विजय माल्या से पूरा कर्ज वसूलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन
उद्योगपति विजय माल्या पर बकाये कर्ज का मामला भले ही संसद से लेकर सड़कों तक गूंज रहा हो लेकिन इससे बैंकों को बहुत कुछ हासिल होने के आसार नहीं है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। उद्योगपति विजय माल्या पर बकाये कर्ज का मामला भले ही संसद से लेकर सड़कों तक गूंज रहा हो लेकिन इससे बैंकों को बहुत कुछ हासिल होने के आसार नहीं है। बैंक भी मानते हैं कि माल्या पर बकाये 9200 करोड़ रुपये में से एक चौथाई भी मिल जाए तो यह उनकी खुशकिस्मती होगी। अब यह बात भी धीरे धीरे सामने आने लगी है कि माल्या की कंपनी किंगफिशर को बैंकों के कंसोर्टियम ने कर्ज की जो पहली किस्त दी थी उसमें ही बड़ा घालमेल था। बैंकों ने किंगफिशर के ब्रांड नाम की जो कीमत लगाई थी वह वास्तविकता से काफी दूर था।
वैसे माल्या पर बकाये कर्ज के मामले में अब कुछ बैंकों के अधिकारियों की भूमिका भी सामने आने लगी है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज इस बात के साफ संकेत दे दिए हैं कि अगर किसी बैंक अधिकारी ने माल्या पर कर्ज देने में कायदे-कानून से बाहर जा कर मदद की है तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी।
सूत्रों के मुताबिक माल्या पर सरकारी बैंक आइडीबीआइ के बकाये कर्ज को लेकर सीबीआइ जांच कर रही है और वह कंपनी को कर्ज दिलाने में आइडीबीआइ के पूर्व सीएमडी की भूमिका की जांच कर रही है। सूत्रों के मुताबिक जब किंगफिशर को पहली बार कर्ज दिया गया तो सबसे ज्यादा कीमत इसकी ब्रांड की लगाई गई। किंगफिशर को सबसे ज्यादा कर्ज देने वाले बैंक एसबीआइ ने कंपनी के कुछ ब्रांड मसलन फ्लाइंग मॉडल्स, फ्लाई द गुड टाइम्स आदि के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरु की है लेकिन बाजार में इनकी कीमत आज के दौर में कुछ नहीं है। अगर बैंक इन ब्रांड्स को बेचना चाहे तो बकाया ब्याज भी नहीं निकाल सकती।
वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक जून, 2015 तक सभी 17 बैंकों के कंसोर्टियम के कुल 7600 करोड़ रुपये की रााशि किंगफिशर एयरलाइंस पर बकाया थी। इनमें से बमुश्किल एक हजार करोड़ रुपये की वसूली ही हो पाई है। विजय माल्या को सबसे पहले जान बूझ कर कर्ज नहीं चुकाने वाला घोषित करने वाला बैंक यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया सार्वजनिक तौर पर कह चुका है कि उन्हें अब इस खाते से कुछ भी हासिल होने की उम्मीद नहीं है।
यूनाइटेड बैंक ने 400 करोड़ रुपये का कर्ज दिया था। यही हाल एसबीआइ, पीएनबी और बैंक ऑफ बड़ौदा का है। वैसे किंगफिशर की तरफ से कर्ज भुगतान में पिछले छह वर्षो से व्यवधान आ रहा है, फिर भी बैंकों व अन्य एजेंसियों की तरफ से कड़ी कार्रवाई नहीं की गई है। पूरे मामले को कानूनी पचड़े में उलझा कर माल्या ने तमाम कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी इस तरह से ट्रांसफर कर दी कि उसकी बिक्री कर बैंक बहुत कुछ नहीं वसूल सकते। मामला ऋण वसूली प्राधिकरण में होने के बावजूद उस पर तेजी से फैसला नहीं किया गया। पिछले वर्ष आईडीबीआइ बैंक के कर्ज के मामले में सीबीआइ ने माल्या से पूछताछ के बावजूद इसे दबा कर रखा गया।
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