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दो साल पहले हुआ था बाबा समर्थकों पर लाठीचार्ज

नई दिल्ली। हरियाणा के महेंद्रगढ़ जनपद स्थित अली सैयद्पुर नामक एक साधारण से गांव में 11 जनवरी 1

By Edited By: Updated: Tue, 04 Jun 2013 05:18 PM (IST)
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नई दिल्ली। हरियाणा के महेंद्रगढ़ जनपद स्थित अली सैयद्पुर नामक एक साधारण से गांव में 11 जनवरी 1971 को गुलाबो देवी एवम् रामनिवास यादव के घर जन्मे रामदेव का वास्तविक नाम रामकृष्ण था।

समीपवर्ती गांव शहजादपुर के सरकारी स्कूल से आठवीं कक्षा तक पढ़ाई पूरी करने के बाद रामकृष्ण ने खानपुर गांव के एक गुरुकुल में आचार्य प्रद्युम्न व योगाचार्य बल्देवजी से संस्कृत व योग की शिक्षा ली। रामकृष्ण के रा, प्रद्युम्न के प्र तथा बलदेवजी के प्रथम व अन्तिम अक्षरों- बि के योग से जिस व्यक्ति का निर्माण हुआ उसे आज पूरा विश्व बाबा रामदेव के नाम से केवल जानता ही नहीं, उसकी बात को ध्यान से सुनता भी है। मन में कुछ कर गुजरने तमन्ना लेकर इस नवयुवक ने स्वामी रामतीर्थ की भांति अपने माता-पिता व बंधु-बांधवों को सदा सर्वदा के लिये छोड़ दिया। युवावस्था में ही संन्यास लेने का संकल्प किया और पहले वाला रामकृष्ण रामदेव के नये रूप में लोकप्रिय हुआ।

रामदेव ने सन् 1995 से योग को लोकप्रिय और सर्वसुलभ बनाने के लिये अथक परिश्रम करना प्रारंभ किया। कुछ समय तक कालवा गुरुकुल, जींद जाकर नि:शुल्क योग सिखाया उसके बाद हिमालय की कंदराओं में ध्यान और धारणा का अभ्यास करने निकल गये। वहां से सिद्धि प्राप्त कर प्राचीन पुस्तकों व पाण्डुलिपियों का अध्ययन करने हरिद्वार आकर कनखल में स्थित स्वामी शंकरदेव के कृपालु बाग आश्रम में रहने लगे। आस्था चैनल पर योग का कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिये माधवकांत मिश्र को किसी योगाचार्य को खोजते हुए हरिद्वार पहुंचे जहां बाबा रामदेव अपने सहयोगी आचार्य कर्मवीर के साथ गंगा-तट पर योग सिखाते थे। माधवकान्त मिश्र ने बाबा रामदेव के सामने अपना प्रस्ताव रखा। सच भी है जब किसी व्यक्ति की निष्काम कर्म में पूर्ण आस्था हो तो परमात्मा भी किसी न किसी को सहयोग करने भेज ही देता है। आस्था चैनल पर आते ही बाबा रामदेव की लोकप्रियता दिन दूनी रात चौगुनी बढने लगी।

इसके बाद इस युवा संन्यासी ने कृपालु बाग आश्रम में रहते हुए स्वामी शंकरदेव के आशीर्वाद, आचार्य बालकृष्ण के सहयोग तथा स्वामी मुक्तानंद जैसे प्रभावशाली व्यक्तियों के संरक्षण में दिव्य योग मन्दिर ट्रस्ट की स्थापना कर डाली। आचार्य बालकृष्ण के साथ उन्होंने अगले ही वर्ष सन् 1996 में दिव्य फार्मेसी के नाम से आयुर्वैदिक औषधियों का निर्माण-कार्य भी प्रारंभ कर दिया। तभी संयोग से एक चमत्कार और हुआ। अरविन्द घोष की मूल बंगला पुस्तक यौगिक साधन हिंदी में छपकर पुस्तकालय में आ गयी। बाबा रामदेव ने इस छोटी-सी 36 पन्ने की पुस्तक को पढ़ा और मन में संकल्प सिद्ध करके योग-साधना व योग-चिकित्सा-शिविरों के माध्यम से योग व आयुर्वेदिक क्रांति का ऐसा शंखनाद बिस्मिल व बोस जन्मशती वर्ष-1997 में किया कि वह सचमुच महाभारत के पांचजन्य का उद्घोष हो गया।

स्वामी रामदेव ने सन् 2003 से योग संदेश पत्रिका का प्रकाशन भी प्रारंभ कर दिया जो आज 11 भाषाओं में प्रकाशित होकर एक कीर्तिमान स्थापित कर चुकी है। विगत 20 वर्षो से स्वदेशी जागरण अभियान में जुटे राजीव दीक्षित को बाबा रामदेव ने 9 जनवरी 2009 को एक नये राष्ट्रीय प्रकल्प भारत स्वाभिमान न्यास का उत्तरदायित्व सौंपा।

स्वामी रामदेव के प्रमुख कार्य

रामदेव ने सन् 2006 में महर्षि दयानंद ग्राम, हरिद्वार में पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट के अतिरिक्त अत्याधुनिक औषधि निर्माण इकाई पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड नाम के दो सेवा प्रकल्प स्थापित किये। इन सेवा-प्रकल्पों के माध्यम से बाबा रामदेव योग, प्राणायाम, अध्यात्म आदि के साथ-साथ वैदिक शिक्षा व आयुर्वेद का भी प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।

उनके प्रवचन विभिन्न टीवी चैनलों जैसे आस्था, आस्था इण्टरनेशनल, जी-नेटवर्क, सहारा-वन तथा इण्डिया टीवी पर प्रसारित होते हैं। इतना ही नहीं,बाबा रामदेव को योग सिखाने के लिये कई देशों से बुलावा भी आता रहता है। अमेरिका, इंग्लैण्ड व चीन सहित विश्व के 120 देशों की लगभग 100 करोड़ से अधिक जनता टी0वी0 चैनलों के माध्यम से बाबा के क्रांतिकारी कार्यक्रमों की प्रसंशक बन चुकी है और स्वास्थ्य-लाभ पाप्त कर रही है। रामदेव प्रत्येक समस्या का समाधान योग एवं प्राणायाम ही बताते हैं।

संपूर्ण भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने के साथ-साथ एवं यहां के मेहनतकशों के खून-पसीने की गाढ़ी कमाई को देश के राजनीतिक लुटेरों द्वारा विदेशी बैंकों में जमा करने के खिलाफ उन्होंने व्यापक जन आंदोलन छेड़ रखा है। इटली एवं स्विट्जरलैण्ड के बैंकों में जमा लगभग 400 लाख करोड़ रुपये के काले धन को स्वदेश वापस लाने की मांग करते हुए बाबा ने आम जनता में जागृति लाने हेतु पूरे भारत की एक लाख किलोमीटर की यात्रा भी की। यात्रा के दौरान उन्होंने अभी अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की पुण्य-तिथि [27 फरवरी 2011] को दिल्ली में भ्रष्टाचार के विरुद्ध विशाल रैली का आयोजन किया जिसमें भारी संख्या में देश की जागरुक जनता ने पहुंचकर उन्हें अपना समर्थन दिया और कई करोड़ लोगों के हस्ताक्षरयुक्त मेमोरेण्डम भी सौंपा जिसे बाबा ने उसी दिन राष्ट्रपति-सचिवालय तक पहुंचाया।

अनशन का अस्त्र

बाबा ने जब 27 फरवरी 2011 को रामलीला मैदान में जनसभा की थी तो उसमें प्राय: सभी विचारधाराओं के लोग शामिल हुए थे क्योंकि रामदेव ने कह दिया था कि जो भी उनके मुद्दों से सहमत हो वह आकर मंच से अपनी बात कह सकता है किसी के लिये कोई मनाही नहीं है। उस जनसभा में स्वामी अग्निवेश के साथ-साथ अन्ना हजारे भी पहुंचे थे और दोनों ने ही भ्रष्टाचार को जडमूल से उखाड फेंकने में बाबा को पूरा समर्थन प्रदान किया। उस दिन मंच पर भाजपा सहित [कांग्रेस को छोड़] कई राजनीतिक दलों के लोग उपस्थित थे तब अन्ना हजारे ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया कि जिस मंच पर भारतीय जनता पार्टी के लोग मौजूद होंगे उस पर वह नहीं जायेंगे। उस दिन की सभा में अन्ना को अंतरराष्ट्रीय स्तर का प्रचार मिला और उनकी लोकप्रियता का ग्राफ उसी दिन से चढ़ने लगा।

इसके बाद दिल्ली के जंतर-मंतर पर 5 अप्रैल 2011 से अन्ना हजारे ने सत्याग्रह के साथ आमरण अनशन की घोषणा की जिसमें एक दिन के लिये बाबा रामदेव भी शामिल हुए। उसके पश्चात जंतर-मंतर पर बढ़ रही अप्रत्याशित भीड़ को देख कर सरकार चिंतित हुई और लोकपाल बिल लाने का आश्वासन देकर अन्ना का अनशन तुड़वा दिया। जैसे ही अन्ना ने दिल्ली से प्रस्थान किया सरकार द्वारा लोकपाल कमेटी में शामिल लोगों के प्रति जनता में अविश्वास फैलाने का कुचक्र रचा जाने लगा और भ्रष्टाचार रूपी सार्वजनिक मुद्दे के सांप को लोकपाल के बिल में घुसा दिया गया।

बाबा रामदेव ने इस घटना से कोई सबक नहीं लिया और जोश में आकर 4 जून 2011 से दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना हजारे की तर्ज पर आमरण अनशन के साथ सत्याग्रह की घोषणा कर दी। एक जून 2011 को जैसे ही बाबा रामदेव दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरे सरकार के चार मंत्रियों ने उन्हें वहीं रोककर वापस भेजने की रणनीति बनायी किंतु बाबा उनके जाल में नहीं फंसे और अनशन स्थल पर अपने समर्थकों के साथ जा डटे। सरकार ने अनशन की घोषित तिथि से एक दिन पूर्व बाबा को एक आश्वासन देकर कि वे उनकी सभी मांगें मान लेंगे उनसे एक काउंटर-गारंटी का पत्र लिखवा लिया साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि सरकार इस पत्र को सार्वजनिक नहीं करेगी केवल अपने रिकार्ड में सुरक्षित रखेगी।

4 जून 2011 को प्रात: काल सात बजे जैसे ही सत्याग्रह प्रारंभ हुआ देश के कोने-कोने से भारी संख्या में स्त्री, पुरुष, बच्चे, बूढे़ सभी जत्थों के रूप में वहां पर जुटने लगे। दोपहर तक लगभग एक लाख सत्याग्रही आ चुके थे। बाबा ने टीवी चैनलों पर प्रात: आठ बजे ही घोषणा प्रचारित करवा दी थी कि अब यहां पर जगह नहीं है, सभी लोग अपने-अपने जिला मुख्यालय पर अनशन प्रारंभ करें और जिलाधिकारी को भ्रष्टाचार समाप्त करने तथा विदेशों में जमा 400 लाख करोड़ रुपये का काला धन स्वदेश वापस मंगाने व उसे राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित करने की मांग का ग्यापन सौंपें।

लेकिन इस चेतावनी के वावजूद लोगों का रामलीला मैदान पहुंचना लगातार जारी था शाम 4 बजे तक यह संख्या डेढ लाख के करीब पहुंच चुकी थी। मीडिया के प्रचार के कारण बहुत से लोग तो अनशन स्थल पर फाइव स्टार होटल जैसी व्यवस्था को देखने पहुंचे थे जब कि वहां पर ऐसा कुछ भी न था। भीड़ बढ़ती देख बाबा ने भी माइक से स्वयं भी यह घोषणा करनी प्रारंभ कर दी थी कि आप लोगों ने जो समर्थन दिया है उसके लिये वे हृदय से सभी का धन्यवाद देते हैं। अब सबसे प्रार्थना है कि अपने-अपने घरों को वापस लौट जायें और यदि मन न माने तो घरों पर ही टीवी सेट्स् के सामने बैठकर जैसे योग करते हैं वैसे ही सत्याग्रह करते रहें। उनकी इस अपील पर लोग बाग घरों को वापस लौटने भी लगे थे।

दिन भर अनशन के साथ-साथ धर्मगुरुओं व सामाजिक कार्यकर्ताओं के व्याख्यानों का सिलसिला जारी था। पुलिस व्यवस्था चाक चौबंद थी किसी भी सत्याग्रही को कोई असुविधा न पुलिस से थी न प्रशासन से, सभी सहयोग कर रहे थे। सायंकाल कपिल सिब्बल से बाबा ने फोन पर बात की और मंच से यह घोषणा की कि सरकार ने सभी मांगें मान ली हैं किन्तु जब तक उन्हें इस आशय का पत्र नहीं मिल जाता वे अनशन समाप्त नहीं करने वाले। साथ ही बाबा ने यह बात भी दोहरायी कि चूंकि इससे पूर्व सरकार 4 अप्रैल के अनशन में अन्ना के साथ कूटनीति चल चुकी है अत: वे उसके किसी झांसे में आने वाले नहीं।

सारा कार्यक्रम लाइव टेलीकास्ट हो रहा था और रामलीला मैदान के सारे दृश्य सरकारी मशीनरी देख रही थी साथ ही साथ उधर जो कुछ सरकार की कार्यवाही चल रही थी उसकी पल-पल की खबर बाबा को भी मिल रही थी। सरकार की ओर से कपिल सिब्बल ने बाबा की इस घोषणा पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए 3 जून 2011 का पत्र जारी कर दिया और बाबा पर उल्टा आरोप लगाया कि बाबा रामदेव लिखित आश्वासन के बावजूद अपना वचन भंग कर रहे हैं। इस पर बाबा ने प्रत्यारोप लगाया कि पत्र को सार्वजनिक करके सरकार ने उनके साथ विश्वासघात किया अत: वे जिंदगी भर कभी भी कपिल सिब्बल से कोई बात नहीं करेंगे। बस यहीं से सरकार और बाबा में आर-पार की ठन गयी।

रामलीला मैदान

रामदेव और उनके साथी सत्याग्रही दिन भर की गर्मी और भूख से शिथिल होकर रामलीला मैदान में पुलिस के साये में अपने को पूरी तरह से सुरक्षित मानकर गहरी निद्रा में सोये हुए थे मीडिया कर्मी भी अपने-अपने साजो-सामान के साथ वहीं सो रहे थे कि रात के अंधेरे में सरकारी आदेश पाकर बहुत बड़ी संख्या में रिजर्व पुलिस फोर्स व रैपिड ऐक्शन फोर्स के अधिकारी एवं सिपाही भूखे भेड़िये की तरह सत्याग्रहियों पर बुरी तरह टूट पडे़ और उन पर लाठी चार्ज करके उन्हें रामलीला मैदान से बाहर खदेड़ने लगे। आधी रात चीख पुकार सुन कर मीडिया कर्मी भी हड़बड़ाहट में उठ बैठे और उन्होंने अपने-अपने कैमरे ऑन कर दिये। पुलिस शायद इस गलतफहमी में थी कि आधी रात गये वहां कौन होगा जो उनकी इस बर्बरता पूर्ण कार्रवाई को रिकार्ड करने आयेगा। छीना झपटी में कई के कैमरे टूटे, कईयों के हाथ पैर टूटे और जो बाकी बचे उनके हौंसले टूटे। परंतु फिर भी मीडिया कर्मी नौजवान डटे रहे, हटे नहीं।

बाबा रामदेव पण्डाल में बने विशालकाय मंच पर अपने सहयोगियों के साथ सो रहे थे चीख-पुकार सुनकर वे मंच से नीचे कूद पड़े और अपने समर्थकों के कंधों पर चढ़कर भीड़ में घुस गये। बाबा अपने समर्थकों से शांति बनाये रखने के साथ-साथ पुलिस से यह प्रार्थना करने लगे कि इन निहत्थे लोगों को मत पीटें उन्हें गिरफ्तार कर लें; वे गिरफ्तारी देने को तैयार हैं। लेकिन वहां सुन कौन रहा था पुलिस कर्मी तो हाई कमान के आदेश से बंधे हुए थे। बाबा को जब ये प्रत्यक्ष दिखने लगा कि ये हैवान उनकी भी जान ले लेंगे तो वे भीड़ से बचकर मंच के बाईं ओर महिलाओं के झुंड में जा छिपे। पुलिस को ऐसा लगा कि बाबा मंच के नीचे घुस गया है अत: उन्होंने मंच को निशाना बनाकर कई राउण्ड आंसू गैस के गोले भी दागे जिससे मंच के चारों ओर लगे पर्दो में आग लग गयी। बाबा के कपडे़ बुरी तरह फट चुके थे वह किसी महिला कार्यकर्ता की सलवार कमीज पहन दुपट्टे में मुंह छिपाकर महिलाओं के झुण्ड में शामिल होकर पण्डाल से बाहर निकल गया था जबकि पुलिस, मीडिया कर्मी और बाबा के सहयोगी उन्हें पण्डाल और मंच के पीछे बने वीआईपी शिविर में तलाश रहे थे।

5 जून 2011 को सुबह 10 बजे तक बाबा को लेकर अफवाहों का बाजार गर्म रहा। यह सिलसिला दोपहर तब जाकर रुका जब बाबा ने हरिद्वार पहुँचने के बाद पतंजलि योगपीठ में एक प्रेस वार्ता करके अपने सुरक्षित बच निकलने की पूरी कहानी अपनी जुबानी मीडिया के माध्यम से पूरे विश्व को सुनायी और पतंजलि योगपीठ हरिद्वार से ही अपना आमरण अनशन जारी रखने की घोषणा की।

राजबाला की मृत्यु

कांग्रेस पार्टी की ओर से उनके महासचिव दिग्विजय सिंह का वक्तव्य आया कि रामदेव सबसे बड़ा ठग है जिसने भोली भाली जनता को योग के नाम पर लूट-लूट कर 1100 करोड़ का कारोबार खड़ा कर लिया है उसका साथी बालकृष्ण नेपाली नागरिक है जिसने झूठा शपथ-पत्र देकर पासपोर्ट बनवाया है। उन्होंने धमकी भरे अंदाज में कहा कि कांग्रेस के पास इन सबकी जन्म-कुंडली है और ये सबके सब बहुत शीघ्र ही सींखचों के अंदर जाने वाले हैं। इस पर अन्ना हजारे ने अगले ही दिन राजघाट पर एक दिन की सांकेतिक सत्याग्रह की घोषणा की जिसमें हजारों की संख्या में सभी वर्गो के लोग एकत्र हुए। अन्ना हजारे ने कहा सिर्फ गोली ही तो नहीं चली वरना रामलीला और जलियांवाला बाग नरसंहार में क्या फर्क है?

उन्होंने अगले 16 अगस्त से दूसरी आजादी के लिये सत्याग्रह प्रारंभ करने की घोषणा भी कर दी। इस सबसे हटकर जो बयान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का आया उसने तो सरकार की रही सही कसर ही पूरी कर दी। मनमोहन सिंह ने कहा कि जिस प्रकार दिल्ली में लगातार भीड़ बढ़ती जा रही थी उसे देखते हुए रातों-रात बल प्रयोग से रामलीला मैदान खाली करवाने के अतिरिक्त और कोई चारा ही न था।

सभी राजनीतिक दलों ने, जिनमें भाजपा के अतिरिक्त समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी शामिल थे, अपने-अपने वक्तव्यों से सरकार पर प्रहार किये। भारतीय जनता पार्टी ने 7-8 जून 2011 की रात में राजघाट पर रात्रि-जागरण करके अपनी सहानुभूति बाबा के प्रति दर्ज की। इसी बीच कांग्रेस का तत्काल वक्तव्य आया कि रामदेव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के एजेंट है और ये दोनों संस्थायें उसे सहायता पहुंचा रही हैं। कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी का कोई वक्तव्य नहीं आया जबकि 4 अप्रैल को अन्ना हजारे के अनशन पर बैठते ही वह सबसे अधिक चिंतित दिखायी दी थीं।

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