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कांग्रेस की चुनौतियों से रूबरू हुए राहुल

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। फैसलों में देरी, राजनीतिक मुद्दों पर असमंजस, क्षेत्रीय नेताओं का कमजोर होना, राज्यों के नेताओं की आपसी कलह और समर्पित कार्यकर्ताओं पर अमीरों को तरजीह। इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों और अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने ये सबसे बड़ी पांच चुनौतियां होंगी। संगठन में फेरबदल से पहले कांग्रेस के सभी महासचि

By Edited By: Updated: Thu, 31 Jan 2013 11:06 PM (IST)

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। फैसलों में देरी, राजनीतिक मुद्दों पर असमंजस, क्षेत्रीय नेताओं का कमजोर होना, राज्यों के नेताओं की आपसी कलह और समर्पित कार्यकर्ताओं पर अमीरों को तरजीह। इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों और अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने ये सबसे बड़ी पांच चुनौतियां होंगी। संगठन में फेरबदल से पहले कांग्रेस के सभी महासचिवों व सचिवों के साथ कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की बैठक में मोटे तौर पर ये मुद्दे उठे। गुरुवार को कांग्रेस के महासचिवों व राज्य प्रभारियों ने अपनी बात रखी तो शुक्रवार को बैठक में सचिव स्तर के पदाधिकारी बेबाक और बेलौस तरीके से अपना पक्ष रखेंगे। संकेत हैं कि संगठन में व्यापक फेरबदल या उसका पुनर्गठन राहुल बहुत जल्द करेंगे।

उपाध्यक्ष बनने के बाद संगठन की नई टीम बनाने से पहले राहुल ने मौजूदा पदाधिकारियों के साथ बैठक कर मौजूदा चुनौतियों से दो-चार होने की कोशिश की। 24 अकबर रोड स्थित कांग्रेस मुख्यालय पर करीब ढाई घंटे बैठक चली। कुल 57 पदाधिकारियों में मौजूद 53 से राहुल ने शुरुआत में ही इस बैठक में बेबाक होकर अपनी बात रखने को कहा। उन्होंने कहा कि 'जो बता कहीं नहीं कह पा रहे हों, यहां खुलकर कहें। चाहे वह मेरे खिलाफ भी क्यों न हो, मैं बिल्कुल बुरा नहीं मानूंगा और कड़वा सच बोलने वालों का कोई नुकसान नहीं होगा।' इसके साथ ही राहुल ने संगठन की बात कहीं बाहर न जाने की भी सख्त ताकीद की।

विचार-विमर्श के दौरान बीच में राहुल ने हस्तक्षेप भी किया और कहा 'कल की बातें छोड़ें, आने वाले कल की बातें करें।' बैठक में 18 वक्ताओं को बोलने का मौका मिला। अब शुक्रवार को सचिव स्तर के पदाधिकारी बोलेंगे। संकेत हैं कि वे पार्टी के तमाम वरिष्ठों को असहज करने वाले मुद्दे उठा सकते हैं।

आमतौर पर बैठकों में कम बोलने वाले कांग्रेस अध्यक्ष के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल ने बृहस्पतिवार को कलह और अनुशासनहीनता के मुद्दे पर खरी-खरी सुनाई। पटेल ने कहा कि 'अनुशासन को नजरअंदाज न करें और कई स्तरों पर जिम्मेदारी तय की जाए। पार्टी संविधान की तो मर्यादा रखें।' मीडिया विभाग के चेयरमैन व महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने संगठन के लिए निचले स्तर से थोड़ा-थोड़ा धन इकट्ठा करने की परंपरा पर जोर दिया।

कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने दो टूक कहा कि 'कई अहम चुनाव सामने हैं। सबकी नजरें सांगठनिक फेरबदल पर हैं। लोग इंतजार कर रहे हैं, पार्टी का पुनर्गठन जल्द करें और इसमें ज्यादा देर नहीं होनी चाहिए।' कांग्रेस कार्यसमिति [सीडब्ल्यूसी] में विशेष आमंत्रित सदस्य जगमीत सिंह बरार ने दिग्विजय की बात का खुलकर समर्थन किया। बरार ने कहा कि पंजाब में फैसले टालने से ही नुकसान हुआ। कांग्रेस महासचिव चौधरी बीरेंद्र सिंह ने अपना दर्द रखा और कहा कि प्रदेश में जो मुख्यमंत्री होता है वह सत्ता का केंद्र हो जाता है। प्रदेश के अन्य नेताओं और उनके करीबियों को हाशिये पर डाल दिया जाता है, जिससे संगठन कमजोर होता है।

दक्षिणी राज्यों के प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने पार्टी के स्थानीय क्षत्रपों की कलह के साथ-साथ एक अहम मुद्दा उठाया कि कांग्रेस के क्षेत्रीय नेता धीरे-धीरे खत्म हो गए। इसका पार्टी को नुकसान हो रहा है। सरकार और संगठन में कई पद एक साथ संभाल रहे आजाद ने अपनी परेशानी बांटी और एक पद और एक व्यक्ति का सिद्धांत सख्ती से लागू करने की पैरवी की। कांग्रेस महासचिव बीके हरिप्रसाद ने आम कार्यकर्ताओं की अनदेखी पर गहरा क्षोभ जताया और कहा कि समर्पित कार्यकर्ताओं की जगह पैसे वालों की सुनी जाती है। कांग्रेस की चुनाव समिति के अध्यक्ष आस्कर फर्नाडिस ने प्रदेश, जिला ही नहीं ब्लाक और बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की जरूरत बताई।

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