सुप्रीम कोर्ट के फैसले से संकट में 194 कोयला ब्लॉक
कोयला ब्लॉकों के आवंटन को गैरकानूनी ठहराने के सुप्रीम कोर्ट का फैसला बिजली कंपनियों के लिए भारी पड़ सकता है। अदालत के फैसले का साया 1
नई दिल्ली। कोयला ब्लॉकों के आवंटन को गैरकानूनी ठहराने के सुप्रीम कोर्ट का फैसला बिजली कंपनियों के लिए भारी पड़ सकता है। अदालत के फैसले का साया 194 कोयला ब्लॉकों पर है जिन्हें 1993 के बाद 2010 के बीच आवंटित किया गया था।
सरकार ने साल 1993 से लेकर 2005 के दौरान कुल 70 कोयला ब्लॉकों का आवंटन हुआ। इसके बाद साल 2006 में 53, 2007 में 52, 2008 में 24, 2009 में 16 और 2010 में एक कोयला ब्लॉक आवंटित किया गया। इस तरह सत्रह वर्ष की इस अवधि में केंद्र में शासित विभिन्न सरकारों ने कुल 216 कोयला ब्लॉक आवंटित किए, लेकिन इनमें से अलग-अलग समय पर 24 कोयला ब्लॉकों का आवंटन सरकार ने रद कर दिया जिसके बाद ब्लॉकों की संख्या 194 रह गई।
उद्योग जगत से जुड़े जानकारों का मानना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट इन कोयला ब्लॉकों का आवंटन रद करने जैसा कदम उठाता है तो बिजली कंपनियां इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगी। इसके अलावा स्टील कंपनियों के लिए भी यह भारी फैसला साबित हो सकता है। पूर्व कोयला सचिव पीसी परख का मानना है कि वैसे तो कोयला ब्लॉकों का आवंटन करने वाली स्क्रीनिंग कमेटियों की कोई कानूनी वैधता नहीं है। लेकिन इसके बावजूद अगर अदालत कोयला ब्लॉकों को रद करती है तो इसके अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव होंगे। हालांकि संसद की कोल व स्टील पर स्थायी संसदीय समिति ने भी माना है कि 1993 से 2008 के बीच गैरकानूनी तरीके से कोयला ब्लॉकों को आवंटित किया गया।
कोयला ब्लॉकों के आवंटन को लेकर सबसे पहले नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (कैग) ने सवाल उठाए। साल 2012 में अपनी एक रिपोर्ट में इसके आवंटन में अनियमितता का आरोप लगाते हुए सरकार को इससे 1.86 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होने की बात कही।