नहीं, याचिका में दिल्ली और पांडिचेरी को केंद्र शासित प्रदेशों की सूची से हटा कर राज्य की सूची में शामिल करने की भी मांग की गई।

दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग और बहस तो इसके जन्मदिन से ही चल रही है। 15 साल शासन करने वाली कांग्रेस की शीला सरकार ने भी कई बार हक की मांग की लेकिन अनुरोध कांग्रेस शासित दिल्ली सरकार का कांग्रेस की अगुवाई वाली केंद्र की संप्रग सरकार से था तो बात ज्यादा बढ़ी नहीं। लेकिन पिछली केजरीवाल सरकार के समय में दिल्ली के हक का मुद्दा कुछ ज्यादा गरमाया। पुलिस पर हक की मांग लेकर मुख्यमंत्री कभी केंद्र सरकार के खिलाफ धरने पर बैठे तो कभी केंद्र से पूर्व मंजूरी के बगैर जनलोकपाल बिल पेश करने की नाकाम कोशिश में सत्ता छोड़कर चले गए। ऐसे हालात में दिल्ली के हक की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई महत्वपूर्ण होगी।

दिल्ली का हक मांगने वाली यह याचिका लखनऊ की डॉ. नूतन ठाकुर और प्रतिमा पांडे ने दाखिल की है। याचिका में संविधान के अनुच्छेद 239ए, 239एए और 239एबी को असंवैधानिक ठहराए जाने की मांग की गई है। कहा गया है कि दिल्ली और पांडिचेरी को केंद्र शासित प्रदेश की सूची में शामिल रखते हुए विधानसभा गठित करने वाले प्रावधान संविधान की मूल भावना के खिलाफ हैं। 81 पृष्ठ की याचिका में संविधान के मूल ढांचे के बारे में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों का हवाला दिया गया है। साथ ही केंद्र और राज्यों के अधिकारों का वर्णन करने वाले संवैधानिक उपबंधों को भी दिया गया है। कहा गया है कि संविधान में केंद्र और राज्यों के अधिकारों का स्पष्ट विभाजन है लेकिन संविधान संशोधन कर जोड़े गए उपरोक्त उपबंधों से अधिकारों का घालमेल होता है जोकि संविधान की भावना के खिलाफ है।

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