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दिल्ली भाजपा अध्यक्ष की घोषणा के बाद सरकार बनाने के लिए हलचल तेज

दिल्ली प्रदेश भाजपा के नए अध्यक्ष की घोषणा के साथ ही पार्टी में शिथिलता दूर होने लगी है। शनिवार को प्रदेश अध्यक्ष का पदभार संभालने के बाद से ही सतीश उपाध्याय सांसदों, विधायकों व वरिष्ठ नेताओं के साथ लगातार बैठक कर रहे हैं। इसी कड़ी में सोमवार को भाजपा के विधायक सक्रिय दिखे। जहां कई विधायक प्रदेश क

By Edited By: Updated: Tue, 15 Jul 2014 08:18 AM (IST)
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नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। दिल्ली प्रदेश भाजपा के नए अध्यक्ष की घोषणा के साथ ही पार्टी में शिथिलता दूर होने लगी है। शनिवार को प्रदेश अध्यक्ष का पदभार संभालने के बाद से ही सतीश उपाध्याय सांसदों, विधायकों व वरिष्ठ नेताओं के साथ लगातार बैठक कर रहे हैं। इसी कड़ी में सोमवार को भाजपा के विधायक सक्रिय दिखे।

जहां कई विधायक प्रदेश कार्यालय में दिखे तो वहीं दिन में प्रदेश अध्यक्ष के साथ दक्षिणी दिल्ली के सांसद रमेश बिधूड़ी व जनकपुरी के विधायक जगदीश मुखी ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल से मुलाकात की। जबकि देर शाम भाजपा विधायकों ने केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के साथ बैठक की।

विधायकों की सक्रियता से दिल्ली में बनी हुई राजनीतिक अनिश्चितता दूर होने की संभावना बढ़ी है। सूत्रों के अनुसार पिछले दो दिनों से सरकार बनाने या चुनाव मैदान में उतरने के विकल्प पर गंभीरता से मंथन किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि गडकरी के घर बैठक में भी इस मुद्दे पर चर्चा हुई। विधायकों ने उनसे दिल्ली में यातायात समस्या दूर करने के लिए पूर्वी व पश्चिमी पैरिफेरल का काम शीघ्र पूरा करने की भी मांग की। उल्लेखनीय है कि गडकरी ने पिछले दिनों पार्षदों के अभ्यास वर्ग में भी कहा था कि दिल्ली में परिवहन व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए चार हजार करोड़ रुपये की योजना तैयार की गई है।

वहीं, इससे पहले पार्टी नेताओं ने ऊर्जा मंत्री से मिलकर दिल्ली के उपभोक्ताओं को बिजली कटौती तथा भारी भरकम बिजली बिल से राहत देने की मांग की। प्रदेश अध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने कहा कि यदि आम आदमी पार्टी जनता के हितों की उपेक्षा नहीं करती तो दिल्ली में निम्न एवं मध्यम वर्ग के लोगों को बिजली पर सब्सिडी मिलती रहती। अरविंद केजरीवाल ने सत्ता में रहते हुए इसके लिए कोई कदम नहीं उठाया। उन्होंने कहा कि ऊर्जा मंत्री से दिल्ली के उपभोक्ताओं को बिजली बिल में राहत देने तथा बिजली वितरण कंपनियों को अघोषित बिजली कटौती बंद करने का निर्देश जारी करने की मांग की गई। इसके साथ ही केंद्रीय बजट में मिले 200 करोड़ रुपये व अन्य संसाधनों से दिल्ली में बिजली आपूर्ति के लिए बुनियादी ढांचा सुधारने के लिए कार्य शुरू करने तथा मानसून को ध्यान में रखकर विशेष नियंत्रण कक्ष स्थापित करने के लिए भी कंपनियों को जरूरी निर्देश देने की मांग की गई है।

खल रही चुनी हुई सरकार की कमी :

आगामी 17 जुलाई को राजधानी में राष्ट्रपति शासन के पांच महीने पूरे हो जाएंगे। उपराज्यपाल नजीब जंग नौकरशाहों की टीम के साथ सूबे की हुकूमत चला रहे हैं। इसके बावजूद एक चुनी हुई सरकार की कमी लगातार खल रही है। लगभग एक साल से शहर के विकास से संबंधित किसी नई परियोजना पर काम शुरू नहीं किया जा सका है। ऐसे माहौल में संकेत हैं कि भाजपा कुछ अन्य दलों के साथ मिलकर सूबे में सरकार बना सकती है।

इस संबंध में सोमवार को भाजपा विधायकों की केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से हुई मुलाकात को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। बताते हैं कि इस मुलाकात में सरकार बनाए जाने को लेकर सकारात्मक संकेत मिले हैं। इस साल 14 फरवरी को अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली दिल्ली सरकार ने इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद 17 फरवरी को दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया था। दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू करने के बावजूद विधानसभा को भंग करने के बजाय इसे निलंबित हालत में इसी लिए रखा गया था कि देर-सवेर दिल्ली में नई सरकार का गठन हो जाएगा। लेकिन सरकार अब तक बन नहीं पाई है।

बिजली-पानी की किल्लत राजधानी में कोई पहली बार नहीं हुई है। लेकिन इतना जरूर है कि शहर में पहली बार राष्ट्रपति शासन लागू है, लिहाजा लोगों को चुनी हुई सरकार की कमी ज्यादा खली। यह दलील भी दी गई कि यदि कोई चुनी हुई सरकार मौजूद होती तो बिजली और पानी को लेकर जिस प्रकार के हालात बने, वे नहीं बन पाते। इसी प्रकार महंगाई के मोर्चे पर भी प्रशासन जूझता नजर आया। छापेमारी अभियान चलाकर सरकार ने जमाखोरों और कालाबाजारी करने वालों पर लगाम लगाने में कोई कसर नहीं उठा रखी। इसके बावजूद यह कहा गया कि दिल्ली में निर्वाचित प्रतिनिधियों की सरकार का होना बेहद जरूरी है।

राजधानी के सियासी हालात बता रहे हैं कि यहां पर अकाली दल के साथ 29 विधायकों वाली भाजपा ही निर्दलीय व अन्य विधायकों के साथ मिलकर सरकार बना सकती है। उसे कांग्रेस से अलग होकर कोई गुट सरकार बनाने में सहयोग कर सकता है अथवा आम आदमी पार्टी विधायक दल में बंटवारा होना की सूरत में नई सरकार बन सकती है। यदि सरकार नहीं बनी तो राजधानी में नए सिरे चुनाव कराना ही एकमात्र विकल्प होगा। हालांकि विधायक चुनाव में नहीं जाना चाहते और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से भी उन्हें सरकार बनाए जाने को लेकर सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं।

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