पुत्तिंगल मंदिर हादसा: कानों में गूंज रही हैं दर्दनाक चीखें
रविवार तड़के साढ़े तीन बजे का समय रहा होगा। सौ वर्ष पुराने पुत्तिंगल मंदिर में आतिशबाजी अपने चरम पर थी।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Sun, 10 Apr 2016 09:36 PM (IST)
कोल्लम। रविवार तड़के साढ़े तीन बजे का समय रहा होगा। सौ वर्ष पुराने पुत्तिंगल मंदिर में आतिशबाजी अपने चरम पर थी। टीवी पत्रकार लालू पड़ोस के एक इमारत से इस नजारे को देख रहे थे। अचानक तभी उन्हें वहां से आग का भयानक गोला आसमान की ओर उठते दिखा। एक के बाद एक कई भयानक धमाकों से वह एकबारगी सन्न रह गए। चारों तरफ से उठ रहीं आह, हाय, बचाओ, भागो के साथ रोने-चीखने की अंतर्मन को हिला देने वाली हृदयविदारक दर्दनाक आवाजों से वे इस कदर दहशतजदा हो गए कि हादसे के घंटों बाद भी वह बमुश्किल बात करने के लिए राजी हुए।
बकौल लालू, 'धमाके इतने भयानक थे, मुझे लगा कि दिमाग फट जाएगा। कान तो अभी तक सांय-सांय कर रहा है। आग के गोलों से घिरे छटपटाते जलते लोगों की दर्दनाक चीखें अभी तक कानों में गूंज रही हैं। उस दृश्य को याद कर मेरा रोम-रोम कांप उठता है। चारों तरफ बिखरीं लाशों का दृश्य जेहन से उतर नहीं पा रहा है। खौफजदा हूं। कांपती आवाज में टीवी पत्रकार ने बताया, 'इतना कुछ होने के बावजूद मैं साहस कर मंदिर परिसर की ओर गया। वहां तड़पते-मरते लोगों को अपनी आंखों से देखा। चारों तरफ मानव अंग-प्रत्यंग बिखरे और जल रहे थे। बड़ा भयावह दृश्य था। जिंदगी भर इस हादसे को भुला नहीं पाऊंगा। आग से घिरे लोगों को मरते हुए देखने का दृश्य मुझे जिंदगी भर परेशान करता रहेगा। मैं उनके लिए कुछ कर नहीं पाया। इसका पश्चाताप रहेगा।पुट्टींगल मंदिर हादसा पर बोले मोदी, इस दुख की घड़ी में केंद्र राज्य के साथ खड़ा
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वहीं मंदिर से एक किलोमीटर की दूरी पर रहने वाली गिरिजा को लगा कि भयानक हादसे के साथ भूकंप आ गया है। वह सात दिवसीय 'मीना भरणी पर्व के अंतिम दिन पूजा-पाठ के लिए ब्रह्म मुहुर्त में उठी थीं। गिरिजा के अनुसार, 'पहले भयानक आवाज के साथ धमाका सुनाई दिया, फिर धरती कांपती महसूस हुई। मंदिर के निकट रहने वाले राजू ने बताया, 'तेज धमाके के साथ मंदिर से आग का गोला उठता देखा। जब मैं वहां पहुंचा तो मंदिर में चारों तरफ लाशें ही लाशें बिखरीं पड़ी थीं। कुछ जल रही थीं, कुछ तो पहचान के लायक भी नहीं थीं। किसी का सिर गायब था तो कहीं धड़ अलग होकर जल गया था। विजयन के मुताबिक, 'जिस इमारत में पटाखे रखे हुए थे, वह तो पूरी तरह तबाह हो गई। मंदिर का कार्यालय भी खाक हो गया। दिहाड़ी मजदूर सुरेश बाबू ने बताया, 'मैं तो वहां का दृश्य देखकर कांप गया। किसी का हाथ जला देखा तो दूर कहीं किसी का पैर जल रहा था। कहीं सिर खाक हो रहा था तो कहीं कोई घायल तड़प रहा था। मैं इस कदर सदमे में हूं कि कुछ भी खाने-पीने का मन नहीं कर रहा है। लाशें मेरा पीछा नहीं छोड़ रही हैं। मुझे अफसोस है कि मरते हुए लोगों की कोई मदद नहीं कर पाया। इसका जिंदगी भर अफसोस रहेगा।