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नहीं रहे हुल्लड़ मुरादाबादी

बड़ी बातों को रोचक ढंग से प्रस्तुत करने में माहिर हास्य कवि हुल्लड़ मुरादाबादी का शनिवार को दोपहर बाद मुंबई में निधन हो गया। 72 वर्षीय हुल्लड़ लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उन्होंने क्या करेगी चांदनी, जिगर से बीड़ी जला ले, मैं भी सोचूं तू भी सोच जैसी हास्य से सराबोर किताबें लिखीं। दो फिल्मों में अभिनय भी किया।

By Edited By: Updated: Sun, 13 Jul 2014 03:22 AM (IST)

मुरादाबाद। बड़ी बातों को रोचक ढंग से प्रस्तुत करने में माहिर हास्य कवि हुल्लड़ मुरादाबादी का शनिवार को दोपहर बाद मुंबई में निधन हो गया। 72 वर्षीय हुल्लड़ लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उन्होंने क्या करेगी चांदनी, जिगर से बीड़ी जला ले, मैं भी सोचूं तू भी सोच जैसी हास्य से सराबोर किताबें लिखीं। दो फिल्मों में अभिनय भी किया।

कवि हुल्लड़ के पुत्र नवनीत के मुताबिक हास्य रत्‍‌न अवार्ड, काका हाथरसी पुरस्कार और महाकवि निराला सम्मान के साथ कई सम्मानों से उन्हें नवाजा गया था। विदेश में भी उन्होंने कवि सम्मेलनों के माध्यम से हिंदी का डंका बजाया। हुल्लड़ मुरादाबादी का जन्म पाकिस्तान के शहर गुजरांवाला में हुआ था। बंटवारे के वक्त परिजन भारत आकर मुरादाबाद में बस गए थे। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में हिस्सा लेने वाले इस हास्य कवि को तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने भी सम्मानित किया था। शनिवार को उनके परिजनों द्वारा फोन पर निधन की सूचना मिलने पर शहर में शोक छा गया है।

हुल्लड़ वर्ष 1977 में परिवार के साथ मुंबई तो चले गए , लेकिन मुरादाबाद से उनका जुड़ाव बना रहा। सन 2000 में मुरादाबाद की पंचशील कॉलोनी छोड़कर वह पूरी तरह मुंबई में बस गए। वह छह साल से डायबिटीज व थायराइड संबंधी दिक्कतों से पीड़ित थे। स्नातक हुल्लड़ मुरादाबादी की दस पुस्तकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी ख्याति मिली। उनकी प्रमुख किताबों में 'इतनी ऊंची मत छोड़ो', 'मैं भी सोचूं तू भी सोच', 'अच्छा है पर कभी कभी', 'दमदार और दुमदार दोहे', 'हुल्लड़ हजारा' शामिल है।

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