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मुंबई में शिवसेना को है अमित शाह का इंतजार

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के मुंबई दौरे का शिवसेना को भी बेसब्री से इंतजार है, ताकि सीट बंटवारे की बात आगे बढ़ाई जा सके। लेकिन, शाह के दौरे में अब तक शिवसेना नेताओं से मुलाकात का कोई कार्यक्रम नहीं बताया जा रहा। महाराष्ट्र विधानसभा चुनावके लिए सीट बंटवारे को लेकर दोनों दलों के बीच दो-तीन

By Edited By: Updated: Tue, 02 Sep 2014 10:59 AM (IST)
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मुंबई, राज्य ब्यूरो। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के मुंबई दौरे का शिवसेना को भी बेसब्री से इंतजार है, ताकि सीट बंटवारे की बात आगे बढ़ाई जा सके। लेकिन, शाह के दौरे में अब तक शिवसेना नेताओं से मुलाकात का कोई कार्यक्रम नहीं बताया जा रहा।

महाराष्ट्र विधानसभा चुनावके लिए सीट बंटवारे को लेकर दोनों दलों के बीच दो-तीन दौर की बातचीत हो चुकी है। लेकिन, इन दौरों में अब तक न तो शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे शामिल हुए हैं और न ही शिवसेना सीट बंटवारे के पुराने फार्मूले से पीछे हटती दिखाई दे रही है। भाजपा इस बार राज्य की विधानसभा सीटों में भी आधे-आधे का बंटवारा चाहती है। जबकि, शिवसेना पुराने फार्मूले के आधार पर खुद 171 और भाजपा को 117 सीटें देना चाहती है। इन दोनों दलों को अपने-अपने कोटे से ही इनके साथ नए जुड़े चार दलों को भी सीटें देनी हैं।

दोनों दलों के बीच अब तक हुई बातचीत में उद्धव ठाकरे एक बार भी शामिल नहीं हुए हैं। बताया जाता है कि वह भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व के साथ ही बात करना चाहते हैं, जैसा कि उनके पिता बालासाहब ठाकरे के समय में होता रहा है। तब पहले दौर की बातचीत शिवसेना की दूसरी पंक्ति केनेताओं के साथ भाजपा के प्रदेश नेताओं की होती थी। उसके बाद अंतिम फैसला बाल ठाकरे एवं अटल, आडवाणी अथवा प्रमोद महाजन के साथ बातचीत में होता था। राजनाथ सिंह के अध्यक्ष बनने के बाद भी 'मातोश्री' (ठाकरे निवास) परिक्रमा का दौर जारी रहा। अब शिवसेना शाह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने केबाद उनसे भी पुराने नेताओं जैसे व्यवहार की अपेक्षा रखती है। लेकिन, चार सितंबर को भाजपा पदाधिकारियों के सम्मेलन में हिस्सा लेने आ रहे अमित शाह के कार्यक्रमों में उद्धव ठाकरे से मुलाकात का कोई जिक्र नहीं है।

नहीं टूटेगी ¨हदुत्व की पक्की गांठ

सीटों को लेकर शिवसेना-भाजपा एवं उनके सहयोगी दलों में चल रही तनातनी के बावजूद शिवसेना ने अपने मुखपत्रसामना के संपादकीय के जरिए यह संकेत देने की कोशिश की है कि उनका गठबंधन विचारों की मजबूत डोर से बंधा है। इसलिए उसके टूटने की बात नहीं सोची जा सकती। संपादकीय में हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) के नेता कुलदीप बिश्नोई एवं बिहार के जदयू का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि भाजपा के इन सहयोगियों से उसका गठबंधन वैचारिक नहीं था। जबकि, शिवसेना से उसका गठबंधन ¨हदुत्व के धरातल पर खड़ा है। यहां ¨हदुत्ववादी विचारों की गांठ पक्की है। इसलिए वह टूटनेवाली नहीं है।

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