उतार-चढ़ाव वाला रहा मोदी सरकार का दूसरा साल, लोकप्रियता कायम
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली मोदी सरकार अब अपने दो साल पूरे करने वाली है। मौजूदा एनडीए सरकार का दूसरा साल राजनीतिक रूप से उतार-चढ़ाव वाला रहा है। हालांकि इस दौरान भी मोदी की लोकप्रियता कायम है।
नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही केंद्र की एनडीए सरकार के दो साल पूरे होने वालेे हैं। इस दौरान देश में राजनीतिक उथल-पुथल होते रहे। मोदी सरकार का ये दूसरा साल कई विवादों में भी घिरा रहा। वाबजूद इसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई।
नरेंद्र मोदी लंबेे समय तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के बाद 2014 में आंधी की तरह केंद्र में आए और प्रधानमंत्री कार्यालय में प्रवेश कर इतिहास रच दिया। मोदी पहले गैर-कांग्रेसी नेता हुए जो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे और संसद केे निचले सदन लोकसभा में पूर्ण बहुमत के साथ आए।
मोदी की जीत भारत की जनता द्वारा दिया गया सिर्फ एक संदेश मात्र ही नहीं था। बल्कि इस जनादेश ने स्वतंत्रता के बाद से देश की सत्ता संभालनेे वाली कांग्रेस पार्टी को भी सोचने पर मजबूर कर दिया। इस जनादेश के तहत लोगों ने आधुनिक भारत को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने और देशवासियों के सपनों को साकार करने का वादा करने वाले नेता पर विश्वास दिखाया।
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मोदी का जादू कायम
एनडीए सरकार के दो साल पूरे होने के वाबजूद देश में मोदी लहर कायम है। आज भी लोगों के बीच मोदी उतने ही लोकप्रिय हैं जितना कि पहले थे। आज मोदी की गिनती देश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में होती है। अप्रैल महीने में ईटी-टीएनएस द्वारा सात शहरों में किये गए सर्वे में मोदी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई।
एबीपी-निल्सन द्वारा जनवरी महीने में 109 लोकसभा क्षेत्रों में किये गए सर्वे के दौरान 16,732 लोगों ने अपनी राय रखी। इनमें से सिर्फ 11 फीसद लोगों ने ही प्रधानमंत्री मोदी के प्रदर्शन को खराब बताया।
पिछले 30 सालोंं में किसी भी राजनेता ने जनता के दिलों-दिमाग पर अपनी उतनी छाप नहीं छोड़ी जितनी की पीएम मोदी ने। सरकार में आने के बाद उन्होंने 'सबका साथ सबका विकास' का नारा दिया।
राजनीतिक उथल-पुथल से भरा रहा दूसरा साल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल का दूसरा साल काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा। इस वर्ष पीएम अर्थव्यवस्था के कारण सुर्खियों में नहीं रहे। यह साल अर्थव्यवस्था का नहीं रहा बल्कि यह वर्ष राजनीति का रहा, जिसने देश में हमेशा बदलाव किया।
विपक्षी दलों के हमलों के बावजूद भारतीय जनता पार्टी अमित शाह और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सफलतापूर्वक आगे बढ़ती रही। राष्ट्रीय पटल पर होने वाली चर्चाओं का भी वे लाभ लेते रहे।
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विदेशों में भी लहराया परचम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी विकास गाथा का न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी खूब प्रचार किया।
विवादों से भी रहा नाता
मोदी शासन के दूसरे साल में कई विवाद भी सामने आए। दादरी कांड, आइआइएफटी विवाद, असिष्णुता जैसे कई और मुद्दे रहे जिसने भाजपा सरकार को बैकफुट पर लाने का काम किया। हालांकि इन सभी मामलों में पीएम खामोश रहे। दूसरे साल हुए इन विवादों की वजह से भाजपा को बिहार विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।
दादरी कांड
28 सितंबर 2015 को उत्तर प्रदेश के दादरी में गौमांस के शक की वजह से मोहम्मद अखलाक नाम के शख्स की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। यह घटना बिहार विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले हुई थी। चुनाव में भाजपा को हार मिली थी। उस वक्त अखलाक के बेटे ने कहा था कि जनता ने भाजपा को सजा दे दी। इस मामले में के बाद गौमांस का मामला गरमाया रहा और बीफ को लेकर कई हिंसक घटनाएं सामने आईं। इस घटना के बाद देश में असहिष्णुता को लेकर जबर्दस्त बहस छिड़ी और कलाकार-साहित्याकारों ने अवॉर्ड वापसी कैंपेन भी चलाया। हालांंकि, अनुपम खेर जैसे कई कलाकार मोदी सरकार के समर्थन भी उतरे।
जेएनयू विवाद
9 फरवरी 2016 को दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के कैंपस में कथित तौर पर देशविरोधी नारे लगाए जाने का वीडियो सामने आया। इसके बाद जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष कन्हैया कुमार, उमर खालिद और कुछ अन्य छात्रों को गिरफ्तार किया गया। छात्रों की गिरफ्तारी को लेकर देशभर में मोदी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन हुए। कांग्रेस, वामपंथी दलों ने बीजेपी पर हिंदुत्व थोपने का आरोप जड़ा। स्मृति ईरानी पर भी आरोप लगे, जिसके बाद उन्होंने संसद में कांग्रेस को आड़े हाथों लिया।
अगस्ता वेस्टलैंड घोटाला
इस मामले में सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और राहुल गांधी जैसे नेताओं के नाम जुड़ने के बाद कांग्रेस पार्टी संसद में चारों ओर से घिरी दिखाई दी। यह मामला अप्रैल 2016 में उस वक्त चर्चा में आया जब इटली के मिलान की अदालत ने अपने फैसले में माना कि अगस्ता वेस्टलैंड सौदे में भ्रष्टाचार हुआ। इटली की अदालत ने अगस्ता वेस्टलैंड के दो अधिकारियों को दोषी ठहराते हुए सजा भी सुनाई। कोर्ट के फैसले में ऐसे दस्तावेज भी हैं, जिनमें इशारा किया गया है कि भारतीय नीति निर्धारकों को घूस देने के लिए करीब 200 से 250 करोड़ रुपए का बजट था। इसी फैसले के बाद अगस्ता वेस्टलैंड का मुद्दा भारत में गरमा गया।