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जानिए कैसे, राहुल के 'गुजरात माडल' में भी पस्त कांग्रेस

राहुल गांधी ने अपनी न्यूज़ीलैंड यात्रा का जिक्र करते हुए कहा था कि न्यूज़ीलैंड सारी दुनिया में दूध एवं दुग्ध उत्पाद बेचता है, सिवाय भारत के।

By Manish NegiEdited By: Updated: Fri, 03 Nov 2017 06:53 PM (IST)
जानिए कैसे, राहुल के 'गुजरात माडल' में भी पस्त कांग्रेस

ओमप्रकाश तिवारी, आनंद (गुजरात)। मंगलवार को अंकलेश्र्वर की सभा में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेस की सत्ता आने पर जिस पुराने गुजरात मॉडल को लाने का जिक्र किया था, वास्तव में वह मॉडल भी अब कांग्रेस के हाथ से पूरी तरह फिसल चुका है।

राहुल गांधी ने अपनी न्यूज़ीलैंड यात्रा का जिक्र करते हुए कहा था कि न्यूज़ीलैंड सारी दुनिया में दूध एवं दुग्ध उत्पाद बेचता है, सिवाय भारत के। क्योंकि यहां अमूल और आनंद है। राहुल कांग्रेस की सत्ता आने पर भाजपा के गुजरात मॉडल के बजाय अमूल-आनंद का गुजरात मॉडल लाने की बात कर रहे थे। लेकिन पिछले डेढ़ दशक में अमूल और आनंद के गुजरात मॉडल को दुनिया में प्रसिद्धि दिलाने वाले सहकारी संगठनों में न सिर्फ उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, बल्कि इन संगठनों से कांग्रेस का पूरी तरह सफाया भी हो चुका है।

गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में दूध का उत्पादन करने वाले 36 लाख से ज्यादा किसानों की 18000 सहकारी संस्थाओं के कर्ताधर्ता भाजपा संगठन से जुड़े हुए हैं। बड़ी बात यह कि सूरत के हीरा व्यवसाय या दूसरे उद्योगों में मंदी के दौर में अपने गांव लौटनेवाले युवाओं को यह पर्यायी व्यवसाय बड़ा सहारा भी दे रहा है।

गुजरात का आनंद स्थित अमूल डेयरी विश्व प्रसिद्ध है। सहकारिता के मॉडल पर चलनेवाली इस डेयरी के संस्थापक त्रिभुवनदास पटेल एवं यहां श्वेत क्रांति के जनक वर्गीज कूरियन के प्रयासों से गुजरात के गांव-गांव में महिलाएं दुग्ध उत्पादन कर अपने गांव में ही एक स्थान पर दूध इकट्ठा करती हैं। फिर अमूल डेयरी की गाड़ी आकर वहां से दूध ले जाती है। यह मॉडल किसानों के लिए पर्यायी आमदनी का एक अच्छा साधन बन चुका है। इस व्यवस्था के सुचारु रूप से संचालन के लिए गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) का गठन किया गया है। राज्य के 36 लाख किसान परिवार करीब 200 लाख लीटर दूध का रोज उत्पादन कर जीसीएमएमएफ से जुड़ी 18000 सहकारी संस्थाओं के जरिए अमूल डेयरी तक दूध पहुंचाते हैं। ये संस्थाएं राज्य भर में 18 बड़ी यूनियनों से जुड़ी हैं।

पिछले डेढ़ दशक के दौरान सहकारिता के आधार पर चलनेवाली इन यूनियनों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। 2003-2004 में जहां ग्राम स्तर की 10,500 सहकारी संस्थाएं सक्रिय थीं, वहीं अब इनकी संख्या बढ़कर 18000 हो गई है। इनके व्यवसाय में भी जबरदस्त उछाल आया है। 2009 में जीसीएमएमएफ का व्यवसाय जहां 8000 करोड़ था, वहीं 2016-17 में तीन गुने से भी ज्यादा बढ़कर 27000 करोड़ हो गया है।

जाहिर है, सौदा फायदे का और किसानों का सीधा फायदा पहुंचाने वाला है। इसलिए कांग्रेस और भाजपा दोनों इन सहकारी दुग्ध संस्थाओं पर कब्जा करने की कोशिश में रहते हैं। लेकिन लगातार 22 वषरें से सत्ता में रहने के कारण इस क्षेत्र में भी भाजपा भारी पड़ती दिखाई देती है। भाजपा प्रवक्ता जयनारायण व्यास के अनुसार इन सहकारी संस्थाओं के जरिए गांवों तक पहुंचने का भाजपा का प्रयास सफल रहा है। फिलहाल सभी 18 यूनियनों के प्रमुख भाजपा के हैं। यही नहीं, जीसीएमएमएफ के चेयरमैन रामसिंह चौहाण 2012 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने थे। लेकिन पिछले दिनों राज्यसभा चुनाव की उठापटक में अब भाजपा के पाले में आ चुके हैं।

बात सिर्फ 18 यूनियनों तक सीमित नहीं रहती। वोट की बात करें तो यह ग्राम स्तरीय 18000 हजार सहकारी संस्थाओं से जुड़ते हुए घर-घर तक पहुंचती है और ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा इसे अपनी बड़ी ताकत मान रही है।

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