Move to Jagran APP

फजीहत के बाद भाजपा ने साबिर को किया बाहर

चुनावी उत्साह में झूम रही भाजपा को एक सप्ताह में दूसरी बार मुंह की खानी पड़ी है। आधार बढ़ाने की हड़बड़ाहट में भाजपा ने जदयू से निष्कासित विवादित नेता साबिर अली को शामिल तो करा लिया, लेकिन प्रमोद मुथलिक की तरह ही पैर वापस लेने पड़े। यानी फजीहत भी हुई और नुकसान भी उठाना पड़ेगा।

By Edited By: Updated: Sat, 29 Mar 2014 04:24 PM (IST)
Hero Image

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। चुनावी उत्साह में झूम रही भाजपा को एक सप्ताह में दूसरी बार मुंह की खानी पड़ी है। आधार बढ़ाने की हड़बड़ाहट में भाजपा ने जदयू से निष्कासित विवादित नेता साबिर अली को शामिल तो करा लिया, लेकिन प्रमोद मुथलिक की तरह ही पैर वापस लेने पड़े। यानी फजीहत भी हुई और नुकसान भी उठाना पड़ेगा।

भाजपा एक के बाद एक खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने लगी है। खुद को सबसे अलग बताने वाली भाजपा ने कुछ ही दिन पहले कर्नाटक में श्रीराम सेना के प्रमोद मुथलिक को पार्टी में शामिल कर लिया था। हंगामा हुआ तो केंद्रीय नेतृत्व हरकत में आया और घंटों में उसकी सदस्यता निरस्त कर दी गई। अब मुथलिक दोहरी ताकत के साथ भाजपा उम्मीदवारों के खिलाफ लड़ने की कसमें खा रहा है। लेकिन सीख शायद नेतृत्व ने नहीं ली। शुक्रवार को साबिर अली को पार्टी में शामिल कर लिया गया था। जिस पर पार्टी के अंदर ही आग भड़क गई। पार्टी उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने ट्वीट किया, 'भटकल का दोस्त आ गया है .अब दाऊद की बारी है.।' तत्काल संघ ने भी भाजपा नेतृत्व से अपनी आपत्ति जताई दी। संघ विचारक गुरुमूर्ति से लेकर राम माधव तक ने ट्वीट कर कहा कि पार्टी के इस फैसले से बहुत असंतोष है। सूत्रों का कहना है कि चुनाव के मुहाने पर खड़ी पार्टी के अंदर मचे बवाल ने ऊपर तक हर किसी को परेशान कर दिया। बताते हैं कि नकवी के शब्दों के चयन पर भी चर्चा हुई। कई नेताओं का मानना था कि जिस तरह नकवी ने सार्वजनिक रूप से पार्टी को कठघरे में खड़ा किया, उससे ज्यादा फजीहत हुई। यही कारण है कि राजनाथ ने साबिर अली की सदस्यता निरस्त तो कर ही दी। साथ ही यह संदेश भी दे दिया कि कोई भी पदाधिकारी या कार्यकर्ता सार्वजनिक बयानबाजी न करे। दरअसल पार्टी नेताओं का मानना है कि जिस तरह पार्टी के अंदर बयानबाजी हुई, उससे ज्यादा नुकसान हुआ। लेकिन यह भी सवाल खड़ा होने लगा है कि एक के बाद एक इस तरह के लोग शामिल कैसे हो रहे हैं। दरअसल सूत्रों की मानें तो चुनावी तैयारी से ज्यादा कई लोग अपना नंबर बढ़ाने में लगे हैं। इसी क्रम में बिहार भाजपा में कुछ लोग शामिल कराए गए थे। साबिर का आना भी उसी क्रम की कड़ी माना जा रहा है। लेकिन उसमें पार्टी यह भी भूल गई कि छवि से कोई भी समझौता उसके लिए घातक होगा।

इससे पहले साबिर ने बिहार प्रदेश प्रभारी धर्मेद्र प्रधान को चिंट्ठी लिखकर आग्रह किया था कि जब तक स्थिति ठीक नहीं होती है, उनकी सदस्यता रोकी जा सकती है। बहरहाल, पार्टी ने सदस्यता निरस्त करना ही वाजिब समझा। नकवी ने भी अपना पुराना ट्वीट हटा लिया है और कहा कि अब उनके लिए पुराने मुद्दे खत्म हो गए हैं। बहरहाल, सूत्रों की मानें तो पार्टी में अभी भी सब कुछ दुरुस्त नहीं है। क्योंकि सदस्यता रद करने के फैसले से पहले वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी साबिर का बचाव करते हुए कहा था कि हमारा प्रमुख उद्देश्य कांग्रेस को हराना है। हमें सबको साथ लेकर आगे बढ़ना है। एक और वरिष्ठ नेता अरूण जेटली ने भी कहा कि दोषी या निर्दोष का फैसला न्यायालय करेगा। कोई राजनीतिक दल या टीवी चैनल का एंकर नहीं। बता दें कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भी दागी बसपा नेता बाबू सिंह कुशवाहा को पार्टी में शामिल कराने से हुई फजीहत के बाद उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था।

'मैं नकवी के खिलाफ मानहानि का केस करूंगा। मैं उनके साथ बहस के लिए तैयार हूं। मुझे लोगों का समर्थन हासिल है। नकवी के गांव के साथ ही देश के किसी भी गांव में मैं जाने को तैयार हूं। इसके बाद पता चलेगा कि कितने लोग उनके (नकवी) के साथ खड़े हैं।'

- साबिर अली

पढ़ें: साबिर के भाजपाई होने पर भड़के नकवी

पढ़ें: नमो-नमो करने पर नीतीश ने साबिर को निकाला