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रियासत की सियासत में चढ़ रहा है बुखार

[नवीन नवाज], जम्मू। अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंचा मार्च पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता से बरस रहे बादलों के बीच हो रहे हिमपात के कारण बेशक ठंड को नहीं भगा पाया है, लेकिन सर्द हवाओं के बीच रियासत की सियासत में चढ़ रहे सियासी बुखार की गर्मी इस बार सबसे अलग है। न ऑटोनॉमी का शोर है, न सेल्फ रुल का हंगामा और न धारा 370 को भंग कर

By Edited By: Updated: Mon, 24 Mar 2014 03:19 PM (IST)
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[नवीन नवाज], जम्मू। अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंचा मार्च पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता से बरस रहे बादलों के बीच हो रहे हिमपात के कारण बेशक ठंड को नहीं भगा पाया है, लेकिन सर्द हवाओं के बीच रियासत की सियासत में चढ़ रहे सियासी बुखार की गर्मी इस बार सबसे अलग है। न ऑटोनॉमी का शोर है, न सेल्फ रुल का हंगामा और न धारा 370 को भंग करने का खुमार। ऐसा नहीं कि चुनाव प्रचार नहीं हो रहा है, सभी सियासी दल रियासत की छह सीटों पर अपना परचम लहराने की बेकरारी के साथ मतदाताओं को रिझाने में जुटे हुए हैं। लेकिन इस बार परंपरागत मुददों की सियासत से बच रहे हैं। चुनाव पूरी तरह मोदी बनाम अन्यत हो चुका है।

मतदाता भी हैरान हैं और कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ कहलाने वाले भी, आखिर इस बार जम्मू कश्मीैर में ऑटोनॉमी, सेल्फ रुल और धारा 370 का मुददा कहीं भी ज्यादा नहीं गूंज रहा है। हालांकि दिसंबर में जब नरेंद्र मोदी की जम्मू में रैली हुई थी तो उसके बाद यह तय माना जा रहा था कि नेशनल कांफ्रेंस ऑटोनॉमी पर और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी सेल्फ रुल पर रियासत में विशेषकर कश्मीर घाटी में और जम्मू प्रांत के उपरी विशेषकर मुस्लिम बहुल इलाकों में मतदाताओं को रिझाने का प्रयास करेंगी। वह धारा 370 के भंग होने के नाम पर उन्हें डराएंगे जबकि दूसरी तरफ कांग्रेस बीच का कोई रास्ता निकालते हुए अपनी उपलब्धियों का बखान करते हुए भाजपा को देश का सबसे बडा शत्रु करार देते हुए लोगों से कहेगी कि जम्मू कश्मीर को बचाए रखने के लिए उसका साथ दो जबकि भाजपा धारा 370 पर जोर देते हुए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल की याद दिलाते हुए चुनावी किश्ती पार कर करने का प्रयास करेगी।

अलबत्ता, चुनावों का शंखनाद होने के बाद रियासत का चुनावी माहौल देखकर सभी हैरान हैं। पीपुल्स डेमाक्रेटिक पार्टी, नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस और भाजपा कहीं भी पुराने नारों पर नजर नहीं आ रही है। कश्मीर हो या गुवाहाटी अपना देश अपनी माटी, धारा 370 को मिटाएंगे, का प्रचार करते हुए भाजपा के लोग नजर नहीं आ रहे हैं। नेशनल कांफ्रेंस ने भी धारा 370 के खिलाफ कोई ज्यादा हंगामा नहीं किया और न उमर अब्दुल्ला ने यह दावा किया है कि वह संसद में आटोनामी को प्रस्ताव कराएगी। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के संरक्षक मुफ़ती मोहम्मद सईद भी शोर नहीं मचा रहे हैं कि सेल्फ रुल जरुरी है, कश्मीर को भारत-पाक के बीच फ्री इकोनामिक जोन बनाया जाएगा।

नेशनल कांफ्रेंस पूरी तरह संप्रंग के साथ खडी है, पीडीपी और भाजपा अलग-अलग अपने -अपने बूते पर मैदान में हैं। पिछले संसदीय चुनावों में कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस ने मिलकर चुनाव लडा व सभी छह सीटें जीती थी। उसी समझौते अथवा फामरूेले के साथ यह दोनों दल दोबारा मैदान में हैं। वर्ष 2009 के संसदीय चुनावों में पीडीपी और भाजपा को उम्मी दों के विपरीत करारी शिकस्त हुई थी। हालांकि दोनों को लगा था कि वह ज्यादा नहीं तो एक एक सीट जीत जाएंगी। उन दिनों श्री अमरनाथ भूमि विवाद का भी कहीं न कहीं चुनावी असर था।

पांच साल बीत जाने के बाद अब राज्यो में वह युवा आज हताश हैं,जिन्होंने 2008 के विधानसभा चुनावों में और उसके बाद 2009 के संसदीय चुनावों उमर अब्दुल्ला और राहुल गांधी की जोडी से प्रभावित होकर एक सकारात्मक बदलाव, एक नए दौर की शुरुआत की उम्मीरद में उनके लिए वोट किया था। सत्तासीन कांग्रेस नेशनल कांफ्रेंस का गठबंधन अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं है। भ्रष्टाचार, लगातार बिगड़ती विधि व्यवस्था्, अफस्पाद पर किसी तरह की पहल न होना, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के लिए इन चुनावों में चिंता का सबसे बडा कारण हैं और यही कारण है कि केंद्रीय नव अक्षय उर्जा मंत्री डा फारुक अब्दुल्ला और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद को मैदान में उतारना पडा है।

कांग्रेस और भाजपा दोनों ही खुलेआम एक दूसरे के नेताओं व नीतियों को निशाना बना रही हैं।लेकिन यह दोनों दल आटोनामी, सेल्फ रुल, धारा 370 पर इस बार यहां लगभग चुप हैं। रियासत की सियासत के दो मुख्य खिलाडी नेशनल कांफ्रेंस व पीडीपी कहीं भी कांग्रेस व भाजपा के खिलाफ स्पष्ट तौर पर कोई अभियान नहीं चला रही हैं। लेकिन मोदी को जरुर निशाना बनाया जा रहा है। ऐसा लग रहा है कि जैसे यह चुनाव नरेंद्र मोदी बनाम अन्य हो चुका है। भाजपा भी अपने प्रत्याशियों का नहीं बल्कि मोदी का ही प्रचार कर रही है और नमो की जय का नारा लगाते हुए वोट मांग रही है।

हालांकि जम्मू कश्मीर की छह सीटें नई दिल्ली में सरकार बनाने के लिए कोई ज्यादा अहम नहीं है, लेकिन मौजूदा सियासी समीकरणों में यह अहम हो चुकी हैं। इसलिए भाजपा खुलकर नेशनल कांफ्रेंस या पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के खिलाफ उग्र तरीके से प्रचार नहीं कर रही है, क्योंकि जिन दो सीटों उसका सबसे ज्यादा दांव लगा है, वहां उसे कांग्रेस प्रत्याशी से लड़ना है जबकि कश्मीर में कांग्रेस के सहारे चुनाव लड रही नेशनल कांफ्रेंस के लिए भाजपा वहां गिनती में नहीं है,उसे चुनौती सिर्फ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी से है।

भाजपा और कांग्रेस दोनों को उम्मीद है कि चुनावों के बाद अगर उन्हें नेशनल कांफ्रेंस या पीडीपी से सहयोग लेना पडा तो उस समय धारा 370 से लेकर आटोनामी व अफस्पी और सेल्फ रुल की बात उठ सकती है। जबकि नेशनल कांफ्रेंस व पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को पता है कि उन्हें संसद में नहीं अगले कुछ महीनों के बाद रियासत में होने वाले विधानसभा चुनावों में नई दिल्ली के आशिर्वाद की ज्यादा जरुरत होगी। इसलिए पीडीपी के संरक्षक मुफ्ती मोहम्मद सईद नरेंद्र मोदी की निंदा तो कर रहे हैं, लेकिन एनडीए के शासनकाल की सराहना कर रहे हैं। वह कह रहे हैं कि कश्मीर समस्या के समाधान के लिए आगे बढने का साम‌र्थ्य सिर्फ भाजपा में है। वह संसदीय चुनावों में सिर्फ इसलिए हिस्सा ले रहे हैं ताकि संसद में पीडीपी के उम्मीदवार कश्मीरियों की आवाज के अनुरुप कश्मीर समस्या के हल के लिए माहौल बना सकें। वह प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह की सराहना तो करते हैं, लेकिन रियासत में बिगड़ते हालात के लिए कांग्रेंस को नहीं बल्कि नेशनल कांफ्रेंस- कांग्रेस के गठजोड़ को जिम्मेदार ठहराते हैं।

पीडीपी की तरह ही नेशनल कांफ्रेंस जिसका गठजोड़ कांग्रेस के साथ है, अटल बिहारी वाजपेयी की सराहना करती है (केंद्रीय नव अक्षय ऊर्जा मंत्री डा फारुक अब्दुल्ला ने भी मोदी को सराहा था। लेकिन स्थानीय सियासी समीकरणों को देखते हुए उन्हें ने कहा कि मोदी तो भारत और भारतीय धर्मनिरपेक्षता का दुश्मन है।

नेशनल कांफ्रेंस व पीपुल्स डेमोक्रेटिक नरेंद्र मोदी को कश्मीर मुस्लिमों का दुश्मन बताकर अपनी रियासत में अपनी सियासत बचाने के प्रयास में है जबकि कांग्रेस उसे धर्मनिरपेक्षता पर सबसे बडा खतरा करार देकर अपनी तीन सीटों को पक्का करना चाहती है। खैर चुनाव परिणाम जो भी हो,लेकिन इतना तय हो चुका है कि मोदी के कारण जम्मू कश्मीर के लोगों को बेशक अस्थायी तौर पर ही सही लेकिन अफस्पाक, आटोनामी,धारा 370 और सेल्फ रुल जैसे पुराने और परंपरागत नारों से आजादी मिल गई है।