टूट गया जोड़-तोड़ के महारथी का कुनबा
बिहार में बहुमत के महारथी माने जाने वाले राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद का ही कुनबा उजड़ गया। बिहार राजनीति के एक दौर में लालू अन्य दलों में तोड़फोड़ कर बहुमत जुटाने के माहिर खिलाड़ी माने जाते थे। वे वर्ष 1990 में अल्पमत की सरकार के मुख्यमंत्री बने और इसी जोड़तोड़ के सहारे उन्होंने पांच साल के भीतर अपनी सरकार के लिए बहुमत जुटा लिया। इस दौरान लालू ने उन्हीं दलों को निशाना बनाया जिसने उनकी सरकार बचाने में साथ दिया था।
पटना, [जाब्यू]। बिहार में बहुमत के महारथी माने जाने वाले राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद का ही कुनबा उजड़ गया। बिहार राजनीति के एक दौर में लालू अन्य दलों में तोड़फोड़ कर बहुमत जुटाने के माहिर खिलाड़ी माने जाते थे। वे वर्ष 1990 में अल्पमत की सरकार के मुख्यमंत्री बने और इसी जोड़तोड़ के सहारे उन्होंने पांच साल के भीतर अपनी सरकार के लिए बहुमत जुटा लिया। इस दौरान लालू ने उन्हीं दलों को निशाना बनाया जिसने उनकी सरकार बचाने में साथ दिया था।
तत्कालीन आइपीएफ (अब भाकपा माले) के सात सदस्यों ने लालू सरकार को नकारात्मक समर्थन दिया था। फ्रंट के तीन विधायकों को लालू प्रसाद ने तोड़ लिया। शुरू में भाजपा ने भी सरकार का समर्थन किया लेकिन लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया। आज राजद की तरह तब भाजपा के 13 विधायकों ने विधानसभा में अपने लिए अलग जगह की मांग की थी। भाजपा के विधायकों की संख्या 39 और 13 विधायकों के समूह को संपूर्ण क्रांति दल का नाम मिला। उनमें से कुछ लोग मंत्री पद भी पा गए। इतना ही नहीं समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी लालू प्रसाद की विध्वंसक नीति से इस कदर तबाह हुई कि विधानसभा के भीतर दोनों दलों का नामलेवा नहीं रह गया। सीपीआई ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर लालू का साथ दिया था। लेकिन उसके कई नेता लालू की तत्कालीन पार्टी जनता दल में शामिल हो गए।