यहां जिंदा है लक्ष्मीबाई की शहादत
बुंदेले हर बोलो के मुंह, हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी। सुभद्रा कुमारी चौहान की यह पंक्तियां आज भी न केवल महारानी लक्ष्मीबाई की वीरगाथा बयां करती है, बल्कि इनको पढ़ने-गुनगुनाने मात्र से मन मे देशभक्ति का एक अद्भुत संचार हो उठता है।
आगरा [आदर्श नंदन गुप्ता]। बुंदेले हर बोलों के मुंह, हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी। सुभद्रा कुमारी चौहान की यह पंक्तियां आज भी न केवल महारानी लक्ष्मीबाई की वीरगाथा बयां करती हैं, बल्कि इनको पढ़ने-गुनगुनाने मात्र से मन में देशभक्ति का एक अद्भुत संचार हो उठता है। आजादी के महासंग्राम का स्वर्णिम अध्याय बनी झांसी की इस वीरांगना की शहादत ताजनगरी में आज भी जिंदा है। लक्ष्मीबाई के अंग्रेजों से युद्ध और उनके बलिदान से जुड़ा एक दुर्लभ टेलीग्राम यहां जोंस पब्लिक लाइब्रेरी के ताज सिटी म्युनिसिपल म्यूजियम में सुरक्षित है।
अंग्रेजों ने महारानी लक्ष्मीबाई से युद्ध भले ही झांसी में लड़ा, लेकिन इसकी पटकथा और निर्देशन आगरा से ही हुआ। बात 1857 की है, जब आगरा ही प्रांतीय सरकार का मुख्य केंद्र था। उस समय लेफ्टीनेंट गर्वनर जेआर कॉलविन की मौत हो चुकी थी और सीनियर मेंबर बोर्ड ऑफ रेवेन्यू ईए रीड ने उनका कार्यभार संभाल लिया था। कमिश्नर आगरा के पद पर आर. सैम्सन थे। लिहाजा उस वक्त मुख्य रूप से इन दोनों ने ही आगरा से युद्ध का संचालन किया था। इसलिए झांसी में महारानी के बलिदान होने का टेलीग्राम अंग्रेज सेना के हेड असिस्टेंट इंचार्ज के हस्ताक्षर से आगरा ही आया। जो झांसी से 18 जून, 1858 को अंग्रेज सैन्य अधिकारी आर हेमल्टन ने आगरा के प्रभारी गवर्नर ईए रीड को भिजवाया था।