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आतिशबाजी के लिए विख्यात है पुत्तिंगल मंदिर, पहले भी हो चुके हैं हादसे

सौ साल पुराना पुत्तिंगल मंदिर नवरात्र में होने वाली आतिशबाजी के लिए विख्यात है। हादसे की पांच अहम वजहों में यहां पर आतिशबाजी का बड़ा गोदाम होना भी है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Sun, 10 Apr 2016 08:07 PM (IST)
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नई दिल्ली। पुत्तिंगल मंदिर तिरुअनंतपुरम से करीब 60 किलोमीटर दूर समुद्र तट पर बसे कोल्लम जिले के पारावुर में मौजूद है। सौ साल पुराना यह मंदिर अपने यहां होने वाली आतिशबाजी के लिए विख्यात है। इसके अलावा भी राज्य के कई अन्य मंदिर भी भव्य आतिशबाजी के लिए जाने जाते हैं। नवरात्र को यहां पर आतिशबाजी की प्रतियोगिता होती है जिसे देखने हजारों लोग पहुंचते हैं। लोगों का मानना है कि इस इलाके में देवी का निवास है इसलिए मंदिर में नवरात्र के दौरान भक्तों की भीड़ हर साल जुटती है। नए साल के अवसर पर भीड़ बढ़ जाती है। 14 अप्रैल को मलयालम नववर्ष शुरू होता है।

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पहले पहले भी हुए हैं इस तरह के हादसे

कोल्लार जिले के पुरावूर में स्थित पुत्तिंगल मंदिर में पटाखों से हुआ भीषण अग्निकांड केरल की पहली घटना नहीं है। नियमों के पालन में गंभीर व प्राणघातक लापरवाही के कारण इससे पहले भी मंदिरों, धार्मिक आयोजनों और पटाखा फैक्ट्रियों में पटाखों से आग लगने के कारण कई लोगों की मौत हो चुकी है। केरल में हादसों का विवरण इस प्रकार है-

- इसी वर्ष जनवरी में कोच्चि में मराडू कोट्टारम भगवती मंदिर के साथ सटी एक पटाखा फैक्ट्री में आग लगने से एक महिला की मौत हो गई थी। आसपास के अनेक घरों में बड़ा नुकसान हुआ। यह मंदिर आतिशबाजी प्रदर्शन के लिए विख्यात है। यहां हर वर्ष फरवरी में आतिशबाजी की जाती है। इसी कार्यक्रम के लिए पटाखे बनाए जा रहे थे।
- पन्नीयामकुरीसी में मार्च, 2013 में पटाखा फैक्ट्री के अस्थायी टेंट में आग से सात लोगों की मौत हुई थी।

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- त्रिचूर में दिसंबर ,2011 में पटाखा फैक्टरी की आग से छह लोगों की मौत हो गई थी। त्रिचूर में वार्षिक पूरम फेस्टिवल सबसे बड़ा आयोजन माना जाता है जहां राज्य में सबसे अधिक आतिशबाजी होती है। इसी कार्यक्रम के लिए पटाखे बनाए जा रहे थे।
- शोरानपुर में फरवरी, 2011 में पटाखा इकाई में आग से 13 लोग मारे गए। फैक्टरी के लाइसेंस की मियाद गुजर चुकी थी।
- त्रिचूर में मई, 2006 में पटाखा फैक्टरी में विस्फोट से चार लोगों की मृत्यु हुई। इसमें पेरामेक्कावू मंदिर के लिए पटाखे बनाए जा रहे थे।
- दो चर्च फेस्टिवल में कन्दाशामकदाऊ में 1989 में 12 तथा 1984 में 20 लोगों की मौत हुई थी।
- विश्वविख्यात सबरीमाला मंदिर में 1952 में पटाखों के कारण आग लगने से 68 लोग मारे गए थे।

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हादसे की पांच वजहें

1. मंदिर परिसर में ही पटाखा गोदाम होना सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। पटाखे मंदिर के स्टोर रूम में रखे गए थे।

2. दुर्घटना से निपटने के प्रबंध कतई नहीं थे। सब कुछ अचानक हुआ। न फायर ब्रिगेड था न एंबुलेंस। वहां मौजूद पुलिस वाले भी हक्के-बक्के रह गए। कुछ पुलिसवालों की मौत की भी सूचना है।

3 आतिशबाजी हो रही थी तो मंदिर परिसर में 10 से अधिक लोग मौजूद थे। विस्फोट होते ही परिसर में भगदड़ मच गई, बाहर निकलने के मार्ग संकरे होने के कारण प्राणहानि अधिक हुई।

4. पटाखों का सुरक्षित भंडारण नहीं किया गया। आतिशबाजी स्थल और पटाखा गोदाम में दूरी काफी कम थी। आतिशबाजी की चिंगारी लगातार गोदाम तक जा रही थी।

5. सवाल है कि परिसर में पटाखे कैसे पहुंचे। जब आतिशबाज़ी हो रही थी तब पुलिस भी वहां मौजूद थी, आतिशबाजी क्यों नहीं रोकी गई।