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पुराने खानपान वेंडरों से पीछा छुड़ा रहा रेलवे

छोटे स्टेशनों पर तैनात खानपान वेंडरों से छुटकारा पाने के लिए रेलवे ने उन्हें तरह-तरह से परेशान करने की मुहिम छेड़ रखी है। रेलवे के डी, ई और एफ श्रेणी के छोटे स्टेशनों पर पिछले कई सालों से कैटरिंग सेवाएं देते आ रहे वेंडरों से रेल मंत्रालय छुटकारा पाना चाहता है। इसके लिए नए-नए तरीके खो

By Edited By: Updated: Sat, 01 Feb 2014 09:24 PM (IST)

नई दिल्ली। छोटे स्टेशनों पर तैनात खानपान वेंडरों से छुटकारा पाने के लिए रेलवे ने उन्हें तरह-तरह से परेशान करने की मुहिम छेड़ रखी है। रेलवे के डी, ई और एफ श्रेणी के छोटे स्टेशनों पर पिछले कई सालों से कैटरिंग सेवाएं देते आ रहे वेंडरों से रेल मंत्रालय छुटकारा पाना चाहता है। इसके लिए नए-नए तरीके खोजे जा रहे हैं।

राजस्व बढ़ाने के लिए कुछ भी करने की रेलवे बोर्ड की मंशा को भांपते हुए समस्त डिवीजन इन दिनों ऐसी तरकीब अपनाने में लगे हुए हैं जिनसे पुराने वेंडर भाग जाएं। मकसद नए वेंडरों को ऊंची दरों पर ठेके देकर ज्यादा से ज्यादा कमाई करना है। इसके लिए नायाब तरीके अपनाए जा रहे हैं।

मसलन लाइसेंस फीस को अनाप-शनाप तरीके से बढ़ाना, पुराने बकायों की वसूली के लिए जबरदस्त जुर्माना लगाना, पुराने वेंडरों को कांट्रैक्ट छोड़ रेलवे के कैटरिंग विभाग में ग्रुप-सी की नौकरी का वादा कर ग्रुप-डी का फॉर्म भरवाना वगैरह-वगैरह।

वर्ष 2010 की कैटरिंग पॉलिसी में स्पष्ट उल्लेख है कि डी, ई और एफ श्रेणी के वेंडरों से सामान्यत: 12 फीसद और अधिकतम 18 फीसद की दर से लाइसेंस शुल्क लिया जाएगा। मगर हकीकत में दो साल के अंतराल पर ही कई डिवीजनों ने लाइसेंस शुल्क में 300-800 फीसद तक की बढ़ोतरी कर दी है। जींद स्टेशन पर जिस वेंडर की लाइसेंस फीस 2010-11 में 75,300 रुपये थी उसे 2013 में बढ़ाकर 3,08,000 रुपये कर दिया गया। जबकि ओखला के एक वेंडर के लाइसेंस शुल्क को 58,561 रुपये से बढ़ाकर 1,58,500 रुपये कर दिया गया है।

अब बिछडे़ हुए नौनिहालों को मिलाएगा रेलवे

इस बाबत सांसद प्रबोध पांडा और जयप्रकाश अग्रवाल ने रेलमंत्री मल्लिकार्जुन खरगे को कई पत्र लिखे, मगर कोई जवाब नहीं मिला। अब रेलवे की बड़ी यूनियनों ऑल इंडिया रेलवेमेन्स फेडरेशन (एआइआरएफ) और नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवेमेन (एनएफआइआर) ने इस मसले को उठाया है। अखिल भारतीय रेलवे खानपान लाइसेंसीज वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव रवींद्र गुप्ता के मुताबिक छोटे वेंडरों को काम छोड़ने पर मजबूर किया जा रहा है, जबकि बड़ी फर्मो को कांट्रैक्ट पर कांट्रैक्ट दिए जा रहे हैं।

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