पश्चिम बंगाल चुनाव में गेहूं-चावल की राजनीति
पश्चिम बंगाल का चुनाव यह तय करेगा कि ममता के डोंगे में चावल कितना पका है। सच्चाई यह है कि पश्चिम मेदिनीपुर, पुरुलिया और बांकुरा के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आज भी चावल की
आशुतोष झा, बांकुरा । पश्चिम बंगाल का चुनाव यह तय करेगा कि ममता के डोंगे में चावल कितना पका है। सच्चाई यह है कि पश्चिम मेदिनीपुर, पुरुलिया और बांकुरा के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आज भी चावल की राजनीति अहम है और विरोधी इसे मुद्दा बनाने में नहीं चूक रहे हैं कि गरीबों के कटोरे में भरपेट चावल नहीं है। जबकि सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस का दावा है कि उसने हर किसी का पेट भरने के लिए प्रदेश के खाते से चार हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की सब्सिडी दी है ताकि नौ करोड़ की आबादी वाले राज्य में सात करोड़ लोगों को दो रुपये की दर से चावल या गेहूं मिले।
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पश्चिम बंगाल की बदली हुई राजनीतिक परिस्थिति में तृणमूल कांग्रेस के नेता नारदा स्टिंग के बाद भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बोलने में भले ही थोड़ा हिचकते हों, लेकिन ममता सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को लेकर उत्साहित हैं। सस्ते चावल की शुरुआत ममता ने जंगलमहल क्षेत्र में की थी। एक प्रकार से जहां यह नक्सलवाद के खिलाफ एक कदम था वहीं इसकी राजनीतिक मंशा को इसलिए नहीं नकारा जा सकता है क्योंकि इन तीन जिलों में ही लगभग साढ़े तीन दर्जन विधानसभा सीटें हैं।
कुछ दिन पहले ही ममता ने इसका थोड़ा और विस्तार कर दिया था और आदिवासी होने की शर्त हटा दी थी। उनका दावा था कि वह लगभग दो तिहाई जनता को दो रुपये प्रतिकिलो की दर से पांच किलो चावल या गेहूं मुहैया करा रही हैं। ध्यान रहे कि छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री रमन सिंह की जीत में भी सस्ते चावल का योगदान रहा था और उनका नाम ही चाउर वाले बाबा पड़ गया था। बहरहाल शायद ममता जमीन पर इसके क्ति्रयान्वयन की पूरी निगरानी नहीं कर पा रही हैं।
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बांकुरा के विष्णुपुर विधानसभा क्षेत्र के दादाबाड़ी गांव में अधिकतर परिवार खेत मजदूर या दैनिक श्रमिक हैं। गूंगी जुग्गती अपने पति और तीन बच्चों के साथ रहती है। उसे प्रतिव्यक्ति आधा किलो चावल साप्ताहिक मिलता है। उसी के पड़ोस में एक और परिवार है जिसमें पांच सदस्य हैं, लेकिन डिजिटल कार्ड सिर्फ तीन का बना लिहाजा चावल भी तीन के हिस्से का मिलता है। पर इसके लिए लोग ममता को दोषी नहीं मानते हैं। पास के एक तालाब में मछली मारने में जुटे युवकों के एक समूह ने कहा, 'ममता क्या करेंगी.वह चावल बांटने तो आएंगी नहीं, दोषी तो नीचे के लोग हैं।'
तृणमूल की आस बहुत कुछ चावल पर भी टिकी है। इसके अलावा वह कन्याश्री कार्यक्रम को भी अपने चुनाव प्रचार में पीछे नहीं छोड़ना चाहती है। पास के ही सालबोनी विधानसभा क्षेत्र में तृणमूल के चुनाव कार्यालय में बैठे उदित नंदी ने कहा, 'ममता ने हर किसी के कल्याण के लिए कदम बढ़ाया है। कोई दुष्प्रचार करता है तो करता रहे, हम जीतेंगे।'