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मंत्री बदला, टेंडर बदले पर नहीं सुधरा रेलवे का खाना

नरेंद्र मोदी सरकार के समक्ष रेलवे की ध्वस्त खानपान व्यवस्था में गुणात्मक सुधार की कठिन चुनौती है। दरअसल, इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन [आइआरसीटीसी] से कैटरिंग वापस लेने, नए टेंडर अवार्ड करने और दाम बढ़ाने के बावजूद रेलवे का खाना जस का तस है। जबकि, अफसरों की तमाम ऊर्जा खाने की क्

By Edited By: Updated: Mon, 19 May 2014 09:31 AM (IST)
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नई दिल्ली [संजय सिंह]। नरेंद्र मोदी सरकार के समक्ष रेलवे की ध्वस्त खानपान व्यवस्था में गुणात्मक सुधार की कठिन चुनौती है। दरअसल, इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन [आइआरसीटीसी] से कैटरिंग वापस लेने, नए टेंडर अवार्ड करने और दाम बढ़ाने के बावजूद रेलवे का खाना जस का तस है। जबकि, अफसरों की तमाम ऊर्जा खाने की क्वालिटी सुधारने और बेहतर सेवा सुनिश्चित करने की बजाय कैटरिंग पॉलिसी की नई-नई व्याख्या करने और परिणामस्वरूप वेंडरों के मुकदमों का सामना करने में जाया हो रही है।

खानपान में आइआरसीटीसी की नाकामी को देखते हुए ममता बनर्जी ने 2010 में नई खानपान नीति लागू की थी। इसके तहत खानपान का जिम्मा वापस रेलवे को सौंप दिया गया था। तब कहा गया था कि खाने की गुणवत्ता सुधरेगी और दाम भी घटेंगे। इसके बाद से कई मंत्री और वेंडर बदल गए, लेकिन खाना नहीं बदला। हां, खाने के दाम जरूर बढ़ गए। खाने की शिकायतों को लेकर जिस अखिल भारतीय टोल फ्री नंबर को बड़े जोरशोर से शुरू किया गया था, वह भी बेकार साबित हुआ।

नई नीति के तहत फूड प्लाजा, फूड कोर्ट और फास्ट फूड यूनिटों को छोड़कर बाकी छोटी-बड़ी कैटरिंग इकाइयों को ठेके देने का जिम्मा रेलवे को मिल गया है। इसमें ए, बी और सी श्रेणी के स्टेशनों की 75 फीसद छोटी यूनिटें सामान्य उम्मीदवारों और 25 फीसद छोटी यूनिटें आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को देने का प्रावधान है। जबकि डी, ई, एफ श्रेणी के स्टेशनों की 50.5 फीसद जीएमयू सामान्य श्रेणी और 49.5 फीसद एसएमयू आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए रखी गई हैं। नीति में जीएमयू और एसएमयू का आवंटन ए, बी और सी स्टेशनों के मामले में पांच साल और नवीकरण तीन साल में करने की व्यवस्था है। वहीं, सी, डी और एफ स्टेशनों के मामले में आवंटन और नवीकरण दोनों पांच-पांच साल में करने का प्रावधान है।

मगर इस नीति की खुद रेलवे बोर्ड ही धज्जियां उड़ा रहा है। शुरू में रेलवे बोर्ड नीति के हिसाब से चला। बाद में वह मनमानी पर उतारू हो गया। वर्ष 2010 के सर्कुलर [संख्या-37] में बोर्ड ने लाइसेंस फीस के साथ यूनिटों के नवीकरण की बात कही थी। जबकि, 12 जनवरी, 2012 के सर्कुलर-3 में स्पष्ट किया गया था कि जिन यूनिटों का प्रदर्शन अच्छा नहीं होगा, केवल उनका टेंडर होगा। उसके बाद बोर्ड का रुख बदलने लगा। बोर्ड ने 22 जनवरी को सर्कुलर [संख्या-12] जारी कर नवीकरण के समय लाइसेंस फीस में 10 फीसद बढ़ोतरी की बात कही। इसके बाद सभी मुख्य वाणिज्य प्रबंधकों को पत्र लिखकर कहा गया कि कैटरिंग यूनिटों के टेंडर किए जाएं।

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